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धुंआ और कालिख फैलने का डर लगता हो तो फिर ऐसे कारनामे मत करिए !

इन्द्रेश मैखुरी

उत्तराखंड में जो डबल इंजन वाली सरकार है, लगता है कि इस बुलेट ट्रेन के मुहाने पर खड़े काल में भी उसका इंजन,कोयले से ही चल रहा है।इंजन कोयले से चलता है तो धुंआ भी बहुत होता है और कालिख भी बहुत होती है। धुंआ और कालिख चाहे जितना मर्जी फ़ैल जाए पर डबल इंजन वाले चाहते हैं कि धुंआ और कालिख, दिखनी नहीं चाहिए। इसीलिए डबल इंजन के कंडक्टर यानि मुख्य सचिव ने यह आदेश निकाला है कि सरकार के गद्दीस्थल यानि सचिवालय के अनुभागों में पत्रकारों का आना-जाना प्रतिबंधित रहेगा।

तर्क है कि कई सूचनाएं मंत्रिमंडल के सामने पेश किये जाने के पहले ही लीक हो जा रही हैं।वैसे तो मुख्य सचिव महोदय,यह सरकारी तंत्र के नकारेपन की अपने मुख से अभिव्यक्ति है कि आपके कारिंदे,सूचनाओं की गोपनीयता,मंत्रिमंडल की बैठक में  पहुँचने तक भी बचाने में सक्षम नहीं हैं।जो सूचनाओं की गोपनीयता को थोड़ी देर भी नहीं बचा सकते,उन्हें उस सचिवालय में मोटी पगार पर रखा क्यूँ है,आपने? लेकिन चलिए थोड़ी देर को आपका तर्क मान लेते हैं, पर तब रिटायरमेंट के उम्र पर पहुँच चुके,आप जैसे नौकरशाह के तर्कों के भोलेपन या नादानी पर हंसी आती है।

आपको किसने बताया मुख्य सचिव महोदय कि जो सूचनाएं सार्वजानिक हो रही हैं,उन्हें लेने पत्रकार  सचिवालय के अनुभाग-अनुभाग जा रहे हैं? जरा ऐसी चार सूचनाएं बताइए तो जो आपके मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठने के बाद वक्त से पहले सार्वजनिक हो गयी और आपने पत्रकारों को उनकी गोपनीयता भंग करने के लिए सचिवालय के सम्बंधित अनुभागों में जमावड़ा लगाए देखा? आप क्या समझते हैं कि केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी की भ्रष्टाचार से अधिकारियों का मनोबल गिरने की बात कहने वाली चिट्ठी या सचिवालय में बने 100 मीटर के पुल के फोटो के लिए पत्रकारों को अनुभाग-अनुभाग भटकना पड़ा होगा? आज तो व्हाट्स एप्प,फेसबुक का ज़माना है।जब ये ज़माना न भी था,तब भी खबरें खोजने वाले अनुभाग से खबर नहीं लाते थे,खबरें चल कर उन तक पहुँचती थी,आज भी पहुँचती हैं और आपकी रोक के बावजूद पहुंचेंगे।बाकी जो धंधेबाज हैं,वो तो दुर्गम गाँवों तक पहुँच रहे हैं,खबरों के जानकारी के नाम पर वसूली करने ! पर उनकी बात फ़िलहाल यहाँ नहीं करते।

आपका बहाना बहुत लचर है,उत्पल बाबू।जो सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ “जीरो टोलेरेंस’ का नारा लगाती घूम रही है,वह आखिर किस बात की पर्देदारी कर रही है कि सचिवालय में पत्रकारों को देखना तक नहीं चाहती ! जिन्होंने आपको इस कुर्सी पर बैठाया है,उत्पल बाबू,यह दरअसल उनकी सत्ता की हनक और डर दोनों ही है।पर अभूतपूर्व बहुमत के घोड़े पर सवार हो कर ऐसे तुगलकी फैसले लेने वालों की हनक भी जनता उतार देगी और उनके डर को भी सच करेगी। बातों के मीठे गोले छोड़ते हुए भी पर्याप्त तानाशाही बरतने वाले अपने ‘फस्क्या दाजू” हरीश रावत को याद करिए डबल इंजन को गनेल गति से चलाने वाले ड्राईवर बाबू। वे शब्दों के मीठे गोले छोड़ने के बावजूद मौका पड़ने पर पत्रकारों को पुलिस से पिटवाने से भी नहीं चूके। नतीजा क्या हुआ,सभी जानते हैं। इसलिए ज्यादा छिछालेदर हो,इससे पहले समझ जाइए।धुंआ और कालिख फैलने का डर लगता हो तो फिर ऐसे कारनामे मत करिए,जिनसे धुआं और कालिख पैदा होता है।धुआं और कालिख पैदा कीजियेगा तो वह आपके शासनादेश के कतरे में नहीं बंधा जा सकेगा।

devbhoomimedia

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