बागेश्वर में आदमखोर तेंदुए को शिकारी ने किया ढेर

- 20 से अधिक गांव में था आदमखोर तेंदुए का आंतक
- गुलदार शिकारी लखपत को दे रहा था चमका
बागेश्वर : जिला मुख्यालय बागेश्वर सहित आसपास के 20 से अधिक गांवों में आतंक का पर्याय बने आदमखोर गुलदार (तेंदुए) को शिकारी लखपत सिंह ने बीती देर रात ढेर कर दिया है। यह गुलदार उनका 51वां आदमखोर गुलदारों में शामिल हो गया है जिसका उन्होंने शिकार किया।
गौरतलब हो कि पिछले 4 दिन से शिकारी लखपत सिंह ने जिला मुख्यालय में डेरा जमाया हुआ था। गुलदार हर समय उन्हें चकमा देकर निकल रहा था। शुक्रवार की देर रात जिला मुख्यालय के आसपास गुलदार के होने की सूचना पर शिकारी सिंह ने घेरा डाला जिला। मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर ध्यानगड गांव में गुलदार को ढेर किया गया। गुलदार के मारे जाने से ग्रामीणों में खुशी है, वहीं वन विभाग ने भी राहत की सांस ली। गुलदार का पोस्टमार्टम करने के बाद शनिवार (आज) जला दिया जाएगा।
गुलदार का आतंक जिला मुख्यालय क्षेत्र के चारों ओर लगने वाले लगभग 20 से अधिक गांव में था। जिनमें नदीगांव, आरे ध्यानगढ, मजीयाखेत, सेज, मंडल सेरा कट्ठायत वाड़ा, बाहुली आदि प्रमुख हैं। गुलदार ने बीते सितंबर माह में एक 6 वर्षीय बच्ची शर्मीली निवासी नदीगांव को अपना शिकार बनाया। मानव बस्तियों में वह अक्सर लोगों को दिखाई देता था। एक शिकार के अलावा गुलदार जौलकंडे गांव मे दो महिलाओं पर भी झपटा था, लेकिन वह सुरक्षित है। इसके अलावा वह अब तक 12 मवेशियों का शिकार कर चुका था।
वन्य विशेषज्ञों के अनुसार गुलदारों का लगातार बदल रहा व्यवहार जीव वैज्ञानिकों को हैरानी में डाल रहा हैं। एकाकी रहने वाला गुलदार अब पूरे परिवार के साथ दिखाई देने लगा हैं। यही नहीं शिकार के लिए बस्तियों पर निर्भरता भी खतरनाक साबित हो रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आने वाले समय में गुलदार व मानव के बीच संघर्ष और बढ़ने की आशंका प्रबल दिखने लगी है। गुलदार को लेकर किए गए पुराने वैज्ञानिक अध्ययन अब गलत साबित होने लगे हैं। गुलदार एकाकी जीव है। वह अकेला रहना पसंद करता है और अकेले ही शिकार करता है। नर गुलदार का इलाका 48 वर्ग किमी व मादा गुलदार 17 वर्ग किमी होता है। अगर कोई गुलदार उसके इलाके में घुस जाए तो इनमें संघर्ष हो जाता है। ऐसे में कमजोर की मौत निश्चित है। एक मादा गुलदार तीन से चार तक शावकों को जन्म देती हैं। यह शावक मादा के साथ करीब 18 महीने तक रहते हैं। इसके बाद प्राकृतिक रुप से सब अलग-अलग हो जाते हैं।