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सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पंचेश्वर डैम परियोजना लेकिन कुछ हैं सवाल !

  • कुमाँऊ के 134 गांव और लगभग 33 हजार लोग होंगे प्रभावित
  • मुआवज़ा प्रति हेक्टेयर 6 लाख और प्रति मकान 2 लाख रुपये का प्रावधान
  • आजीविका पर प्रभाव जो होगा वह सरकार की नीति में नहीं शामिल

रूचिता बहुगुणा उनियाल

सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पंचेश्वर डैम परियोजना कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है पंचेश्वर डैम की बात 1954 में नेहरू जी ने की थी और वर्ष 2017 अगस्त माह से इस पर जनसुनवाई शुरू की गई। प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार 2018 से बांध का काम शुरू होगा और वर्ष 2026 तक पूरा होकर इसमें पानी भरना शुरू हो जाएगा पूरा पानी भरने में लगभग दो साल लगेंगे और इस तरह से वर्ष 2028 तक यह पूरा हो पाएगा, इसके साथ ही एक छोटी परियोजना रूपाली गाड बांध परियोजना भी है। इस बांध के बनने से 4800 मेगावाट और रूपाली गाड बांध से 240 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इस बांध के बनने से एक ओर जहाँ भारत और नेपाल का बड़ा भूभाग सिंचित होगा, बिजली उत्पादन होगा वहीं दूसरी ओर इसके बनने से कई तरह के नुकसान भी हैं जिन पर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है।

टिहरी बांध के बनने से एक पूरी नागर सभ्यता जलमग्न हो गई, हालांकि उन्हें मुआवजा व विस्थापन मिला परंतु अपने पूर्वजों की धरा से बिछोह और वो आत्मीयता दोबारा न मिल पाने का गम उन्हें अभी तक कचोटता है। टिहरी बांध के बनते समय दावा था कि यह बांध 2400 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा लेकिन अब तक यह परियोजना मात्र 1000 मेगावाट विद्युत ही उत्पादित कर पा रही है । साथ ही इसमें उत्पादित बिजली पर प्रदेश की भागीदारी ना के बराबर है जो कि परियोजना के फेल हो जाने की ओर इशारा करती है।

टिहरी बांध के बनने से एक ओर जहाँ समृद्ध संस्कृति का विनाश हुआ वहीं दूसरी ओर इसके बनने से हजारों लोगों का संपर्क भी कट सा गया है।प्रतापनगर पहुंचने के लंबी दूरी तय कर जाना पड़ता है जो कि समय के साथ साथ आर्थिक रूप से भी काफी खर्चीला है। टिहरी बांध के बनने के बाद बनी झील पर बार्ज बोट भी चलाई गई, करोड़ों की लागत से बनी यह बोट भी थोड़े समय में ही खराब होकर किनारे खड़ी है और समस्या जहाँ की तहाँ है।

टिहरी बांध के विस्थापितों में आज भी आक्रोश व्याप्त है कारण कि किसी को मुआवजा ज्यादा व किसी को कम मिला है जो कि पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। अब यदि बात पंचेश्वर डैम की ,की जाए तो यहाँ तो मुआवजा राशि भी पूरी नहीं दी जा रही जो कि निश्चित रूप से आक्रोश और जनांदोलन को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। पंचेश्वर डैम परियोजना में डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों को प्रति हेक्टेयर 6 लाख और घरों के लिए प्रति मकान 2 लाख रुपये का प्रावधान रखा गया है जबकि यह सर्वविदित है कि पहाड़ी क्षेत्रों में इतनी जमीन किसी के पास नहीं होती तो इस परिस्थिति में कुछ लाख रूपयों में जो कि मकान बनाने के लिए भी पर्याप्त नहीं उनमें पूर्ण विस्थापन संभव है क्या? साथ ही इनके विस्थापन से जो लोग स्थानीय रोजगार से जुड़े हैं उनपर गहरा असर होगा और आजीविका पर प्रभाव होगा जो कि सरकार की नीति में शामिल नहीं है।

पंचेश्वर डैम जो कि महाकाली नदी, गोरी गंगा, धौली गंगा, सरयू, और रामगंगा के संगम पर बन रहा है, से और भी कई नुकसान हैं जैसे कि इतना बड़ा बांध बनने से हजारों हेक्टेयर भूमि ,जो कि ऊपजाऊ होने के साथ साथ अपने आप में कई विविधता लिए हुए वानस्पतिक भूभाग है पूरी तरह से जलमग्न हो जाएगी। इस तरह से कई चौड़ी पत्तियों के जंगल और यहाँ तक कि इनकी प्रजातियां भी लुप्त हो जाएंगी जो कि वातावरण में असंतुलन पैदा करेंगी। इस बांध के बनने से पूरा कुमाँऊ भूस्खलन की जद में आ जाएगा जो कि खतरे की घंटी है। साथ ही सरकार की टनकपुर बागेश्वर रेलवे लाइन का स्वप्न भी अधर में ही लटक जाएगा क्योंकि जिस मार्ग से रेल जानी थी वो पूरा इलाका डूब क्षेत्र में आ जाएगा. इस तरह से पहाड़ों पर रेल लाइन का सपना, सपना ही रह जाएगा जबकि यह प्रस्ताव 1922 में पास भी हो चुका है।

साथ ही यदि कहा जाए कि पड़ोसी देश चीन की घुसपैठ बढ़ेगी तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि चीन अपने पहाड़ों और पठारों में भी रेल दौड़ा रहा है और यहाँ इस बांध के बनने से रेल का सपना भी बांध में ही डूब जाएगा। अब यदि बात की जाए कि इस बांध पर आतंकी हमलों के लिए भी सरकार को कमर कसनी होगी तो भी गलत नहीं होगा क्योंकि सुरक्षा की दृष्टि से इस पर चौकसी बरतने की जरूरत होगी जैसे कि टिहरी बांध के लिए है क्योंकि यह बांध टिहरी बांध से भी बड़ा बनने जा रहा है तो इस पर आतंकी हमला होने के भी ज्यादा आसार हैं।

अब यदि जलवायु परिवर्तन की बात की जाए तो वो भी अवश्यंभावी है जैसे कि एक अलग जलवायु का निर्माण टिहरी बांध से जुड़े इलाकों में होता है, बादल फटने की घटनाएं अब इस क्षेत्र में आम हो गई हैं तो कुमाँऊ भी इस तरह की त्रासदियों से दो चार होगा। साथ ही इतने हजार या यूं कहें कि लाख घन लीटर पानी भरने से भूगर्भीय दबाव बढ़ जाएगा जो कि भूकंप संभावित इस क्षेत्र के लिए खतरा है।

कुमाँऊ के 134 गांव इसमें आ जाएंगे और लगभग 33 हजार लोग इससे प्रभावित होंगे। अब एक पड़ोसी देश के साथ मित्रता निभाने के लिए अपने ही प्रदेशवासियों को इतना नुकसान झेलने के लिए बाध्य करना कितना उचित है यह तो सभी बुद्विजीवी भली प्रकार से समझते हैं। 

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