PITHORAGARH
संस्कृति बचाने के लिए उत्तराखंड सरकार का ‘सिनेमाहॉल फार्मूला’!

- उत्तराखंड के अधिकारी और उनके तुगलकी फरमान
- अपर सचिव का संस्कृति बचाने का एक अनूठा रास्ता
- विवादित निर्णयों के लिए मशहूर हैं यहाँ तैनात अधिकारी
हेम पन्त


सरकार के इस अप्रत्याशित फैसले से अचंभे के साथ -साथ सदमें में हैं कलाकार

- राज्य के संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों की बुरी हालत
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों की बुरी हालत किसी से छिपी नहीं है। इससे बड़ी शर्म की क्या बात हो सकती है कि पिछले दिनों पिथौरागढ़ शहर में ही वयोवृद्ध लोकगायिका कबूतरी देवी जी का उचित ईलाज के अभाव में निधन हो गया था। एक ध्यान देने वाली बात ये भी है कि उत्तराखंड के कुछ ही शहरों में सरकारी ऑडिटोरियम उपलब्ध हैं। पौड़ी, रामननगर और अल्मोड़ा के प्रेक्षागृह अच्छे स्तर के माने जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर के कई कलाकारों को तैयार करने वाले नैनीताल शहर के रंगकर्मी भी कई साल से एक सार्वजनिक प्रेक्षागृह की मांग के लिए संघर्षरत हैं। रुद्रपुर और हल्द्वानी के कलाकारों को भी ऑडिटोरियम के अभाव में नाटक की रिहर्सल और मंचन के लिए निजी होटलों या स्कूलों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- ऑडिटोरियम को लीज पर देने से हर जागरूक नागरिक निराशाजनक
पिथौरागढ़ के स्थानीय कलाकारों के अनुसार इस ऑडिटोरियम की वर्तमान स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है। लगभग डेढ़ साल से यहां का जनरेटर बजट के अभाव में खराब पड़ा है। कई बार नाटक के दौरान लाइट चले जाने पर मंचन में व्यवधान पड़ चुका है। इस सबके बावजूद कड़ी मेहनत और बुलन्द हौसलों से यहां के कलाकारों ने पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर पिथौरागढ़ से स्व. कबूतरी देवी, डॉ. अहसान बख़्श, हेमन्त पांडे, अशोक मल्ल, पप्पू कार्की, कैलाश कुमार, हेमराज बिष्ट, गोविन्द दिगारी जैसे कई कलाकार निकलकर आए हैं। इस समय भी पिथौरागढ़ के युवा भाव राग ताल, अनाम, हरेला सोसायटी, आरम्भ स्टडी सर्कल जैसे कई रचनाशील संगठनों से जुड़कर बेहतरीन काम कर रहे हैं। सरकारी ऑडिटोरियम को लीज पर देने की यह ख़बर पिथौरागढ़ के हर जागरूक नागरिक के लिए निराशाजनक है।
- निर्णय के खिलाफ उत्तराखंड राज्य के रचनाधर्मियों को एकजुट होना जरूरी
इस एकमात्र ऑडिटोरियम को लीज पर देने के फैसले के बाद पिथौरागढ़ के सामाजिक कार्यकर्ताओं, रंगकर्मियों और संस्कृतिकर्मियों ने सरकार के इस औचित्यहीन कदम का पुरजोर विरोध करने का निर्णय लिया है। लेकिन राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सिर्फ पिथौरागढ़ ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड राज्य के रचनाधर्मियों को एकजुट होना जरूरी है ताकि राज्य के नीति-नियंता यह सोचने की गलती न करें कि ‘नगाड़े खामोश हैं’ ।