जनरल रावत ने स्कूल में पहुँच किया अपना बचपन याद और छुए अपने टीचर के पैर

- जब यहां से निकलोगे तो खुद को देश के प्रति जिम्मेदार नागरिक पाओगे : जनरल रावत
देहरादून : स्कूल के दिनों को याद करते हुए जनरल रावत ने कहा कि कैम्ब्रियन हॉल में उन्होंने शैक्षिक और स्पोर्ट्स गतिविधियों में खूब हिस्सा लिया। ये उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था। अपने अंग्रेजी के शिक्षक रहे 86 वर्षीय शांति स्वरूप से मुलाकात की और उनके पैर छुए। उन्होंने उन्हें शॉल भेंट किया। बताया कि सन 1969 से 72 तक यहां के छात्र रहे हैं । उन्होंने छात्रों से कहा कि जब यहां से निकलोगे तो खुद को देश के प्रति जिम्मेदार नागरिक पाओगे। जनरल रावत ने कहा कि पुराने स्कूल में आना आज मेरे लिए भावनात्मक पल है। स्कूल अपने मोटो ”टू ग्रेटर हाइट” की तरह आगे बढ़ता रहे ये उनकी कामना है।
थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत कैम्ब्रि
यन हॉल के स्थापना दिवस पर शनिवार शाम आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करने पहुंचे थे । इस मौके पर प्रधानाचार्य डॉ. एचसी बयाला ने उनका स्वागत किया। इस दौरान उन्होंने स्कूल के पूर्व छात्रों और अपने सहपाठियों के साथ वक्त बिताया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पुराने दोस्तों के साथ डिनर भी किया।
गौरतलब हो कि जनरल बिपिन रावत थलसेना प्रमुख बनने के बाद तीसरी बार अपने गृह राज्य उत्तराखंड पहुंचे। कैम्ब्रियन हाल में थल सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने अपने स्कूल की यादों को साझा किया। इस दौरान आर्मी चीफ ने 43 साल बाद अपने स्कूल ड्रेस की टाई और ब्लेजर में नज़र आये, इस दौरान जनरल बिपिन रावत ने बताया कि जब उन्होंने समारोह में शामिल होने के लिए स्वीकृति दी तो स्कूल प्रशासन ने एक भावनात्मक शर्त मेरे सामने रखी वह शर्त यह थी कि मुझे स्कूल की यूनिफॉर्म में आना होगा और उन्हें यह यूनिफॉर्म भी स्कूल की तरफ से ही भेंट भी की गई। उन्होंने कहा 43 साल बाद स्कूल की पोशाक दोबारा पहनकर उसी स्कूल में आना अपने आप में एक अद्वितीय और भावनात्मक अहसास है।
उन्होंने मंच से हल्के-फुल्के अंदाज में बयां करते हुए कहा कि तब भी स्कूल के प्रधानाचार्य यूनिफॉर्म पहनकर आने की सख्त हिदायत देते थे और अब इतने दशक बाद भी प्रधानाचार्य की हिदायत पर उन्होंने स्कूल की यूनिफॉर्म पहनी है। इस दौरान उन्होंने अपने छात्र जीवन के अनुभव भी साझे किए। उन्होंने कहा कि संयोग से उनका दाखिला इस स्कूल में हुआ। कक्षा एक व दो की पढ़ाई कॉन्वेंट एंड जीजस मैरी में की, मगर वहां इसके बाद की कक्षाएं सिर्फ लड़कियों के लिए थीं।
लिहाजा, उन्हें वह स्कूल छोडऩा प
ड़ा। इस बात को भी उन्होंने चुटकी लेने वाले अंदाज में बयां किया। उन्होंने कहा कि लड़कियों वाले स्कूल को छोड़ना आसान नहीं था, पर ऐसा करना मजबूरी था। तब लड़कों और लड़कियों में भेद भी अधिक था, अच्छी बात है कि आज के दौर में लड़के और लड़कियां सुखद माहौल में एक साथ पढ़ाई कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मूलरूप से पौड़ी जिले के ग्राम सैणा, ब्लॉक द्वारीखाल निवासी जनरल रावत ने वर्ष 1978 में आइएमए से पास आउट होने के बाद 11वीं गोरखा रायफल की पांचवीं बटालियन में अपनी ज्वानिंग दी थी। आइएमए में उन्हें प्रतिष्ठित स्वार्ड ऑफ ऑनर से नवाजा गया था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सेना में उच्च पद पर थे। वे सहायक प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।