मुजफ्फरनगर कांड की फाइल निचली अदालतों से हुई गायब !

- हाईकोर्ट ने CBI और सरकार को भेजा नोटिस
नैनीताल : राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड संबंधी फाइल निचली अदालत से गायब होने के मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट (नैनीताल) ने जिला जज देहरादून से दो सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। मंगलवार को न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ में मामले की सुनवाई के दौरान यह मामला सामने आया। मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट (नैनीताल) की एकल पीठ ने प्रदेश सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब हो कि राज्य आंदोलनकारी और हाईकोर्ट के अधिवक्ता रमन कुमार साह ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि है कि राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की याचिका हाईकोर्ट से निरस्त कर दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने जा रहे थे। इसकी तैयारी के लिए उन्होंने राज्य आंदोलन के दौरान के दस्तावेज एकत्रित करने की पहल शुरू की। उन्होंने न्यायिक मजिस्ट्रेट देहरादून के दफ्तर से मुजफ्फरकांड से संबंधित दस्तावेजों की नकल मांगी, लेकिन संबंधित दफ्तर से उन्हें जवाब मिला है कि इस मामले को कोई पत्रावली उनके पास नहीं है।
श्री साह ने दायर याचिका में कहा है कि इस से संबंधित फाइलों की नकल उन्हें उपलब्ध कराई जाए। फाइलों को गायब होने पर सीबीआई जांच के साथ ही संबंधित कर्मचारी की जिम्मेदारी तक करते हुए दंडित किया जाए। इसके साथ ही याचिका में मुज्जफरनगर कांड के मुख्य गवाह सुभाष गिरी की मौत के मामले में भी सीबीआई जांच की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन हुआ था। 2 अक्तूबर 1994 को मुज्जफरनगर में दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों पर यूपी पुलिस ने कहर ढाया था। इस कांड में 28 लोगों की मौत, 7 गैंग रेप व 17 महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के मामले सामने आए थे। मुजफ्फर नगर के तत्कालीन जिला अधिकारी अनंत कुमार के आदेश पर पुलिस ने यह कार्रवाई की थी। अधिवक्ता साह के अनुसार सीबीआई ने 22 अप्रैल 1996 को अनंत कुमार के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी।
इसमें तत्कालीन जिला अधिकारी अनंत कुमार को आईपीसी की 307,324,326/34 के तहत दोषी करार दिया था। लेकिन निचली अदालत ने इसमें धारा 302 भी जोड़ दी थी। अनंत कुमार ने इस कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सीबीआई की कार्रवाई को निरस्त कर याचिका को निस्तारित कर दिया। प्रदेश सरकार व राज्य आंदोलनकारियों ने अदालत के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस पर अगस्त 2003 में अदालत ने मामले को निरस्त करने के आदेश वापस ले लिए थे। हालांकि मामले की सुनवाई दूसरी बैंच को स्थानांतरित कर दी थी।
मामले में सुनवाई के बाद अदालत ने क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं होने का आधार लेते हुए 28 मई 2004 को तत्कालीन जिला अधिकारी अनंत कुमार इस याचिका को खारिज कर दिया था। नियमानुसार तब से निचली अदालत में इस पर विचार किया जाना चाहिए था, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। याची रमन कुमार साह ने सीबीआई देहारदून की अदालत में 22 अप्रैल 1996 की नकल लेने के लिए आदेवन किया। दफ्तर के प्रशासनिक अधिकारी ने उन्हें इस संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं होने की लिखित जानकारी दी है। इस पर एकलपीठ ने देहरादून के जिला जज से ब्यौरा मांगा। वहीं प्रदेश सरकार,सीबीआई व संबंधित प्रशासनिक अधिकारी को जवाब के लिए नोटिस जारी किया है। मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।