POLITICS

कहीं मंत्री बनने की राह में रोड़ा तो नहीं था घोड़ा !

  • मामला की गेंद अब सरकार छिटक उच्च न्यायलय के पाले में जा पहुंची !
  • विधायक अपने आपको बताते रहे हैं निर्दोष और मामले को कांग्रेस का षड्यंत्र 

देहरादून : पुलिस का  बेचारा घोड़ा शक्तिमान स्वर्ग तो सिधार गया लेकिन  विधायक गणेश जोशी के मंत्री बनने की राह में रोड़ा जरूर अटका गया ,यही कारण है कि सरकार के सत्तासीन होते ही छह महीने बाद एक दिन अचानक घोड़े के मामले को वापस लेने का फरमान जारी कर दिया गया। लेकिन राजनीतिक जानकार सरकार के इस कदम से खुश नहीं हैं वहीँ पशु प्रेमियों में भी मामले को लेकर उबाल है कि भाजपा एक तरफ तो गौ -रक्षा की बात करती है तो वहीँ दूसरी तरफ एक जानवर को मारने के आरोपी को अभय दान देकर क्या सन्देश देना चाहती है यह समझ से परे है. 

 बीते  दिन सरकार की तरफ से शक्तिमान घोड़े की ह्त्या वाले मामले को वापस लिए जाने सम्बन्धी एक पत्र जो जिलाधिकारी देहरादून को सम्बोधित था समाचारों की सुर्खियां तो जरूर बन गया लेकिन पत्र को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं सत्ता के गलियारों से लेकर चौपालों तक गूंजने लगी. कोई इसे सरकार का अच्छा कदम बता रहा था तो कोई सरकार के इस कदम को पशु विरोधी।  लेकिन सत्ता के गलियारों में इसे विधायक गणेश जोशी के मंत्री बनने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बताया जा रहा है। क्योंकि त्रिवेंद्र मंत्रिमंडल  में अभी मंत्रियों के दो पद रिक्त चल रहे हैं और लगभग एक दर्जन से ज्यादा विधायक मंत्री बनने के लिए जुगाड़ भिड़ा रहे हैं।  इनका कहना है कि जब तक विधायक गणेश जोशी के सर पर शक्तिमान घोड़े को मारने का अभिशाप लगा रहेगा तब तक भाजपा उन्हें किसी भी कीमत पर मंत्रिपद से नहीं नवाजने वाली। वहीँ विधि विशेषज्ञों का भी कहना है कि  भले ही सरकार ने मामले को वापस लेने की सिफारिश की है लेकिन अन्ततः  इस मामले को नैनीताल उच्च न्यायालय से स्वीकृति के बाद ही वापस माना जायेगा। कुल मिलकर अब शक्तिमान प्रकरण की गेंद अब सरकार के बजाय हाई कोर्ट के पाले की तरफ सरक गयी  है।    

वहीँ दूसरी तरफ भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधायक गणेश जोशी बीते लगभग चार महीनो से भाजपा के केंद्रीय नेताओं से पींगे बढ़ा रहे थे इतना ही नहीं वे देहरादून और मसूरी से लेकर दिल्ली तक भाजपा नेताओं के लगभग सभी कार्यक्रमों में कभी उनका स्वागत तो कभी उन्हें प्रतीक चिन्ह देते हुए नज़र आते रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि इस मामले में वे भाजपा के कई नेताओं से अपने आपको निर्दोष बताते हुए इस प्रकरण को कांग्रेस सरकार की चाल बताते हुए सूबे के मुख्यमंत्री पर लगातार दबाव भी बनाये हुए थे कि उनका मामला  सरकार वापस ले ले।  आखिरकार बीते  दिन राज्य सरकार ने मामला वापस लेने के लिए जिलाधिकारी देहरादून को पत्र भेजकर मामले को वापस लेने का अनुरोध कर ही  दिया।  लेकिन विधि विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला तब तक वापस नहीं हो सकता जब तक राज्य के उच्च न्यायलय से विधायक को क्लीन चिट नहीं मिल जाती।   

 

devbhoomimedia

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