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Headlines : सुर्ख़ियों में है महिला अभियंता की प्रोन्नति को लेकर पेयजल निगम !

  • आनन -फानन में जांच और गोलमोल जांच रिपोर्ट ……!
  • पेयजल निगम के अधिकारियों ने शासनादेश और कानून की जमकर उड़ाई धज्जियाँ !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून : उत्तराखंड पेयजल निगम के मातहत अधिकारी एक महिला अभियंता पर इस कदर मेहरबान हैं कि उसकी सुविधा के लिए पहाड़ के एक डिवीज़न को कथित मैदान में शिफ्ट कर दिया गया इतना ही नहीं उसके बीटेक करने में भी विभागीय अधिकारियों ने शासनादेश की जमकर धज्जियाँ ही नहीं उड़ाई बल्कि इस गड़बड़झाले के खिलाफ की गयी शिकायत को भी आनन-फानन निबटाकर उसको क्लीन चिट दे डाली और उसकी प्रोन्नति तक कर डाली। मामले में सूबे पेयजल मंत्री प्रकाशपन्त का कहना है कि मामला उनके संज्ञान में अभी नहीं है यदि ऐसा कोई मामला उनके संज्ञान में आता है तो निसंदेह उस प्रकरण की जांच की जाएगी। उन्होंने कहा यह मामला प्रशानिक कदाचार का है और सरकार किसी भी तरह के कदाचार को सहन नहीं करेगी। 

उत्तराखंड पेयजल निगम के एक महिला अभियंता का है, यह महिला अभियंता देहरादून जिले के चकरौता के पास बने पुराड़ी खंड में तैनात थी। महिला अभियंता को पहाड़ों में परेशानी न हो विभागीय अधिकारियों ने पहाड़ के लोगों के लिए बनाये गए पेयजल निगम के इस कार्यालय को महिला अभियंता के कारण पुराड़ी से लगभग 50 किलोमीटर नीचे सुगम इलाके कालसी शिफ्ट कर दिया ताकि महिला अभियंता को कोई तकलीफ न हो भले ही पहाड़ की हजारों जनसंख्या वाले इलाके की जनता को पेयजल निगम के अभियंता के कार्यालय के चक्कर काटने को 50 किलोमीटर की दूरी क्यों न तय करनी पड़े।

इतना ही नहीं पेयजल निगम में तैनात इस महिला अभियंता पर आरोप है कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से इसने सरकारी नौकरी यानि अपर सहायक अभियंता रहते हुए देहरादून के डीआईटी से बीटेक की डिग्री सरकारी नौकरी पर तैनाती के दौरान हासिल की जबकि नियमानुसार इनको उस दौरान तीन साल की छुट्टी लेने के साथ ही विभागीय अनुमति लेनी चाहिए थी लेकिन इन्होने केवल एक वर्ष के लिए विभागीय अनुमति ली गयी थी, जबकि बीटेक की तीन साल की उपाधि डीआईटी से संस्थागत छात्रा के रूप में प्राप्त की, और इसके बाद प्रोन्नति तक हासिल कर ली। उल्लेखनीय है कि बीटेक की डिग्री हासिल करने वाले छात्र अथवा छात्रा को कम से कम 75% संस्थागत छात्र अथवा छात्रा के रूप में संस्थान में उपस्थिति अनिवार्य है।

मामले में कई वरिष्ठ अभियंताओं सहित तमाम इन्जिनेयरिग संस्थानों के प्रमुख लोगों का कहना है कि यह कैसे संभव है कि एक छात्र अथवा छात्रा एक तरफ तो विभाग में नियमित नौकरी करते हुए विभागीय एमबी और बिलों पर हस्ताक्षर करे और दूसरी तरफ वह किसी संस्थान से संस्थागत छात्र के रूप में पढाई ?  

 मामले में उत्तराखंड डिप्लोमा इंजिनियर संघ और उत्तराखंड भ्रष्टाचार निरोधी मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी अनुराग कुकरेती ने तत्कालीन प्रमुख सचिव पेयजल एस। राजू से 15 जुलाई 2011 को  शिकायत की थी कि उक्त अभियंता ने शासकीय नियमों के खिलाफ डिग्री हासिल करने के साथ ही गलत तरीके से प्रोन्नति प्रक्रिया में भाग लिया है।   

मामले में पेयजल निगम के अधिकारियों ने 19 अप्रैल2014 में मुख्य भियांता (मुख्यालय) और मुकुल सिन्हा तत्कालीन महाप्रबंधक (प्रशासन) को प्रकरण की जांच के आदेश दिए गए। मामले में विभागीय चयन समिति ने अपर सहायक अभियंता से सहायक अभियंता के पद पर पात्र अभियंताओं के नामों पर विचार किया जिसमें विभागीय 8।33 कोटा जो विभागीय अनुमति प्राप्त डिग्रीधारी अभियंताओं हेतु आरक्षित थे पर विचार किया गया मामले में जांचअधिकारीयों द्वारा उक्त तारीख तक जांच रिपोर्ट जाँच अधिकारी द्वारा नहीं दी गयी थी लिहाज़ा नियमानुसार उक्त प्रोन्नति प्रकरण को जांच रिपोर्ट के आने तक एक लिफ़ाफ़े में सीलबंद करके रख दिया गया।

 वहीँ चर्चा है कि 17 दिसम्बर 2014 को जांच अधिकारी द्वारा विभागीय उच्च अधिकारियों के दबाव में उक्त महिला अभियंता के खिलाफ चल रही जांच पर एक गोल मोल रिपोर्ट मुख्य अभियंता (मुख्यालय) को सौंप दी  गयी इसके बाद 31 दिसम्बर 2014 को मुख्य अभियांता (मुख्यालय) द्वारा महिला उक्त अपर सहायक अभियंता के पदोन्नति आदेश जारी कर दिए गए।   

कुल मिलाकर चर्चा है कि पेयजल निगम घपलों और घोटालों का संस्थान बनकर रह गया है जहाँ उत्तराखंड सरकार के शासनादेश और सरकार के कायदे कानून लागू नहीं होते यहाँ तैनात अधिकारी अपनी मर्जी के मालिक हैं ।

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