आखिर क्यों हुई ओनिडा फैक्ट्री में आग से मौत के मामले में एसआईटी जांच के आदेश ?
- ओनिडा कंपनी में मौत के मामले की जांच हाईकोर्ट ने एसआईटी को सौंपी
- तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह और डीआईजी पर प्रबंधन का पक्ष लेने का था आरोप !
नैनीताल : हाईकोर्ट ने 2012 में हरिद्वार में ओनिडा कंपनी में आग लगने से 12 लोगों की मौत के मामले की नए सिरे से जांच के आदेश किए हैं। कोर्ट जांच के लिए एसआईटी गठित करने को कहा है। न्यायमूर्ति सुधांशू धुलिया की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई की। यदि जांच ईमानदारी से हुई तो एक बार फिर इस मामले में अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री ओम प्रकाश और सात दिन के लिए डीआईजी के रहे केवल खुराना की मुसीबतें बढ़ सकती हैं।
ओनिडा कंपनी की हरिद्वार के मुडियाकी स्थित मिर्क इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में 8 फरवरी 2012 को अग्निकांड हुआ था। इसमें 12 कर्मचारियों की मौत हो गई थी। मृतकों में शामिल अभिषेक के पिता रवींद्र कुमार ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई है। कहा गया है कि ओनिडा कंपनी में आग लगने पर यहां कार्यरत 12 कर्मचारियों की जल कर मौत हो गई थी। इस मामले में हरिद्वार के रानीपुर थाने में प्रभावितों के परिजनों ने एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मृतकों में याची रविंद्र का बेटा अभिषेक भी शामिल था।
याचिका में कहा गया है कि आईपीएस अधिकारी केवल खुराना और एसएचओ राजीव डंडरियाल ने एफआईआर से कंपनी के मालिक जी आई मीरचन्दानी और कंपनी के मैनेजर का नाम हटा दिया था। बाद में उच्चाधिकारियों से शिकायत करने पर मामला पुन: दर्ज किया गया। एकलपीठ ने मंगलवार को मामले में सुनवाई की। न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश तो नहीं दिए लेकिन सरकार को आदेश दिए है कि मामले की जांच एसआईटी से कराई जाय। फिलहाल पांच साल से अधिक समय बीतने के बाद अब एसआईटी अब इस मामले की जांच करेगी।
गौरतलब हो कि इस मामले की जांच के बाद तत्कालीन जांच अधिकारी निरीक्षक महेंद्र सिंह नेगी द्वारा की गयी थी जिसमें ओनिडा फैक्ट्री मालिक और प्रबंधन के विरुद्ध 304 IPC के अपराध के ठोस साक्ष्य निरीक्षक ने अपनी जांच में शामिल किये थे। मामले में धारा 304 की भनक लगने के बाद ओनिडा प्रबंधन द्वारा जांच अधिकारी को धन का प्रलोभन देकर मुकदमे में अंतिम रिपोर्ट लगाने का प्रयास किया गया। जिसकी पुष्टि तत्कालीन एसएसपी हरिद्वार द्वारा कराई गयी गोपनीय जांच के में सामने आया। इतना ही नहीं बाद में तमाम दबाव के बाद पुलिस अधिकारीयों ने जांच अधिकारी महेंद्र सिंह नेगी को जांच से हटा दिया था। ताकि मामले में धारा 304 को धारा 304 A में परिवर्तित किया जा सके।
मामले में आरोप है कि प्रलोभन के प्रयास सफल न होने के बाद ओनिडा प्रबंधन द्वारा विभिन्न माध्यमों से जांच को धारा 304 A में परिवर्तित करने के लिए पुलिस मुख्यालय और उत्तराखंड शासन में काफी प्रयास किये गए। जिसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह द्वारा जांच के सम्बन्ध में तीन बार जांच अधिकारी को अपने कार्यालय में बुलाकर अपनी मध्यस्थता में मुल्जिमों की मीटिंग करवाई गयी। चर्चा है कि शायद ही किसी मुकदमे की जांच के सम्बन्ध में यह एक मात्र ऐसा प्रकरण रहा है जिसमें प्रमुख सचिव गृह द्वारा किसी अभियोग में व्यक्तिगय रूचि लेते हुए न केवल हस्तक्षेप ही किया गया बल्कि जांच अधिकारी और मुल्जिमों के बीच मध्यस्थता तक की गयी।
मामले में जब तत्कालीन एसएसपी और जांच अधिकारी के किसी भी तरह से प्रलोभन या दबाव में नहीं आने पर ओनिडा प्रबंधन ने पुलिस मुख्यालय को 25 अप्रैल 2013 को पत्र देकर एसएसपी हरिद्वार को जांच स्थानांतरित लड़ने के लिए आदेश पारित तक करवाया गया लेकिन तत्तकालीन एसएसपी ने जांच को महत्वपूर्ण बताते हुए जांच स्थानांतरित करने के आदेश को मानने से ही इंकार कर दिया।क्योंकि मामले में जांच अधिकारी की छवि और निष्पक्षता दोनों ही महत्वपूर्ण थे।
वहीँ 23 मई 2013 को एक और पात्र डीजीपी को भेजा गया जिसमें कहा गया कि एसएसपी हरिद्वार द्वारा उनके आदेश के बाद भी जांच अधिकारी को नहीं हटाया गया है लिहाज़ा उन्हें हरिद्वार जिला पुलिस से न्याय की उम्मीद नहीं है और यह जांच हरिद्वार से इतर किसी और जनपद से कराई जाए। इस पत्र पर डीजीपी ने 6 जून 2013 को डीआईजी देहरादून को जांच किसी अन्य जांच अधिकारी से करने के आदेश एसएसपी हरिद्वार को दिए गए। यह पत्र 6 जून 2013 को भेजा गया यह पत्र एसएसपी हरिद्वार को 7 जून को मिला जिसपर एसएसपी हरिद्वार द्वारा डीआईजी को बताया गया कि मामले में ओनिडा प्रबंधन के खिलाफ कुर्की की कार्रवाही प्रस्तावित है लिहाज़ा अब जांच स्थानांतरित करना औचित्यपूर्ण और न्यायसंगत नहीं। इस पत्र के तीन दिन बाद ही एसएसपी हरिद्वार का स्थान्तरण कर दिया गया और एसएसपी के अगले दिन 14 जून 2013 को केवल खुराना जिन्हे डीआईजी के सात दिन के अवकाश पर होने के कारण कार्यभार दिया गया था अभूतपूर्व आदेश देते हुए इस प्रकरण की जांच हरिद्वार से थाना मुनिकी रेती कर दी गयी। और इतना ही नहीं मामले में इतनी जड़ली दिखाई गयी कि एक ही दिन में जांच के सभी दस्तावेज मुनि की रेती भेज दिए गए।
इतना ही नहीं इस मामले में ओनिडा प्रबंधन के गैर जमानती वारंट प्राप्त करने के बाद अभियुक्तों के फरार जहाँ कुर्की की कार्रवाही प्रस्तावित थी लेकिन तत्कालीन प्रमुख सचिव ने जांच ट्रांसफर होने के अगले ही दिन मामले से ओनिडा मालिक का जांच से नाम हटाते हुए धारा304 को हटाते हुए इसे 304 A में में बदलने के आदेश दे दिए। यहाँ तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह पर आरोप है कि उन्हें मामले में विधिक राय तीन जून 2013 को ही मिल चुकी थी लेकिन उनके द्वारा इस विधिक राय को अपने पास लंबित रखा गया और जांच ट्रांसफर के ठीक अगले ही दिन केवल खुराना को भेज दी गयी। चर्चा है कि इसमें दोनों अधिकारियों की संलिप्तता साफ़ थी। वहीँ चर्चा यह भी है कि देश के इतिहास में यह एक मात्र मामला ऐसा है जिसमें शासन स्तर पर किसी अभियोग की जांच में जांच को लेकर विधिक राय दी गयी हो।
मामले में न्याय की उम्मीद न होने के चलते ही रविंद्र कुमार ने मामले में उच्च न्यायलय में न्याय के लिए गुहार लगायी थी। लेकिन अब यह देखना होगा कि प्रदेश पुलिस के अधीन कार्य करने वाले एसआईटी क्या न्यायालय से न्याय पाने की उमीदों पर कितना खरा उतर पाती भी है या नहीं। वहीँ सूत्रों का दावा है कि रविंद्र सिंह मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर एक बार फिर उच्चतम न्यायालय में भी गुहार लगा सकते हैं।