गंगा बेसिन ऑथरिटी के दौरान हुए कार्य नमामि गंगे परियोजना से बेहतर

- जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने नमामि गंगे परियोजना पर खड़े किए सवाल
- तबादला एक्ट में मानवीय पहलुओं को ध्यान में रख कर हो संशोधन
- मंत्रियों की पत्नियों और उत्तरा के लिए एक्ट अलग-अलग नहीं हो सकता
2014 में मोदी ने कहा था कि वे गंगा के बेटे है और मां गंगा ने उन्हें बुलाया है। साढ़े चार साल में उद्गम से गंगा सागर तक मैंने दो बार यात्रा की लेकिन कहीं भी मुझे कोई परिवर्तन नहीं दिखा। चाहे गडकरी कितने दावे कर लें, लेकिन मार्च 2019 तक गंगा निर्मल कत्तई नहीं हो सकती है। जीडी अग्रवाल से वायदा करके भी पीएम मोदी ने कभी गंगा के बारे में बात नहीं की। राजेंद्र ने कहा कि मैंने 35 सालों में 11 छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम किया है। आज मैं गंगा की हालत देख कर दुखी हूं।
इस दौरान राजेंद्र सिंह ने उत्तराखंड सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा रिस्पना-कोसी नदी को बचाने की योजना को महज एक इवेंट बताया। कहा कि रिस्पना नदी पुनर्जीवित करने को लेकर सरकार ने केवल पब्लिसिटी की है। मैंने राज्य सरकार को तीन सलाह दी थी जो नहीं मानी गईं। कहा कि रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनेगा।
वहीं हरीश रावत ने कहा कि मानवीय पहलुओं को ध्यान में रख कर तबादला एक्ट में संशोधन किया जाना चाहिए। उसे रद्द कर दोबारा बनाया जाना चाहिए। उत्तरा पंत बहुगुणा पर हरीश रावत ने कहा कि मंत्रियों की पत्नियों और उत्तरा के लिए एक्ट अलग-अलग नहीं हो सकता। एक्ट सबके लिए बराबर होना चाहिए। कहा कि आज स्वच्छ जल मानव की पहली प्राथमिकता है।