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मानव जनित पर्यावरणीय आपदा से नैनी झील का खतरे में है अस्तित्व !

अनियंत्रित निर्माण कार्यों से भी झील का जलस्तर हो रहा कम 

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : विश्व विख्यात नैनी झील जहाँ मानव जनित पर्यावरणीय आपदा से प्रभावित होने के कगार पर है। झील के चारों तरफ पानी के जबरदस्त दोहन के साथ -साथ अनियंत्रित निर्माण कार्यों से भी झील का जलस्तर दिन ब दिन कम होता तजा रहा है, इस गिरते जलस्तर से इसमें अपना जीवन जी रही मछलियां ही नहीं बल्कि पर्यावरणविद भी तड़प रहे हैं। कहीं ऐसा न हो गिरते जलस्तर के चलते यह झील इन मछलियों की कब्रगाह बन जाए।

नैनीताल के पुराने लोगों की मानें तो उन्होंने अपने जीवन में नैनी झील का इतना कम स्तर कभी भी नहीं देखा। नैनी झील का जलस्तर कम होने से उसके दुष्परिणाम भी सामने दिखाई देने लगे हैं। झील का जलस्तर आजकल सामान्य से 18 फ़ीट नीचे गिरते ही जहाँ तहाँ पानी जमा हो गया है, और इन छोटे छोटे जल कुण्डों में सैकड़ों मछलियों समेत जल जीव फंस गए हैं। झील में अपना जीवन निर्वहन करने वाले कई जलीय जंतुओं को मौत का खतरा हो गया है। झील में रहने वाली महाशीर और कॉमन कार्प प्रजाति की मछलियों को अब शिकारी चीलों और भूखे कुत्तों से भी जान का खतरा बन गया है। झील के सुनसान होते ही झील के ऊपर मंडरा रहे चील- कौवे और झील के इर्द-गिर्द घूम रहे आवारा कुत्ते पानी की कमी की मारी और तड़पती इन मछलियों पर झपटने के लिए तैयार नज़र आ रहे हैं ।

   गौरतलब हो कि इन मछलियों को झील से गन्दगी साफ़ करने व झील में पैदा होने वाली काई(एल्गी) खाने के लिए रखा गया है लेकिन अब इन झील को जीवन देने वाली इन सैकड़ों मछलियों पर ही जान का ख़तरा मंडरा रहा है। गिरते जलस्तर के चलते ये आसानी से चील और आवारा कुत्तों का शिकार हो रही हैं।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की बीते साल ही नैनीताल ने अपना 175 वां साल मनाया था। माना जाता है कि नैनीताल की खोज एक ब्रिटिश व्यवसायी पीटर बारेन ने 1839 के नवम्बर में इसे नैनीताल नाम दिया था।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में इस झील के पानी का इतना कम जलस्तर कभी नहीं देखा वहीँ ये लोग यह भी मानते हैं पर्यटकों का भारी दबाव और झील के चारों तरफ पानी को खींचने को लगाये गए पम्प और पानी का वेजा इस्तेमाल ही झील के गिरते जलस्तर का कारण है। स्थानीय लोगों का कहना है यदि नैनीताल व आसपास की झीलों के इर्द-गिर्द अवैध निर्माण ही नही बल्कि सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक न लगी तो अन्य प्राकृतिक झीलों की भी यही हालत हो जाएगी।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की बीते साल ही नैनीताल ने अपना 175 वां साल मनाया था। माना जाता है कि नैनीताल की खोज एक ब्रिटिश व्यवसायी पीटर बारेन ने 1839 के नवम्बर में इसे नैनीताल नाम दिया था।

झील की स्थिति देख खुद भी हूँ परेशान : संजीव

नैनी झील के गिरते जलस्तर पर नैनीताल के विधायक संजीव आर्य का कहना है वे खुद भी इस स्थिति को लेकर परेशान है क्योंकि उनकी शिक्षा यहीं हुई है और उन्होंने अपने जीवनकाल में इतना कम जलस्तर इस झील का नहीं देखा।

उन्होंने बताया कि इस मामले में सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी चिंतित हैं उन्हीं की सलाह पर नागपुर की एक कंसल्टेंट्स ”नीरी” को नैनी झील में गिरते जलस्तर की जानकारियां जुटाने का काम दिया गया है उनकी रिपोर्ट आते ही उसपर विचारोपरांत झील सुधार की दिशा में कार्य शुरू कर दिया जाएगा।

उन्होंने बताया कि झील के गिरते जलस्तर पर सभी विभागों की अपनी अलग-अलग राय है कोई इसको पौराणिक मान्यताओं से जोड़ता है तो कोई कुछ और तर्क देता है। उन्होंने कहा मेरा मानना है कि नैनी झील में जो 56 नाले प्राकृतिक रूप से गिरते थे बीते कुछ समय पूर्व इनको सीवर लाइन से जोड़कर शहर से बाहर कर दिया गया है यह भी झील में पानी के स्तर को बढ़ाने में सहायक थे इसपर भी विचार किया जा रहा है।

 

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