देहरादून : भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2012 में ‘’खंडूरी है जरूरी’’ का नारा देकर जिस कोटद्वार विधानसभा सीट पर हार की वजह से राज्य में 5 साल के लिए सरकार बनाने से रह गई थी उसी सीट पर इस बार चुनाव दो ठाकुर नेताओं की जंग हो रही है। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी जीत के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। पौड़ी जिले की अगर बात करें तो यहां सबसे ज्यादा चर्चा जिस सीट की हो रही है वह है कोटद्वार। कोटद्वार विधानसभा सीट को साल 2017 में राज्य की सबसे हॉट सीटों में गिना जा रहा है। जिसकी कई खास कारण भी हैं।
दरसअल कोटद्वार विधानसभा सीट 2012 में वो सीट रही, जिस पर हार की वजह से बीजेपी राज्य में 5 साल के लिए सरकार बनाने से चूक गई थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से यहां तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी ने चुनाव लड़ा था। लेकिन कोटद्वार सीट के समीकरण और कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिंह नेगी का यहां घर और गढ़ होना खंडूरी जैसे भारी-भरकम नेता पर भी भारी पड़ गया था वह भी तब जब ‘’भाजपा खंडूरी है जरुरी’’ का नारा देकर उस समय चुनाव मैदान में थी।
कांग्रेस 2012 में बीजेपी को कोटद्वार सीट बड़ा झटका दे चुकी है। इसलिए कोटद्वार विधानसभा सीट पर इस बार बीजेपी ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी में शामिल हुए औऱ बागियों के सरदार कहे जाने वाले हरक सिंह रावत को यहां से उम्मीदवार बनाया है। हरक सिंह रावत दावा करते आये हैं कि वे जहां भी जाएंगे जीतकर आएंगे। लेकिन इस बार कोटद्वार विधान सभा सीट हरक सिंह के लिए अग्निपरीक्षा के समान है।
ऐसा इसलिए क्योंकि आज तक हरक सिंह रावत ने पहाड़ की विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और वे विजयी भी रहे। बात फिर चाहे उत्तरप्रदेश के वक्त पौड़ी सीट रही हो या उत्तराखंड बनने के बाद लैंसडाउन और रूद्रप्रयाग की, पहली बार हरक सिंह रावत किसी मैदानी सीट पर मुकाबले के लिए उतरे हैं।
इस सीट पर जहां सिर्फ पहाड़ की तरह ब्राह्मण, राजपूत और दलित नहीं हैं। बल्कि इस सीट पर जाति और वर्ग के साथ-साथ मुस्लिम, पिछड़े, अनुसूचित जनजाति, वैश्य समाज के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। वहीं कोटद्वार सीट पर हरक सिंह के लिए चुनौती इस बार कम है, क्योंकि कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी की कार्यशैली और व्यवहार पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार बदला हुआ है वे इस बार जहाँ अहंकार से भरे हुए हैं वहीँ स्वास्थ्य विभाग में उनकी कार्यप्रणाली को लेकर भी वे इस बार खासे चर्चाओं में हैं। इसके बावजूद कांग्रेस हरक सिंह को घेरने के लिए पूरी रणनीति के साथ काम कर रही है।
वहीँ कांग्रेस की तरफ से डॉ. हरक सिंह पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे कोटद्वार सीट पर बाहरी उम्मीदवार हैं। इसके उलट सुरेंद्र सिंह नेगी स्थानीय हैं। वहीँ कांग्रेस दावा कर रही है कि कोटद्वार सीट पर शैलेंद्र रावत के कांग्रेस में शामिल होने के बाद, शैलेंद्र रावत के समर्थक स्थानीय के मुद्दे पर सुरेंद्र सिंह नेगी के साथ खड़े हैं जबकि ऐसा नहीं है ।
इस सीट पर सुरेंद्र सिंह नेगी का आत्मविश्वास और अहंकार बढ़ा हुआ है क्योंकि उन्होंने 2012 में भुवन चंद्र खंडूरी को धूल चटाई थी। वहीं 5 साल कांग्रेस के कार्यकाल में नेगी स्वास्थ्य मंत्री रहे। लेकिन हरक सिंह रावत जैसे दिग्गज को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
यहाँ यह बात भी साफ है कोटद्वार सीट पर गढ़वाल से शेर कहे जाने वाले हरक सिंह ने कम वक्त होने के बावजूद कोटद्वार में अपनी साख बनाने के साथ वोटर भी जुटा दिए हैं यह उनकी लगातार हो रही सभाओं में उनको सुनने आ रहे लोगों से दिखाई दे रहा है। यहाँ 15 फरवरी को मतदान होना है। इस परीक्षा में पास होने के लिए दोनों उम्मीदवार पूरा जोर लगा रहे हैं। जनता किसके पक्ष में फैसला देगी, इसका परिणाम 11 मार्च को सबके सामने होगा।