सरकार पारदर्शी तो मीडिया पर प्रतिबन्ध क्यों ?
- सरकार व शासन को सचिवालय के भीतर मीडिया का प्रवेश बिलकुल भी पसंद नहीं
- कहीं नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ उत्तराखंड की जनता की भावनाओं से इतर कुछ निर्णय लेने वाला तो नहीं !
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : भाजपा का पारदर्शी और भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स की सरकार के दावे पर खुद भाजपा सरकार ही सवालिया निशान लगा रही है। यानि यदि सरकार और शासन में सब कुछ पारदर्शी है तो सरकार को सचिवालय के अनुभागों में मीडिया को प्रतिबंधित करने के लिए गोपनीय शासनादेश क्यों जारी करना पड़ा ? जबकि जो शासनादेश मुख्यसचिव के हस्ताक्षरों से जारी हुआ है उस तरह का एक और निर्देश इससे पहले भी अधिकारियों और कर्मचारियों को पहले भी जारी हो चुका है। सरकार द्वारा 27 दिसम्बर 2017 को जारी इस आदेश में साफतौर पर यह जताने की कोशिश की गयी है कि सरकार व शासन को सचिवालय के भीतर मीडिया का प्रवेश बिलकुल भी पसंद नहीं है। याने सचिवालय में जो कुछ फाइलों में या मौखिक निर्देशों में चल रहा है वह भाजपा की पारदर्शिता और ज़ेरोटालरेन्स की नीतियों के उलट है अन्यथा सरकार को ऐसा गोपनीय शासनादेश जारी नहीं करना पड़ता।
देवभूमि मीडिया डॉट कॉम के हाथ लगे इस गोपनीय शासनादेश की यदि एक -एक पंक्ति का शब्दतः अर्थ निकला जाय तो यह साफ़ है कि प्रदेश के ह्रदय कहे जाने वाले सचिवालय में सब कुछ सामान्य नहीं है। यानि नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ उत्तराखंड की जनता की भावनाओं से इतर कुछ निर्णय लेने वाला है तभी तो सरकार को यह निर्देश जारी करने पड़े। समस्त अपर मुख्य सचिव समस्त प्रमुख सचिव , सचिव सहित प्रभारी सचिवों को जारी पत्र में कहा गया है कि मंत्रिमंडल के समक्ष यह विषय आया है कि मीडिया में कैबिनेट बैठक की जानकारियां लीक हो रही है और मंत्रिमंडल की बैठक से पहले ही समाचार प्रकाशित हो रहे हैं कि मंत्रिमंडल की बैठक में ”अमुक” विषय या प्रकरण आने वाला है। पत्र में लिखा गया है कि प्रायः यह देखने में आ रहा है कि विभागों द्वारा मंत्रिमंडल के प्रकरणों के सम्बन्ध में गोपनीयता बनाये रखने सम्बन्धी पूर्व में प्रदत्त दिशा -निर्देशों का पूर्णतः अनुपालन नहीं हो रहा है. उक्त निर्देशों का अनुपालन न होने के कारन मंत्रिमंडल द्वारा अत्यंत खेद एवं आपत्ति व्यक्त की गयी है।
पत्र में कहा गया है कि मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत विषय गोपनीय प्रकृति एवं अति संवेदनशील प्रकार के होते हैं। मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत होने वाले विषय अथवा प्रस्ताव का बैठक से पूर्व समाचार पत्रों अथवा मीडिया में प्रकाशित होना नितांत खेदजनक एवं आपत्तिजनक है। जिसके कारण गोपनीयता
प्रभावित होती है। वरन प्रकरण में होने वाले सम्यक निर्णय भी प्रभावित होने की संभावना बानी रहती है। पत्र में उपरोक्त अधिकारियों से अनुरोध किया गया है कि यह सुनिश्चित कर लिया जाय कि मंत्रिमंडल की कार्य सूची में सम्मिलित होने वाले विषय अथवा निकट भविष्य में मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्तावित विषयों की गोपनीयता बनी रहे तथा उन्हें मंत्रिमंडल की बैठक से पूर्व समाचार पत्रों अथवा मीडिया में प्रकाशित न हो पाने के सम्बन्ध में सम्यक कार्यवाही की जाय। पत्र में अधीनस्थ अधिकारियों अथवा कर्मचारियों को अपने स्तर से निर्देशित करने का दिशा निर्देश भी पांच बिंदुओं में दिया गया है ।
इस पत्र के पांचवें बिंदु में लिखा है कि प्रस्तावित होने वाले विषयों पर अतिरिक्त अन्य से अनावश्यक आप चर्चा न करें,साथ ही विभागीय उच्चाधिकारियों के अतिरिक्त अनुभागों अथवा कार्यालयों में बिना शासकीय कार्य के अनधिकृत बाहरी व्यक्तियों अथवा पत्रकारों का पूर्णतः प्रवेश प्रतिबंधित रखा जाय।
पत्र के अंत में कह गया है कि यदि कोई विषय अथवा प्रकरण मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत होने से पूर्व ही समाचार पत्रों अथवा मीडिया में प्रकाशित हो जाता है तो सम्बंधित विभाग के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव ,सचिव और प्रभारी सचिव तत्परता से छानबीन करेंगे कि विषय वस्तु किस प्रकार से लीक हुई और वे इस समबन्ध की अपनी आख्या मुख्य सचिव एवं सचिव मंत्रिमंडल को प्रस्तुत करेंगे।
कुलमिलाकर इस पत्र से यह साफ़ हो जाता है कि सचिवालय में कहीं न कही कुछ तो जरूर गड़बड़ है जो उत्तराखंड शासन पत्रकारों को सचिवालय में प्रवेश को प्रतिबंधित करना चाहता है। इससे सरकार की पारदर्शिता और जीरो टालरेन्स की नीति कितनी सही है और कितनी बयानबाजी तक सिमित है यह साफ़ हो जाता है। शायद उत्तराखंड के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब प्रदेश शासन के अधिकारियों को मीडिया को प्रतिबंधित करने के लिए इस तरह का शासनादेश निकलना पड़ा हो।