Uttarakhand

High Court ने खुद को घोषित किया गौवंश का कानूनी संरक्षक

  • राज्य में कोई भी व्यक्ति गाय, बैल, बछिया या बछड़े का वध नहीं करेगा : कोर्ट 
  • राज्य भर में गौमांस और उसके उत्पादों की बिक्री पर भी प्रतिबंध
  • एक वर्ष के अंदर गौ-संतति और आवारा मवेशियों के लिए बनाई जाय गौशाला
  • सार्वजनिक स्थानों पर गौवंशीय पशुओं को छोड़ने वाले लोगों के खिलाफ हो कार्रवाही 

NAINITAL : उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में गौवंश की रक्षा के लिए खुद को कानूनी संरक्षक घोषित किया। हाई कोर्ट ने राज्य में गौमांस और उसके उत्पादों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इसने हिमालयी राज्य उत्तराखंड में गायों और अन्य आवारा मवेशियों के कल्याण के लिए राज्य सरकार को 31-सूत्री दिशा निर्देश  भी जारी किए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों, पुस्तकों और धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए हरिद्वार निवासी अलीम की गौवंश की सुरक्षा से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया।

सोमवार को खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि राज्य में कोई भी व्यक्ति गाय, बैल, बछिया या बछड़े का वध नहीं करेगा और न ही उनका सीधे, किसी एजेंट या नौकर के माध्यम से वध के लिए निर्यात करेगा। खंडपीठ ने अपने आदेश के माध्यम से राज्य भर में गौमांस और उसके उत्पादों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया। न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि हरिद्वार जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार ने अपने जवाब में कहा है कि उत्तराखंड गौ-संतति संरक्षण अधिनियम 2007 के तहत एक पखवाड़े में दो से तीन मामले दर्ज किए जाते हैं। खंडपीठ ने इसे गौवंश के लिए चिंताजनक बताया। न्यायालय ने यह भी कहा कि हरिद्वार जिले में ही गौवंश का वध किया जाना आम है। 

खंडपीठ ने राज्य के निकायों को निदेर्श दिया है कि वे एक वर्ष के अंदर गौ-संतति और आवारा मवेशियों के लिए गौशाला और आश्रय स्थलों का निमार्ण करें। खंडपीठ ने सभी जिलाधिकारियों को यह भी निदेर्श दिया कि 25 गांवों के समूह में गौ-संतति के लिए एक गौशाला या गौ-सदन का निमार्ण किया जाए। खंडपीठ ने कहा कि इन गौशालाओं या गौ-सदनों में बिजली-पानी की पयार्प्त व्यवस्था की जाये और इनके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाये। खंडपीठ ने राज्य सरकार को यह भी निदेर्श दिया कि सड़कों, सार्वजनिक स्थानों पर गौवंशीय पशुओं को छोड़ने वाले लोगों के खिलाफ पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के तहत मामला दर्ज करें और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें।

न्यायालय ने आवारा पशुओं के खिलाफ क्रूरता के बजाय दया भाव से पेश आने की नसीहत दी। न्यायालय ने दैनिक उपयोग में लाये जाने वाले पशुओं की सुरक्षा के लिए भी निदेर्श जारी किये हैं। गौरतलब है कि हरिद्वार निवासी किसान अलीम ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि हरिद्वार के सोलापुर गडा गांव में एक व्यक्ति आवारा गाय और सांडों का वध कर रहा है। खून से गांव के जल निकाय प्रभावित हो रहे हैं जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। उसने न्यायालय से इस पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।    

devbhoomimedia

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