मातृसदन ने एक बार मामला फिर से उठाया
हरिद्वार : प्रदेश में खनन पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे आने के बाद मातृसदन ने गंगा को लेकर रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी गंगा में खनन नहीं हो सकता है। गंगा में खनन और क्रशिंग को लेकर पर्यावरण संरक्षण की धारा-5 पहले से प्रभावी है। स्वामी शिवानंद ने यह भी कहा कि वर्ष 2013 में धारी देवी मंदिर का अपमान होने से केदारनाथ आपदा में हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। अब देवभूमि में शराब और खनन को खुली छूट मिलने से भविष्य में गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
हाईकोर्ट ने प्रदेश भर में चार महीने के लिए खनन पर रोक लगाते हुए उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित करने के आदेश सरकार को दिए थे, लेकिन सरकार खनन बंद होने से विकास बाधित होने का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची और विशेष याचिका दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।
मंगलवार को मातृसदन में पत्रकारों से वार्ता करते हुए परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार यह भूल जाए कि गंगा में खनन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे दिया है, जबकि गंगा पर हाईकोर्ट से पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी खनन व क्रशिंग कार्य पर रोक लगा चुका है। पर्यावरण संरक्षण की धारा-5 लागू की गई है।
जिसके तहत गंगा में खनन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाते हुए क्रशरों को पांच किलोमीटर दूर हटाने के आदेश लागू किए गए हैं। साथ ही अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी तय की गई है। स्वामी शिवानंद ने कहा कि सरकार न्यायालयों में बहस रेत के खनन को लेकर करती है और नदियों में खनन पत्थरों का किया जाता है। उन्होंने कहा कि वे इस मामले में अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति दाखिल करेंगे।
राष्ट्रपति को भेजा पत्र, सात दिन का समय
स्वामी शिवानंद ने बताया कि प्रदेश में सवाल खनन का नहीं है, सवाल आस्था, पर्यावरण, हिमालय का है। ऐसे में उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर पूरी स्थिति से अवगत कराया है। साथ ही महामहिम से यह पूछा गया है कि इस हालात में उन्हें क्या करना चाहिए। स्वामी शिवानंद ने कहा कि सात दिन में जवाब न मिलने पर कोई फैसला लिया जाएगा।