UTTARAKHAND
हिमालय के बीच ही बैठा है, हिमालय का अतीत

थिस समूद्र का कुछ अंश अभी भी हिमालय के बीचों बीच बचा हुआ
134 किलोमीटर क्षेत्रफल में ये खारे पानी की एकमात्र टेथिस सागर का है अंश
मनमीत
क्या हिमालय कभी सच में एक विशाल समूद्र था ? क्या टेक्टोनिक प्लेट्स के आपसी टकराव की वजह से हिमालयन बेसिन विकसित हुआ ? क्या उत्तरी भारत पहले आस्ट्रेलिया महादीप के निकट था ? यानी जहां अभी हम रह रहे हैं, वहां पहले बड़ी बड़ी वेल मच्छली या तमाम बड़े समुद्री जीव रहते थे। ये तमाम सवाल है जो अक्सर किसी भी जिज्ञासू इंसान को सोचने पर मजबूर कर सकते है। आठवीं क्लास में जियोग्राफी की टीचर ने क्लास में ‘टेथिस सागर’ के बारे में पढ़ाया तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। हम क्लास के बाद इंटरवल में बातें करते और मजाक बनाते कि ये कैसे संभव है कि जहां हमारा टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून है (पहले हमारे लिए धरती इतनी ही थी और आसमां भी) वहां समूद्र था। बहरहाल, बात आई गई हो गई।
लेकिन, जब स्नातक की पढ़ाई कर रहा था तो एक सर्द सुबह धूप में बैठकर एक राष्ट्रीय अखबार पढ़ने में मशगूल था। अखबार के एडिटोरियल पेज पर किसी जियोलॉजिकल साइंसटिस्ट का एक लंबा लेख था। उसमें भी इस बात का उल्लेख था कि हिमालय टेक्टोनिक प्लेटों की टकराहट का परिणाम है। जहां पहले समूद्र था, वहीं अब हिमालय है। मैं फिर से हैरान परेशान हो गया। बाद में जब देहरादून पहुंचा तो मेने इंटरनेट में इस बारे में बहुत पढ़ा। हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के लंबे थिसीस को पड़ा। वहां वरिष्ठ वैज्ञानिक और भूकंप विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार और वरिष्ठ भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ पीएस नेगी से भी लम्बी चर्चा हुई। वैज्ञानिक अक्सर बताते कि इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट दोनों एक दूसरे के नीेचे खिसक रही है। लिहाजा, हर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते है। जिन्हें रिक्टर स्केल पर दो से तीन तक मापा जाता है। ये प्रक्रिया हजारों साल पुरानी है।
4,350 मी (14,270) की ऊंचाई में स्थित झील का सत्तर फीसदी हिस्सा चीन में है जबकि शेष तीस फीसदी भारत में है