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भारत – कोरोना : चर्चा और चिंता के बिंदु

मरकज़ और तबलीग जमात किसी पूर्वनियोजित घातक मिशन पर!

तब्लीगीयों को बड़ी सूझबूझ से NSA ने डिफ्यूज कर मरकज़ खाली कराया

हरीश सती 

ऐसा नहीं लगता है कि बाम सेकुलर और तब्लीगी जमात का *घातक कॉकटेल* भारत राष्ट्र के सामने एक अभूतपूर्व और हतप्रभ करने वाले संकट के रूप में प्रस्तुत हुआ है? जो कोरोना की भयावह अराजक लहरों पर सवार होकर भारत की राजधानी दिल्ली को विश्वव्यापी उन्मादी अराजकता की राजधानी बनाने का दुःस्वप्न पाले हुए हैं।

आज देश में चर्चा के विषय होने चाहिए थे कि देश में कोरोना के रोकथाम के क्या क्या उपाय सुझाये गए? कोरोना प्रसार की गति कैसी है? देश के विभिन्न भागों में इसकी स्थिति कैसी है? क्या अभी तक कोरोना मुक्त क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां पुनः प्रारम्भ की जा सकती है? कोरोना उपचार के उपकरणों और अस्पतालों की स्थितियां कोरोना से निपटने में कैसी है? कोरोना टेस्ट किट की गुणवत्ता,आपूर्ति और कोरोना वेक्सीन के शोध में क्या प्रयास चल रहे है? कोरोना संकट के चलते बेरोजगार हुए लोगों को आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कैसे की जाय? कृषि और अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित तरीके से कैसे किया जाय?लॉक डाउन और सोशल डिस्टेन्स के क्या क्या पहलू है? कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण के साथ अर्थव्यवस्था को कैसे सम्हाला जाय? आदि आदि।

लेकिन चर्चा कोरोना के अलावा मरकज़ और तब्लीगी जमात पर केंद्रित हो गयी है। देश में प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत बड़ी मशीनरी, मात्र तब्लीगी जमात के जमातियों को ही नियंत्रण करने में अपनी ऊर्जा अपव्यय कर रही है। वह भी अपने प्राणों को संकट में डालकर।शायद इस *कोरोना वार* में भारत देश के शत्रुओं के लिए यह कम राहत की बात नहीं होगी। मीडिया को भी अपने अन्य महत्वपूर्ण व उपयोगी जानकारी को छोड़कर तब्लीगी एपिसोड पर फोकस करना आवश्यक हो गया है।

पूरा ताना बाना तरीके से बुना गया है। पुलिस पर पथराव हो रहा है। स्वास्थ्य कर्मियों पर थूका जा रहा है उनके सामने अश्लील क्रियाएं की जा रही हैं। मीडिया को धमकाया जा रहा है और सरकारों पर पक्षपात का आरोप लगाया जा रहा है। जबकि यह सब इन जमातियों और उनके परिवारों के प्राणों को कोरोना के संक्रमण से बचाने के प्रयासों के चलते है।है न अनूठा दृश्य? सारे देश में लॉक डाउन के तीसरे हफ्ते में भी छिंदवाड़ा, मुर्शिदाबाद और बड़ोदरा से फिर लॉक डाउन को धत्ता दिखाने वाले तस्वीरे आयी हैं।

तीसरे हफ्ते में भी भागलपुर से तो पुलिस पर पथराव के समाचार और वीडियो पोस्ट आये हैं। लेकिन सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स पर बहुत बड़ा वर्ग बड़ी चालाकी से इन लोगों के पक्ष में खड़ा है। बार बार यह दोहरा कर कि तब्लीगी जमात के लोगों को मात्र एक साम्प्रदायिक विशेष से जुड़े होने के कारण लक्षित किया जा रहा है। लेकिन यही लोग जमातियों की गतिविधियों को बड़ी निपुणता से डायल्यूट करने में लगे हैं।

जमातियों में अधिकांश जमाती अपना अच्छा खासा कारोबार चलाने वाले, अत्यधिक परिपक्व और देश के मुख्य क्षेत्रों से आने वाले है। हज़ारों तो विदेशी है जो हवाई जहाजों से यात्रा करते हैं। लेकिन इन्हें जाहिल और नासमझ कहकर बचाया जा रहा है। अभी भी जब ऐसे समय में छोटे छोटे मासूम बच्चे तक कोरोना की त्राषदी को समझते हुए अपनी गुल्लकें तोड़ कर दान कर रहे हैं, तब इन उपद्रवी जमातियों को समझाने के सुझाव दिए जा रहे हैं। इन्ही लोगों द्वारा झूठा प्रचार किया जा रहा है कि देश में खुले आम मेले चल रहे हैं और केवल जमातियों को लक्षित किया जा रहा है।

9 अप्रैल के बाद प्रत्येक दिन 700 के लगभग कोरोना के नए मामले बढ़ने से जहां भारत कोरोना संक्रमण के स्टेज थर्ड की दहलीज पर पहुंच चुका है। निस्संदेह कुछ तथ्य देश को चिंतित कर रहे हैं। आनंद विहार जैसा अनुत्तरदायित्वपूर्ण दृश्य भुलाए नहीं भूलता है। फिर मरकज़ का घटनाक्रम। भारत के NSA डोभाल के मरकज़ के घटनाक्रम को स्वयं अपने हाथ में लेने से इतना तो तय है कि मरकज़ पर खुफिया रिपोर्ट्स गंभीर चिंता वाली रही होंगी।

NSA को मिल रही रिपोर्ट्स से ये आशंका तो बनी ही रही होगी कि मरकज़ और तबलीग जमात किसी पूर्वनियोजित घातक मिशन पर है। उसके बाद जिस तरह से मरकज़ में मौजूद कोरोना बम जैसे तैयार हो चुके तब्लीगीयों को बड़ी सूझबूझ से NSA ने डिफ्यूज कर मरकज़ खाली कराया वह ऑपरेशन ब्लू स्टार की याद दिलाता है। इसके तुरन्त बाद NSA डोभाल की टीम ने देश भर में धर्मगुरुओं और सेलेब्रिटीज़ से लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस को मेंटेन करने की अपील सख्ताई से करवाई उससे स्थिति उतनी विस्फोटक नहीं हो पाई जितनी हो सकती थी।

उसके बाद भी, आज लॉकडाउन के तीसरे हफ्ते के बाद भी, तब्लीगीयों के तेवर और देश के कुछ हिस्सों से सोशल डिस्टेन्स को धत्ता बताते हुए दृश्य, बताते हैं कि इरादे कितने भयावह रहे होंगे। लॉ एंड आर्डर को असफल करने के भरपूर प्रयास अभी तक चल रहे हैं। जबकि सारे विश्व में कोरोना अपने निर्ममतम रूप में सबके सामने है ।

यह विरोधाभाषी तथ्य भी कोरोना के विरुद्ध प्रयासों को शिथिल ही कर रहा है कि कहीं तो लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस के विरुद्ध वातावरण बनाने वालों पर रासुका लगाई जा रही है और धारा 307 के तहत हत्या की कोशिश का मुकदमा दर्ज किया जा रहा है और कहीं धारा 188 से काम चलाया जा रहा है ।और कहीं कहीं तो, अभी भी मना किये जाने के बाद भी, मज़हबी गतिविधियों के लिए एकत्रित हुए लोगों को, समझाबुझा कर ही भेजने में, अपनी निपुणता समझी जा रही हैं। इसके बाद भी अभी 500 जमायती गायब हैं।आज जब विश्व के विकसित देशों सहित पूरे विश्व में मरने वालों का आंकड़ा 1 लाख डरवाने आंकड़े के पार पहुंच गया है और भारत में भी संक्रमित लोगों के पाए जाने की गति दो तीन दिनों में तेजी से बड़ी है।

यह सब तो तब है, जब अभी कोरोना टेस्ट पर्याप्त नहीं हुए हैं। ऐसी स्थिति में इन तब्लीगीयों से निपटने में स्पष्ट दृष्टि का अभाव क्यों दिख रहा है? तबलीग के जमातियों की गतिविधियों से, कोरोना को एक महामारी के साथ- साथ एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश के रूप में भी दृष्टिगोचर होती जा रही है। देश के प्रधानमंत्री ऐसे ही नहीं *संयोग या प्रयोग* का वक्तव्य दे चुके थे। अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत आगमन पर हुई दिल्ली हिंसा, दिल्ली में ही आनंद विहार जैसी घटना और फिर मरकज़ का प्रकरण यह इंगित करता है कि कुछ वर्षों पहले अल्जीरिया,मोरक्को, लीबिया , मिश्र, यमन ,ईरान होते हुए भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश में फैली *यास्मीन क्रांति* के विश्वव्यापी तथाकथित बामसेक्युलर सूत्रधार, फिर से अमेरिकी चुनावों से पहले सक्रिय हो उठे हैं ।

इसी *यास्मीन क्रांति*के उभार में अमेरिकन बामसेक्युलरों ने अल्जीरिया, मोरक्को,ट्यूनीशिया, मिस्र, यमन, लीबिया जैसे कई देशों में अपने प्रतिकूल सत्ताओं को तख्तापलट कर आज अस्थिरता के गर्त में धकेल दिया है।**पाकिस्तान में इमरान खान भी उसी उभार की देन है।यही उभार भारत में अन्ना आन्दोलन के नाम से चलाया गया और बाद में अन्ना हज़ारे ही किनारे कर दिए गए। ‘

इसी बाम लिबरल से प्रभावित भारत के कुछ टीबी चैनल्स तय करते हैं कि कोरोना से निपटने में डोनाल्ड ट्रंप असफल सिद्ध हुए हैं। वे ये नहीं बताते की इटली,फ्रांस,ब्रिटेन,जर्मनी,स्पेन सहित अन्य देश क्यों असफल हुए?वे ये नहीं बताते की अमेरिका के आधे कोरोना प्रकरण न्यूयॉर्क में हैं ।जिसे विश्व की आर्थिक राजधानी कहना गलत नहीं होगा और जनवरी में बुहान में चीन द्वारा कोरोना संक्रमण छुपाए जाने के दौरान ही न केवल बुहान बल्कि इटली और विश्व के अन्य भागों से स्वाभाविक आवाजाही न्यूयॉर्क में रही जिससे वह इतना संक्रमित हुआ। वे डोनाल्ड ट्रम्प की उस दुविधा को भी नहीं बताते कि किस तरह उन्हें, चीन में कोरोना संकट के बाद, शेयर बाजार में नीचे गोता लगाती अमेरिकन कंपनियों के शेयर, चीन द्वारा खरीदकर नियंत्रण कर लेने के बाद,शेष अमेरिकन कंपनियों को बचाना अपरिहार्य हो गया था। जिस तरह चीन ने अपने कुछ लोगों को गवां कर अमरीकी कंपनियों पर कब्ज़ा किया उसी तरह अमेरिका ने अपने कुछ लोगों की शहादत पर अमेरिकी आर्थिक साम्राज्य को बचाने की कोशिश की। और ये बामसेक्युलर चीन पर तो कैसे बोल सकते हैं?

इस देश को 1962 में भारत -चीन युद्ध के समय, सैनिकों को युध्द सामग्री बनाने वाली ,ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में मज़दूरों की मांगों की आड़ में, बामसेक्युलरों द्वारा करवाई हड़ताल भी याद है। दिल्ली में आनंदविहार में मज़दूर और कामगारों की भीड़ और आज की परिस्थितियों में फिर मज़दूरों और किसानों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वालों को सुनकर 1962 का जिक्र जरूरी लगा।

खैर विषयांतर न हो। कहने का अर्थ यह है कि जिस तरह कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण में, कुछ तत्वों द्वारा अपने दूषित मंतव्यों से राष्ट्र को संक्रमित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, उससे यही संदेश प्रेषित हो रहा है कि दाल में कुछ तो काला तो नही? वहां ट्रंप को असफल ठहराया जा रहा है और उसके उलट यहाँ भारत में कोरोना के विरुद्ध अब तक सफल अभियान को असफल करने की हरसंभव कोशिश कुछ तत्वों द्वारा की जा रही है। चेन्नई से छपने वाले बाम झुकाव वाले,अंग्रेजी समाचार पत्र *द हिन्दू* के लिए लॉक डाउन में घरेलू हिंसा के मामलों की बृद्धि मुख्य चिंता का विषय बना है। इधर अन्याय लोगों द्वारा यह वातावरण बनाया जा रहा है कि भारत में हर गलती के लिए एक सम्प्रदाय विशेष और पाकिस्तान को उत्तरदायी ठहराने की मिथकीय प्रवृति शासन से लेकर मीडिया में प्रायोजित है। टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर कुछ ठूसे हुए अलग अलग चेहरों से इसी तरह की तथ्यहीन बातें प्रेषित करवायी जा रहीं हैं।यह कोरोना के संकट के समय राष्ट्रविरोधी प्रवृत्तियों को सही ठहराने के प्रयास नहीं है तो और क्या है?

कोरोना और तब्लीगी जमातों में एक ध्यान देने वाला तथ्य यह भी है कि मरकज़ की तरह ही तब्लीगीयों का विशाल जमावड़ा 17 फरवरी को मलेशिया में हुआ था। चीन में बुहान में कोरोना संकट के बावजूद वहां चीन से भी जमाती प्रतिनिधि आये थे। और इस जमावड़े में भारत और पाकिस्तान सहित विश्व के सभी हिस्सों से जमातियों ने भाग लिया था। इसके बाद तारिख जमाल के आयोजन में लाहौर के पास रायपिंडी में 13 से 15 मार्च तक विशाल जमायती जमावड़ा लगा और फिर भारत के मरकज़ में कोरोना की चेतावनियों के बाद भी कोरोना की नई पौध तैयार होती रही। भले ही चीन इस्लाम और तिब्बती बौद्धों पर वर्चस्व स्थापित करता है लेकिन अपने हितों के लिए अपने अनुकूल प्रशिक्षित मुस्लिम और बौद्ध भिक्षु भी तैयार करता है।

भारत में दलाई लामा के समानांतर करमापा और दूसरे लामाओं का प्रकरण तो ध्यान होगा ही। मलेशिया जमात में संक्रमित बुहान से गए चीनी जमातियों की क्या गारंटी थी की उन्होंने वहां कोरोना न फैलाया हो? ध्यान रहे चीन सागर से जुड़े सभी पड़ोसी देशों से चीन का चीन सागर में वर्चस्व के चलते छत्तीस का आंकड़ा है।यहां भारत में जमातियों की बौखलाहट से तो यही लगता है कि NSA डोभाल के सख्त डैमेज कंट्रोल और सख्त चेतावनियों ने इनकी अपवित्र दुर्भावनाओं पर बहुत सीमा तक पानी फेर दिया है।

अभी बिहार की सीमा पर बेतिया और चंपारन में एसएसबी की खुफिया विंग ने आशंका जताई है कि कुख्यात तस्कर जामिल मुखिया, जो नेपाल जैसे देश में परसा का मेयर भी हैं,भारत में कोरोना संक्रमितों की घुसपैठ कराने की फिराक में था। यह सब क्या भारत बिरोधी षड्यंत्रों की कड़ियाँ नहीं है ?लेकिन हमारे देश में कुछ समूहों द्वारा ऐसे कुतर्क रखे जाते हैं जिससे जानबूझकर कोरोना संक्रमण फैलाने वालों को या अन्य तरह की देशविरोधी गतिविधियां चलाने वालों को तार्किक और मनोवैज्ञानिक सहयोग मिलता है।

जिस समय देश के प्रशासन, पुलिस, स्वास्थ्य तंत्र और मीडिया को कोरोना सम्बन्धी आसन्न संकटों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था वहाँ ये तब्लीगी और इनके लिए बोलने वालों की स्क्रिप्ट लिखने वाले,क्या देश के संसाधन,समय,ऊर्जा और धन को एक सुनियोजित षड्यंत्र के अनुसार अपव्यय करा कर, अक्षम्य राष्ट्रविरोधी अपराध नहीँ कर रहे हैं? और यदि समय रहते NSA डोभाल,इस संकट की गंभीरता को समझते हुए,डैमेज कण्ट्रोल नहीं करते तो हमारे देश का कितना बड़ा तंत्र, इस संकट की घड़ी में कोरोना के अलावा इनसे ही जूझता रहता।

आश्चर्य हुआ कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी को विश्व- बहावियत की कट्टरपंथी भट्टी में झोंकने वाले तब्लीगी अमीरों की भी राजधानी बनाने की कुचेष्टा हो रही है।मीडिया में आगे किये गये चेहरों,तब्लीगीयों के शुभचिंतक प्रवक्ताओं द्वारा, बार बार दोहराए जा रहे तर्क, *क्या बाम सेक्युलर प्रयोगशाला की परखनलियों में, लंबे समय से धूल फांक रहे *”विक्टिममेनिया रसायन”* से युक्त तर्कों और, *”तब्लीगी-बामसेक्युलर मिक्सअप” का,”नियो मिचुअटेड वर्जन”नहीं लगते हैं? ऐसा नहीं लगता है कि बाम सेकुलर और तब्लीगी जमात का *घातक कॉकटेल* भारत राष्ट्र के सामने एक अभूतपूर्व और हतप्रभ करने वाले संकट के रूप में प्रस्तुत हुआ है? जो कोरोना की भयावह अराजक लहरों पर सवार होकर भारत की राजधानी दिल्ली को विश्वव्यापी उन्मादी अराजकता की राजधानी बनाने का दुःस्वप्न पाले हुए हैं।

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