- उत्तराखंड के लोकगीत को नए कलेवर में किया प्रस्तुत
- लोकगीत में है पर्वतीय और पारम्परिक परिधानों का शानदार प्रदर्शन
- सुदूरवर्ती इलाकों की खूबसूरती का दृश्यों में है लोकगीत में समावेश
- पहाड़ के लोकजीवन का अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी : नेगी
- लोकगीत में दिखेगी सोमेश्वर महादेव की झलक’
- नेगी ने की विडियो की तारीफ
- लोकगीत के मूल स्वरुप को ही आधार बनाकर उसे किया रिक्रिएट
- वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें ……….
- वेद विलास उनियाल ने की रजनीकांत के की गीत की व्यापक समीक्षा
- पूजा भंडारी और शैलेंद्र पटवाल का असरदार नृत्य
- उन्नत शैली,तकनीक और फोटोग्राफी का समावेश
उत्तराखंड की लोकपरंपरा खासकर उत्तरकाशी के लोकजीवन से निकले इस गीत ने बरसते मौसम में रजनीकांत सेमवाल उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के गीत और विडियो ”भग्यानी बौ” लेकर आए वह कला संस्कृति जगत में रिमझिम बरसते पानी की तरह सुंदर अहसास है। पश्चिम संगीत खासकर अपाचे इंडियन से मुग्ध रजनीकांत जब इस बार उत्तराखंड के बेहद पारंपरिक इस गीत को गाकर परंपरा में उसके नृत्य और भंगिमा को प्रस्तुत करने की कोशिश करते दिखे । यह उन लोगों को जरूर अच्छा लगेगा जो ठेठ परंपरा से अपना गहरा लगाव रखते हैं। उसमें तोड जोड पसंद नहीं करते। खासकर वो जो आज की उन्नत शैली तकनीक फोटोग्राफी को तो चाहते हैं लेकिन इतनी सजगता के साथ कि गीत संगीत अपनी परंपरा के आवरण में ही रहे।
रंजनीकांत ने उन्हे निराश नहीं किया। उन्होंने गीत को भी उसी शैली में गाया और गोविद सिह के साथ मिलकर फिल्मांकन भी लोकसंस्कृति के अनुरूप करवाया। पूजा भंडारी और शैलेंद्र पटवाल किसी मंजे हुए कलाकार की तरह नृत्य अभिनय करते दिखे। प्राकृतिक छटा के बीच समूह नृत्य करते कलाकारो की लोक जीवन की झांकी इस छह मिनट की प्रस्तुति में दिखती है। वर्षों से पहाडों में सुना गया गीत, अच्छी फोटोग्राफी अच्छा नृत्य संयोजन और खासकर उत्तरकाशी की लोकछटा और रंग से उभरता एक अहसास।
रजनीकांत किसी लोकसंस्कृति या लोक धुन से प्रभावित होकर गीत संगीत की दुनिया में नहीं आए बल्कि उनकी दिवानगी तो पश्चिम के अपाचे इंडियन के लिए थी। उस पश्चिम संगीत के गिटारों ने और अपाचे की शैली ने उन्हें इस तरह मोह लिया कि उन्हे बाद में लगा कि पहाडों के लोक सगीत को उसी तर्ज पर लाया जाए। इसलिए कुछ साल पहले उनका पहला प्रयोग भी इसी रूप में था। कुछ ने स्वीकार किया कुछ चुप रहे।
आज इसका विमोचन करते हुए अगर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी खुश दिखे तो इसलिए कि आज के समय रजनीकांत का गाया यह गीत उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के अनुरूप ही था। नेगीजी यही कह गए कि पहाड़ के लोकजीवन का अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। अगर संकल्प हो, मेहनत हो और अपनी प्रकृति और संस्कृति के लिए प्यार हो तो जो नई पीढी तकनीक फोटोग्राफी उन्नत नृत्य संचालन के साथ सामने आ रही हैै वह बेहतर चीजों को सामने ला सकती है। हम थोडा तलाश तो करें। बेशक रजनीकांत और उनके पहाडी दगड्या तलाश करते दिखे।
नेगी जी यही कह गए कि पहाड़ के लोकजीवन का अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। अगर संकल्प हो, मेहनत हो और अपनी प्रकृति और संस्कृति के लिए प्यार हो तो जो नई पीढी तकनीक फोटोग्राफी उन्नत नृत्य संचालन, के साथ सामने आ रही हैै वह बेहतर चीजों को सामने ला सकती है।
जखोल में आकर रजनीकांत और उनके साथियों ने इस गीत का जिस तरह सुंदरता से फिल्मांकन किया, जिस मधुरता से गीत पर साज बजे हैं जिस तरह गाया गया है और नृत्य की कुशलता है, वह इस गीत की सफलता है। साथ ही इस टोले की भी सफलता हैै। उत्तराखंड का समाज इस तरह की प्रस्तुतियों को पाकर भविष्य में कला संगीत मं अच्छी संभावनाएं देख सकता है। कोरियोग्राफी में सोहन चंचल और एनडी संगीत गूंजन डंगवाल चित्रों को बखूबी संंजोया गया है चद्रशेखर चव्हाण की फोटोग्राफी से नजारे दिखते हैं।
खासकर ऐसे समय जब नई चीजों के सामने आने में कुछ विराम सा लगा है। पुरानी चीजों पर झाड झपोड कर नई प्लेट पर सजाया जा रहा है तब संस्कृति और कला में यह चिंता भी जग रही है कि कब तक किसी गीत को थोडा चमक मार के सामने लाएंगे। इसके बजाय हमारे उत्तराखंड में जो छिपी बिरासत है उसे क्यों न तलाश कर सामन लाया जाए। एक सुंदर से पहाडी परिवेश के गीत को सुनने देखने के बाद जिस तरह का आत्मिक संतोष मिल सकता है वो थाह इस गीत में दिखती है। ऐसे लोकगीतों पर काम होने चाहिए। व्यक्ति विशेष के गाए गीतों पर दोहराव उसे उलटना पलटना ,चमकाने की कलाबाजी एक समय के बाद ठीक नहीं।
अच्छा है कि ऐसे अवसरों पर शहर के संस्कृति कला से जुड़े लोग किसी न किसी तरह समय निकाल कर आते हैं और कला के लिए समर्पित इन कलाकारों का उत्साह बढाते हैं। रजनीकांतजी का जन्मदिन भी है। उन्हें जहां इस वीडियो गीत के फिल्मांकन की बधाई मिल रही थी वही जन्मदिन की शुभकामना भी। रविकांत उनियाल, गंगा सिंह रावत ., मदन डुकलान , राजेद्र जोशी , राजेंद्र असवाल , च्ंद्रकांत केंतुरा, कल्पना चौहान, मनोज इष्टवाल , उषा नेगी संगीता ढौडियाल, राजीव रावत, रणजीत सिंह सुभाष पांडे, पूनम सती, कला संस्कृति पत्रकारिता के लोग यहां उपस्थित थे, एक पारंपरिक गीत को सुनने के लिए। किसी कलाकार का जन्मदिन पर इसके अच्छा क्या होगा कि सावन भी बरस रहा हो और उसके नृत्यगीत भी सुना जा रहा हो। आइए इस गीत के साथ आपको जखोल ले चलते हैं।