PERSONALITY
गंगोत्री गर्ब्याल : ‘प्यारी दीदी, अपने गांव फिर आना‘

‘गाना’ की पढ़ने की दृडइच्छा-शक्ति के आगे निरुत्तर थे उनके माता पिता
डाॅ. अरुण कुकसाल
‘‘प्रसिद्ध इतिहासविद् डाॅ. शिव प्रसाद डबराल ने ‘उत्तराखंड के भोटांतिक’ पुस्तक में लिखा है कि यदि प्रत्येक शौका अपने संघर्षशील, व्यापारिक और घुमक्कड़ी जीवन की मात्र एक महत्वपूर्ण घटना भी अपने गमग्या (पशु) की पीठ पर लिख कर छोड़ देता तो इससे जो साहित्य विकसित होता वह साहस, संयम, संघर्ष और सफलता की दृष्टि से पूरे विश्व में अद्धितीय होता’’
(‘यादें’ किताब की भूमिका में-डाॅ. आर.एस.टोलिया)
‘गाना’ (गंगोत्री गर्ब्याल) ने अपने गांव गर्ब्याग की स्कूल से कक्षा 4 पास किया है। गांव क्या पूरे इलाके भर में दर्जा 4 से ऊपर कोई स्कूल नहीं है। उसकी जिद् है कि वह आगे की पढ़ाई के लिए अपनी अध्यापिका दीदियों रन्दा और येगा के पास अल्मोड़ा जायेगी। गर्ब्याग से अल्मोड़ा खतरनाक उतराई-चढ़ाई, जंगल-जानवर, नदी-नालों को पार करते हुए 150 किमी. से भी ज्यादा पैदल दूरी पर है। मां-पिता समझाते हैं, पर ‘गाना’ की पढ़ने की दृडइच्छा-शक्ति के आगे वे निरुत्तर हैं। आखिर में 29 मार्च, 1930 की भोर में 12 साल की कक्षा 4 पास ‘गाना’ आगे की पढ़ाई के लिए धारचूला से अल्मोड़ा की ओर निकल गई है। ‘गाना’ को जाते हुए देखकर मां-पिता किन कल्पनाओं से घिरे हैं, ये सोचना भर ही दुष्कर है। परिवार के एक बुर्जुग के अलावा कई सयाने लोग उसके इस विकट सफ़र के साथी हैं। सयाने लोग अपनी-अपनी भेड-बकरियों के व्यापार और अन्य कार्यों के मकस़द से जा रहे हैं। परन्तु ‘गाना’ का एक ही घ्येय है, अल्मोड़ा जाकर आगे की पढ़ाई करना।


