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बालिकाओं को निर्णय की स्वतंत्रता देना आवश्यकः मुख्यमंत्री

संकोच को दूर करके बेटियां जीवन में कर सकतीं हैं प्रगति 

कन्या भ्रूण  हत्या सबसे बड़ा पाप, पिछले दो वर्षों में राज्य में बालिका लिंगानुपात में काफी सुधार

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राज्य स्थापना सप्ताह के अंतर्गत श्रीनगर में महिला सम्मेलन में किया प्रतिभाग

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

तीन सत्रों में संपन्न हुआ महिला सम्मलेन 

पहला सत्र पहाड़ और पीड़ा : मातृशक्ति की चुनौतियां,

दूसरा सत्र मातृशक्ति : पहाड़ी अर्थतंत्र की रीढ़

तीसरा सत्र उम्मीद की किरणें -विभिन्न क्षेत्रों में पहाड़ का नाम रोशन करती मातृशक्ति

इन सभी सत्रों में सामाजिक , राजनीतिक और सांस्कृतिक और नौकरीपेशा महिलाओं ने अपने -अपने विचार रखे । 

देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि हमें बालिकाओं को स्वतंत्रता देनी होगी। उनकी क्षमताओं पर विश्वास करना होगा। संकोच, जीवन की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। बेटियों को संकोच नहीं करना चाहिए। जब संकोच दूर होगा तभी प्रगति होगी। मुख्यमंत्री ने कन्या भ्रूण हत्या को बहुत बड़ा पाप बताते हुए कहा कि पिछले दो वर्षों में राज्य में बालिका लिंगानुपात में काफी सुधार आया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में 62 ग्रोथ सेंटरों को मंजूरी दी है। ये ग्रामीण विकास के महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र साबित होंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में खेती को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाया जाता है। इसका विकल्प भी खोजना है। अदरक, लहसुन, हल्दी की खेती को अपनाया जा सकता है। पहाड़ में सोलर पावर प्रोजेक्ट और पिरूल से बिजली बनाने के लिए प्रोजेक्ट आवंटित किए गए हैं। चीड़ जो कि विनाश का प्रतीक था, जल्द ही रोजगार में सहायक होगा।  

मुख्यमंत्री ने कहा कि सुधार के लिए राजनीतिक हितों से ऊपर उठना होगा। आगे बढ़ने के लिए मंथन करना जरूरी है। इस वर्ष राज्य स्थापना सप्ताह के अंतर्गत रैबार, सैनिक सम्मेलन, महिला सम्मेलन, युवा सम्मेलन आदि कार्यक्रम इसी उद्देश्य से किये गये। ऐसे कार्यक्रमों से नीति निर्धारण और व्यवस्था परिवर्तन में सहायता मिलती है। ग्राउन्ड पर काम करने वाले और नीति निर्धारण करने वाले जब एक मंच पर मिलते हैं तो इससे राज्य व समाज के विकास की दिशा निर्धारित होती है।  

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड में महिलाओं की स्थिति पहले से अच्छी है। यहां की महिलाएं जुझारू हैं। उत्तराखण्ड निर्माण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पर्यावरण संरक्षण में यहां की महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है। कृषि और पशुपालन में मुख्य रूप से महिलाएं ही काम करती हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य व शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्य स्थापना सप्ताह के अंतर्गत श्रीनगर में महिला सम्मेलन आयोजित किए जाने पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि 20-25 साल पहले महिलाओं के विकास के लिए बात नहीं होती थी।

अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने कहा कि पहाड़ को अगर किसी ने बचाया है तो वह महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की कला और लोक कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाए जाने की जरूरत है। यहां बेहतरीन फिल्में बनें जिन्हें कि देश विदेश में देखा जाए। सरकार से अपील की कि महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारी उन्होंने पलायन को लेकर अपनी लिखी कविता भी सुनाई।

संगीता ढौंडियाल ने कहा कि महिलाएं काम कर रही हैं। लेकिन सरकार से उन्हें सहायता नहीं मिलती है। पुरुष कलाकार को महिलाओं से ज्यादा महत्व दिया जाता है। जबकि दोनों की योग्यता बराबर होती है। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति के बढ़ावे के लिए प्रदेश में संस्थाएं खुलनी चाहिए। 

अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने गढ़वाली में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। इस सम्मेलन में जो भी सुझाव मिलेंगे, उन्हें पूरा करने के लिए सरकार कोशिश जरूर करेगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी महिलाओं के लिए कई योजनाएं बनाने की बात करते हैं। उनका महिलाओं को फायदा जरूर मिलेगा।

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत व अन्य अतिथियों ने जिलाधिकारी पौड़ी धीरज सिह गर्ब्याल की पहल पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन एवं राष्ट्रीय पोषण अभियान, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग पौड़ी के तहत महिला समूह द्वारा बनाए गए झंगोरा लड्डू का स्वाद चखा और उसकी तारीफ की।

कार्यक्रम में राज्य सरकार में केबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत, जागर गायिका बसंती बिष्ट भी मौजूद थे। कार्यक्रम में तीन सत्र आयोजित किए गए। पहला सत्र पहाड़ और पीड़ा व मातृशक्ति की चुनौतियां, दूसरा सत्र मातृशक्ति व पहाड़ी अर्थतंत्र की रीढ़ और तीसरा सत्र उम्मीद की किरणें-विभिन्न क्षेत्रों में पहाड़ का नाम रोशन करती मातृशक्ति विषय पर था।  

जागर गायिका बसंती बिष्ट ने कहा कि पहाड़ का पुरुष महिलाओं को समझता है। सरकार के साथ ही गैर सरकारी संस्थाओं को भी लोक संस्कृति को बचाने के लिए प्रयास करना होगा। इसके लिए ग्रामीण स्कूलों में बच्चों को लोक संगीत सिखाया जाए। इसके साथ ही स्कूलों में इसे सिखाने के लिए ग्रामीणों की ही नियुक्ति की जाए। जिससे वे कमा भी सकें। कहा कि महिलाओं को बहुत सारी चिंता रही हैं। जिनके पति आर्मी में है उन्हें पहाड़ में कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। कुछ भी गलत होता है तो महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है। 

इसके साथ ही समापन सत्र में लोक गायिका संगीता ढौंढियाल और जागर गायिका बसंती बिष्ट ने अपने जागर और गीतों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। 

 

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