उत्तराखंड की नदियों का पानी उद्गम से लेकर संपूर्ण बहाव क्षेत्र में स्वच्छ
निर्माण कार्य बंद होने, कचरा, मलबा नहीं डाले जाने से साफ हो रही नदियां
एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में 42 प्रतिशत कचरे का उत्सर्जन कम हो गया
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते देशभर में लॉकडाउन घोषित है। इस आपात स्थिति में लोगों को घरों से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी जा रही है। मानवीय दखल नहीं होने का असर यह हुआ है कि उत्तराखंड की नदियां अपने उद्गम से लेकर संपूर्ण बहाव क्षेत्र में स्वच्छ दिखाई दे रही हैं। वर्तमान में हम इस गीत को फिर से गुनगुना सकते हैं- गंगा तेरा पानी अमृत, झर झर बहता जाए, युग युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए…। प्रस्तुत है इस संबंध में एक रिपोर्ट-
लॉकडाउन की वजह से नदियों में प्रदूषण का स्तर बेहद कम हो गया है। इससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन ने वो काम कर दिया, जिसे आज तक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं अरबों का बजट व्यय करने के बाद भी नहीं कर पाई थीं। हालांकि अभी यह डाटा सामने नहीं आया है कि नदियों में प्रदूषण का स्तर कितना कम हुआ है, लेकिन इन तस्वीरें और पर्यावरण के पैरोकारों के हवाले से यह बात सामने आई है।
पर्यावरण के पैरोकार जेपी मैठाणी कहते हैं कि गंगा ही नहीं अन्य सभी नदियों में प्रदूषण कम हो गया है। अब तो नदियों की सतह पर पड़ा रेत, पत्थर साफ दिखाई दे रहे हैं, जबकि पहले पानी इतना साफ नहीं दिखता था। इसका कारण बताते हैं कि वर्तमान में लॉकडाउन की वजह से पहाड़ से लेकर मैदान तक सभी जगह निर्माण कार्य बंद हैं।
पहाड़ में चल रहा सड़क निर्माण, मैदान के कारखाने सब बंद है। नदियों को कूड़ा, मलबा फेंकने की जगह बना दिया गया है। कूड़ा करकट और मलबा नदियों में फेंकने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं। इसके पीछे कचरे, कूड़े को निस्तारित करने की बजाय शिफ्ट करने की मानसिकता काम कर रही थी। इस शिफ्टिंग में नदियों को परिवहन का साधन बना दिया गया। लॉकडाउन की वजह से वर्तमान में ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए नदियां पहले की तुलना में साफ दिखाई दे रही हैं।
पर्यावरण के जानकार मैठाणी बताते हैं कि एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना संक्रमण काल में दुनिया में 42 प्रतिशत कचरे का उत्सर्जन कम हो गया। ऐसा इसलिए हुआ कि दुनियाभर में अनियोजित विकास कार्य बंद हैं। हमें समझना होगा कि अंधाधुंध व अनियोजित विकास से उन संसाधनों को नुकसान नहीं पहुंचाएं, जिन पर हमारा जीवन टिका है।
अगर हम जीवन के आधार नदियों, वृक्षों, मिट्टी, वायु, जल आदि को लगातार प्रदूषित करते रहे तो नुकसान हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का होगा। मैठाणी इस बात को स्वीकार करते हैं लॉकडाउन में मानवीय दखल कम होने से नदियों में पानी साफ हुआ है।
कहते हैं जो काम अरबों का प्रोजेक्ट नहीं कर पाया, उसको लॉकडाउन ने पूरा कर दिया। उनका कहना है कि यह सीधा सीधा उदाहरण है, जिससे माध्यम से साफ पता चलता है कि मानवीय दखल प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा था। अब विकास के बारे में हमें सभी को नये दृष्टिकोण की जरूरत है।
वहीं, श्री गंगासभा में प्रतिनिधि उज्ज्वल पंडित का कहना है कि हरिद्वार में वर्तमान में गंगा जल देखकर साफ तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने अवतरण काल में भी गंगा का जल इसी तरह स्वच्छ और निर्मल रहा होगा। कहते हैं कि हरिद्वार में श्रद्धालु मोक्ष की कामना से आते हैं। श्रद्धालु इस मान्यता में पूरी आस्था रखते हैं कि गंगा में स्नान से पापों का अंत हो जाता है। हरिद्वार के घाटों पर रोजाना बड़ी संख्या में देश विदेश से श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं को यह बात तो समझनी होगी कि वो गंगा को प्रदूषित न करें। गंगा को अपने उसी मनमोहक स्वरूप में रहने दें, जो अवतरण काल में था।
श्री गंगा सभा प्रतिनिधि उज्ज्वल पंडित कहते हैं कि लोग अक्सर सरकार को कोसते हैं कि गंगा में प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन क्या हमें अपनी जिम्मेदारी नहीं समझनी होगी। हमें स्वयं से पहल करनी होगी। नदियों में कपड़े, खाद्य सामग्री न फेंकें और न ही नदियों के घाटों को गंदा करें। बताते हैं कि वर्तमान में लगभग सभी कल कारखाने बंद हैं, इस वजह से भी गंगा और सहायक नदियों में कचरा नहीं मिल रहा। हमें चाहिए कि हम नदियों की सार्थकता को बनाए रखें।
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