Uttarakhand

केवल खुराना और ओमप्रकाश की भूमिका पर हाई कोर्ट ने उठाये सवाल

मंगलौर की ओनिडा फैक्ट्री में अग्निकांड का मामला

प्रभावित परिवार की सीबीआई जांच की मांग पर HC कर सकती है विचार  

देहरादून : उत्तराखंड के भ्रष्ट अधिकारीयों और धन्ना सेठों के बीच किस कदर गठजोड़ बना हुआ है इसका ताज़ा मामला हरिद्वार जिले के मंगलौर इलाके की ओनिडा फ़ैक्ट्री में हुआ अग्नि काण्ड है।  इस मामले में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों व फैक्ट्री मालिक के गठजोड़ सामने आया है जिसने फ़ैक्ट्री में हुए अग्निकांड में जिन्दा जले 11 मजदूरों के परिवारों को ऐसे अधिकारीयों ने  चाँद चांदी के टुकड़ों के खातिर नैसर्गिक न्याय तक मिलने से वंचित कर दिया।  

गौरतलब को कि साउथ दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में शुक्रवार, 13 जून 1997 को फिल्म ‘बॉर्डर’ का शो चल रहा था। इस दौरान बेसमेंट में लगे जनरेटर से आग धधक उठी थी ,दिल्ली के उपहार सिनेमा अग्निकांड जिस में 59 लोगों की आग में झुलसकर मौत हुई थी। देश की राजधानी में हुए इस भीषण हादसे में सिनेमा मालिकों की लापरवाही साफ तौर पर सामने आई थी। आग सिनेमा हाल के बेसमेंट में रखे जनरेटर से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरे हाल को आग ने अपने आगोश में ले लिया। हाल के भीतर  भगदड़ मचने से 100 से ज्यादा लोग घायल भी हुए थे। सिनेमा के मालिक गोपाल और सुशील अंसल को इस अग्निकांड का दोषी माना गया। 

बीते दिन वर्ष 2012 में हरिद्वार में ओनिडा कंपनी में हुए अग्निकांड में 11 लोगों की जलकर हुई मौत के मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर नैनीताल हाइकोर्ट ने राज्य सरकार, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री ओमप्रकाश और सीबीआई समेत आईपीएस केवल खुराना और एसएचओ रवींद्र डंडियाल को नोटिस भेज कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता रवींद्र कुमार ने हाइकोर्ट से इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की है। ज्ञात रहे कि इस हादसे में रवींद्र कुमार के इकलौते पुत्र की भी जलने से मृत्यु हो गई थी। याचिका पर सुनवाई जस्टिस वीके बिष्ट की बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अनुसार इस भीषण अग्निकांड में कुल 11 लोगों की जलने से मौत हो गई थी।

आरोप है कि देहरादून के तत्कालीन एसएसपी केवल खुराना जो कुछ समय के लिए डीआईजी का कार्यभार देख रहे थे ने हरिद्वार जिले से जांच को हटाकर मुनिकी रेती के इंस्पेक्टर राजीव डंडरियाल को नियमों से परे जाकर सौंप दी थी जबकि इस मामले की इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह नेगी जांच कर रहे थे और उनकी जांच सही दिशा में थी। वहीँ आरोप है कि तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह जो वर्तमान में अपर मुख्यसचिव मुख्यमंत्री हैं ने तीन-तीन बार जांच अधिकारी को अपने कार्यालय में बुलाकर अपराधियों के साथ मध्यस्थता की भूमिका अदा की। वहीँ आईपीएस अधिकारी ने राज्य शासन तक को गुमराह करते हुए अपने प्रोन्नति के दौरान लंबित मुकदमों की जानकारी नहीं दी यह भी चर्चा है यदि वे इसकी जानकारी देते तो उनकी प्रोन्नति नहीं हो सकती थी।

सनद रहे कि जिस किसी अधिकारी के खिलाफ कोई मुकदमा पेन्डिंग रहता है इस दौरान मुक़दमे की समाप्ति तक उसकी प्रोन्नति नहीं हो सकती। वहीँ इस मामले में यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि जब CBCID के पास केवल खुराना और राजीव डंडरियाल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत पर्याप्त सबूत थे तो इस मामले में कैसे अंतिम रिपोर्ट लगा दी गयी, जबकि शासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मामले की जांच CBCID से वापस लेकर SIT से करने के आदेश दिए थे लेकिन इस मामले की जांच तत्कालीन DGP ने SIT को नहीं सौंपी जिससे तत्कालीन DGP की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गयी।

रवींद्र कुमार का आरोप था कि पुलिस शुरू से ही इस मामले में ओनिडा के मालिक और प्रबंधक को बचाने का प्रयास कर रही थी। पुलिस ने प्राथमिकी में उनके नाम तक दर्ज नहीं किए। बाद में इस मामले की शिकायत डीआईजी से की गई तो उनके हस्तक्षेप पर इनके नाम एफआईआर में शामिल किए गए।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि मामले में बड़े लोगों के आरोपी होने के चलते पुलिस इसकी जांच में ढिलाई बरत रही है और सात वर्षों में भी जांच में प्रगति नहीं हुई है। रवींद्र कुमार ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की जिस पर कोर्ट ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं।

अब राज्य सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि वह 11 निर्दोष की मौत के मामले में गुनाहगार और मृतकों को मिलने वाले नैसर्गिक न्याय के खिलाफ जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच अथवा SIT से जांच करवाएगी ताकि आम जनता में सरकार की निष्पक्ष छवि सामने आये।

devbhoomimedia

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