VIEWS & REVIEWS

हाय री जनता, लो आ गया चुनावी साल, रो लो अपने दुखड़े

गैरसैंण में होगा बजट सत्र, चुनावी वर्ष में नहीं लगेगी नेताओं को ठंड

चार साल मौज में काटे, रिबन काटने की झड़ी लगेगी

घाट के 70 गांवों की मांग होगी पूरी और बदहाल पहाड़ का होगा कायाकल्प

गुणानंद जखमोला की फेसबुक वाल से साभार 
प्रदेश सरकार फरवरी में गैरसैंण में बजट सत्र आयोजित करने की तैयारी कर रही है। गैरसैंण में फरवरी में भी जनवरी की सी ठंड होती है। पहले आयोजित होने वाले तीन दिन के सत्र को दो दिन में निपटाने वाले हमारे माननीय पूरे बजट सत्र में गैरसैंण में रहेंगे। इस साल उन्हें ठंड नहीं लगेगी। सिर पर कोरी हवा नहीं लगेगी। क्योंकि ये चुनावी साल है। हर हाल में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी विधायक और मंत्रीगण किसी तरह से वहां तीन या पांच दिन या कुछ और दिन गुजारेंगे। क्योंकि उन्हें पता है कि चुनावी साल है तो कुछ दिन की ठंड सहकर पांच साल मौज लेंगे। जबकि यह नहीं सोचते हैं कि गैरसैंण की जनता विकास के अभाव में भी जीवन पर्यंत प्रकृति के साथ किस तरह से समन्वय बिठाती होगी?
जब बजट सत्र की बात चल रही है तो बता दूं कि नंदप्रयाग के घाट क्षेत्र के 70 गांवों के लोग सड़क को डेढ़ लेन करने की मांग कर रहे हैं। उनकी मांग पर सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। मीडिया भी इस मामले को दबाने में जुटा हुआ है, जबकि ये ऐतिहासिक आंदोलन है। एक ओर सरकार बिना बात के चारधाम महामार्ग के नाम पर आपदा को न्योता दे रही है लेकिन दूसरी ओर जनता की जरूरतों के लिए सरकार के पास बजट का अभाव हो जाता है।
चुनावी साल है तो मंत्रियों और नेताओं के तूफानी दौरे होंगे। विकास योजनाओं की झड़ी लग जाएगी। रिबन काटने के लिए होड़ रहेगी। क्योंकि नेताओं को पता है कि चार साल कुछ नहीं किया तो कोई बात नहीं, पांचवें साल जनता के आगे विकास रूपी खुरचन फेंक तो जनता खुश हो जाएगी। नेता लोकतंत्र को बहुत अच्छे से समझते हैं। उन्हें पता है कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है और दूसरे जनता की अपनी समझ नहीं होती। भावनाएं, निजी स्वार्थ, पार्टी या नेता के प्रति निष्ठा भाव से वो वोट हथिया लेंगे।
बस, आप देखते जाइए, इस साल पूरे उत्तराखंड में विकास की गंगा बहेगी। जनता से कोसो दूर रहने वाले नेता जनता के आंसू पोंछते नजर आएंगे। हमदर्द बन जाएंगे। विकास के वादे होंगे, नये सपनों का उत्तराखंड बनाने की बात होगी और मासूम जनता एक बार फिर उनकी झांसे में आ जाएगी। यही तो लोकतंत्र है। ये सिलसिला जारी रहेगा जब तक कि जनता पूरे पांच साल का हिसाब नहीं लेगी।

Related Articles

Back to top button
Translate »