उत्तरकाशी : गंगोत्री घाटी में बर्फबारी के साथ ही तापमान शून्य से नीचे चले जाने पर भागीरथी की सहायक नदियों में पानी जम गया है। गंगोत्री में भागीरथी सिकुड़ गई है, जिससे गोमुख से लेकर गंगोत्री धाम तक भागीरथी नदी का प्रवाह बेहद कम हो गया है, और नदी ने ऊपर कई स्थानों पर बर्फ की तह जम गयी है । नदी में वाटर डिस्चार्ज कम होने पर भागीरथी नदी पर बनी जल विद्युत परियोजनाओं के बिजली उत्पादन पर भी इसका असर पड़ा है।
वहीँ दूसरी ओर उत्तराखंड स्थित बदरीनाथ धाम में जमकर बर्फबारी के बाद धाम परिसर और चोटियों ने बर्फ की मोटी चादर ओढ़ ली है।बदरीनाथ धाम के साथ ही हेमकुंड साहिब, रुद्रनाथ समेत जिले के ऊंचाई वाले इलाकों में भी बर्फ गिरी है। इसके चलते इलाके में जबर्दस्त ठंड पड़ रही है।
बृहस्पतिवार को दिनभर धूप खिली रहने से बर्फ से लदी चोटियां चमचमा उठी। चांदी सी गिरी बर्फ ने बदरीधाम में जन्नत सा नजारा बना दिया है।बदरीनाथ धाम परिसर में बर्फ की मोटी चादर जमी हुई है। जोशीमठ क्षेत्र में सुबह और शाम को सर्द हवाएं चलने से ठंड हो रही है।निजमुला घाटी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी हल्की बर्फबारी हुई। औली में रात्रि को बर्फबारी तो हुई, लेकिन बृहस्पतिवार को चटख धूप खिलने से बर्फ जम नहीं पाई।हालांकि औली में पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग भी बर्फ देखने के लिए पहुंच रहे हैं। अभी तक बर्फबारी ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक ही सीमित है।
गौरतलब हो कि दिसंबर माह तक गंगोत्री घाटी में बर्फबारी के साथ तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, जिससे नदियों का पानी जमकर बर्फ बन जाता है। इस बार गंगोत्री धाम में जनवरी के शुरूआत में ठीकठाक बर्फबारी हुई। तापमान घटने पर भागीरथी की सहायक नदियां रुद्रगैरा, केदारगंगा, सियागाड़, जालंधरी गाड़, ककोड़ा गाड़ आदि में पानी बर्फ बन गया। इससे इन सहायक नदियों का प्रवाह ही रुक गया है।
गंगोत्री धाम जाने पर पता चला कि यहां भागीरथी नदी का पानी आधा बर्फ बन गया और नदी में सिकुड़न आने से जल प्रवाह भी कम हो गया। गंगोत्री धाम में रह रहे कुछ साधु संत विकट परिस्थिति में रहकर नदियों में जमे पानी को गर्म करके पी रहे हैं। सहायक नदियां जमने से उपला टकनौर के निचले इलाकों में पेयजल संकट गहराने के आसार हैं।
वहीं, भागीरथी में वाटर डिस्चार्ज कम होने पर मनेरी भाली प्रथम व द्वितीय परियोजना में उत्पादन प्रभावित हुआ है। दोनों परियोजनाओं में एक मशीन से प्रतिदिन 1.2 मीलियन यूनिट तक बिजली उत्पादन हो रहा है। जबकि नदी में वाटर डिस्चार्ज घटकर 25 से 30 क्यूमेक्स हो गया।
हालांकि मनेरी भाली परियोजना द्वितीय चरण के ईई राजीव चौगसे का कहना है कि परियोजनाओं में बिजली उत्पादन विंटर सीजन में कम ही होता है। नदियों का वाटर डिस्चार्ज लेवल भी बेहद कम हो चुका है। आने वाले समय में उत्पादन में गिरावट आने की संभावना है।