UTTARAKHAND
आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास खोकर भारत हुआ उपनिवेशवाद का शिकार


अंग्रेजों के आने के पूर्व भारत पूर्णरुप से आत्मनिर्भर था। भारतीय हर गांव में अपनी जरूरत भर का सामान पैदा कर ही लेते थे,और अपने आस-पास की सभी जरूरतें पूरी भी करते थे। अदला-बदली की व्यवस्था के तहत समाज अपने खान-पान, कपड़े-लत्ते एवं जरूरत के अन्य संसाधन प्राप्त कर लेता था। मध्यकाल में भारतीय समाज अतिरिक्त उत्पादन भी करने लगा। उस समय कागज की मुद्रा का आगमन तो नहीं हुआ था, किंतु दमड़ी,सोने,चांदी,तांबे की मुद्रा अधिक मात्रा में प्रचलन में थी। अभिजात्य समाज में मुद्रा का चलन अधिक मात्रा में था। इत्र, गुलाल,मलमल के कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन एवं सुख-सुविधाओं की सामग्रियां भारतीय समाज स्थानीय स्तर पर ही उत्पादित करता था। वह काफी हद तक आत्मनिर्भर स्थानीय समाजों से मिलकर बना था। लेन-देन के आधार पर ही भारत के उकृष्ट उत्पाद दुनिया के अन्य देशों में जाते थे। मलमल, इत्र, मसाले, गुड़-राब, मोती-मनके जैसे भारतीय उत्पादों की दुनिया के कई देशों के बाजारों में धाक थी।Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.