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”धन दा” की ही-मैन वाली छवि को तबादला सूची ने कर डाला खंडित

ये धंधा नहीं है मंदा,”धन दा”

ट्रांसफर लिस्ट में धंधा  उच्च शिक्षा में धंधा 

कथनी में ”धनदा”,करनी में धंधा 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

अपने प्रोटोकाल की चिंता करने के चलते चर्चाओं में रहकर विभाग चलाने की कला जानने वाले प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री आजकल अपने कुछ फैसलों से एक बार फिर चर्चाओं में हैं। देश की पूर्व मानव संसाधन मंत्री स्मृति इरानी द्वारा विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने के फैसले से प्रभावित होकर मंत्री जी ने भी अपने प्रदेश के सभी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में तिरंगा फहराने का क्रांतिकारी आदेश जारी किया तो देश प्रेमी समाज में नेताजी की प्रशंसा भी खूब हुई।

सूबे की शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने की ठान चुके प्रयोगवादी मंत्री जी ने छात्र-छात्राओं के लिए यूनिफार्म पहनने का भी फैसला सुना डाला। इसी तरह जब एक दीक्षान्त समारोह में मुख्य मंत्री ने समारोह में पहना जाने वाला गाउन पहनने से इंकार कर दिया कहा कि हम अंग्रेजों की परंपराओं को कब तक आगे बढ़ाएंगे इस मुद्दे को भी मंत्री जी ने मीडिया सोशल और मीडिया पर लपकने और श्रेय लेने में कोई देरी नहीं लगाई। मंत्री जी की कार्यशैली से वाफिक लोगों का कहना है कि जेएनयू के कुलपति द्वारा विश्व विद्यालय परिसर में छात्रों में राष्ट्र भक्ति जगाने के लिए टैंक लगाने की मांग को देखते हुए अब उम्मीद की जा रही है कि मंत्री जी अब उत्तराखंड के विश्व विद्यालयों में देश के सैन्य भंडारों में कबाड़ हो चुके टैंकों को लगवाने की मांग को दोहरा सकते हैं।

ताजा मामला मंत्री जी के विभाग अर्थात महाविद्यालयों से जुड़ा है क्योंकि विभाग सँभालते ही मंत्री जी ने घोषणा कर दी थी कि वे विभाग और शिक्षा व्यस्था में आमचूल परिवर्तन करेंगे और उम्मीद थी कि वर्षों से एक ही स्थान पर जमे प्रवक्ता मंत्री जी के आदेश पर जरुर इधर से उधर हिलेंगे। विशेषकर नगरों में सुविधाजनक स्थानों पर कुंडली मारे बैठे प्रवक्ता पहाड़ चढ़ेंगे,और वर्षों से पहाड़ों की पगडंडियों को नाप रहे प्रवक्ता अपने सेवाकाल का कुछ समय तो मैदानी इलाकों में लुत्फ़ उठा पाएंगे। यह तब जबकि खुद मंत्री जी दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी विधानसभा के महाविद्यालयों की स्थिति भी कमोवेश अन्य स्थानों की तरह जर्जर है।

सूबे में वर्तमान में प्राथमिक, माध्यमिक की तरह उच्च शिक्षा की स्थिति भी काफी दयनीय है। अनेक शिक्षक राजनीति में खुलेआम प्रतिभाग कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे कर्मचारी सेवा नियमावली का खुले आम उलंघन करते हुए सोशल मीडिया में सरकार की निंदा करते हुए देखे जा सकते हैं।ऐसे कई प्रवक्ता हैं जो न तो कॉलेज ही आते है और न ही कभी क्लास ही लेते हैं। वह तब जब विद्यार्थी परिषद की राजनीति कर चुके मंत्री इन सभी बातों से परिचित हैं। और उम्मीद थी कि मंत्री जी की नकेल जरुर कमाल दिखायेगी।लेकिन फिलहाल ऐसा कहीं नज़र नहीं आता।

मंत्री जी ने हाल में स्थानान्तरण की पहली सूची जारी कर खुद ही अपनी ही-मैन वाली छवि को खंडित कर दिया। प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में अपनी ब्रांडिंग करने वाले मंत्री जी की सूची तो वाकई व्यवस्था को आइना दिखाने वाली थी। सिफारिशी आधार पर नगरों में वर्षों से जमे हुए मैदानी महाविद्यालय के प्रवक्ताओं को पहाड़ के दुर्गम महाविद्यालय में तैनाती के आदेश किये तो चारों ओर से मंत्री जी पर प्रशंसा के फूल बरसने लगे। मीडिया से लेकर उनके विरोधी तक मंत्री जी के क्रांतिकारी कदम की प्रशंसा करने से नहीं चूके।

मगर यह क्या ? …सप्ताह भर में ही सारे शिक्षक या तो अपने पुराने स्थानों पर ही पुनः तैनात हो गये या उन्हें और अधिक सुविधाजनक मैदानी स्थान पर तैनाती दे दी गयी। उच्च शिक्षा विभाग का स्थानांतरण सूची का नया आदेश कमाल का है। क्या नेताजी के हाथी की तरह खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग अलग हैं। ये संशोधित सूची साबित करती है कि उत्तराखंड की प्रशासनिक मशीनरी,कर्मचारियों का कॉकस और नेताओं का सिफारिशी व्यवस्था के आगे समर्पण शर्मनाक है। नेताओं की क्रांतिकारी अपील, घोषणाएं और चेतावनी मात्र जनता के लिए दिखावा हैं और क्योंकि अगर गरीब पृष्ठभूमि के इस पहाड़ी नेता को पहाड़ के गरीब छात्रों का दर्द होता तो बरसों से जमी हुई विभाग की अव्यवस्था की बर्फ जरूर पिघलती और बिना अध्यापकों प्राध्यापकों के दूर दराज के इलाकों में पढ़ रहे छात्रों को जीवन संवारने का मौका मिलता।

मीडिया सोशल मीडिया में बड़ी-बड़ी बातें करके अपनी क्रांतिकारी छवि का निर्माण करना और उसके बाद नेतागिरी के परंपरागत तरीके से “दुखियों” को राहत देने की उदारता किसी से गले नहीं पच रही है कि कैसे सालों से ये डॉक्टर , मास्टर, इंजिनियर , अधिकारी, बाबू सालों से एक ही कुर्सी, एक ही स्थान पर चिपके हुए हैं। यह डबल इंजन की सरकार के लिए डूब मरने वाली स्थिति की तरह है। मानवीय आधार पर स्थानांतरण में संशोधन भी होता है क्योंकि कई बार किसी कर्मचारी की पारिवारिक परिस्थितियों या स्वास्थ्य कारणों को देखते हुए सूची में संशोधन भी करना पड़ता है यह पूर्णतः मानवीय आधार होता है किंतु मंत्री जी की पूरी सूची में मालवीय उदारता का झलकना समझ से परे है।

devbhoomimedia

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