UTTARAKHAND

लोकगायक और रंगकर्मी जीत सिंह नेगी का निधन

जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के ऐसे पहले लोकगायक हैं, जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकाॅर्ड 1949 में HMV  ग्रामोफोन कंपनी ने किया था जारी  

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देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून। प्रसिद्ध लोकगायक, रचनाकर, रंगकर्मी जीत सिंह नेगी का 95 वर्ष की आयु में रविवार को निधन हो गया।  दो फरवरी 1925 को पौड़ी जिले के अयाल गांव में उनका जन्म हुआ था। वर्तमान में देहरादून के नेहरू कॉलोनी (धर्मपुर) में निवास कर रहे थे। उनके निधन की खबर से लोक कलाकारों और प्रदेशवासियों में शोक व्याप्त है। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व संगीता ढौंडियाल सहित रेखा धस्माना ने उनके निधन को पर्वतीय कला जगत की अपूर्णीय क्षति बताया है वहीँ प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सहित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने और शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
जीत सिंह नेगी उत्तराखंड के ऐसे पहले लोकगायक हैं, जिनके गीतों का ग्रामोफोन रिकाॅर्ड 1949 में यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने जारी किया था। इसमें छह गीत शामिल किए गए। पहली बार ऐसा हुआ था, जब देश की नामी ग्रामोफोन कंपनी ने उत्तराखंड के लोकगायक के गीतों का रिकाॅर्ड जारी किया।
नेगी जी अपने दौर के जाने-माने लोकगायक होने के साथ ही संगीतकार, निर्देशक और रंगकर्मी भी रहे। दो हिंदी फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक कार्य किया। ‘शाबासी मेरो मोती ढांगा…’ ‘रामी बौराणी…’ ‘मलेथा की गूल…’ जैसे कई नाटकों को भी लोकप्रिय किया।
चीन के प्रतिनिधिमंडल ने कानपुर में उनके ‘शाबासी मेरो मोती ढांगा’ को रिकाॅर्ड करके रेडियो पीकिंग से उसका प्रसारण भी किया। नेगी जी गढ़वाल के पहले ऐसे लोकगायक हैं, जिनके गीत का ऑल इंडिया रेडियो से सबसे पहले प्रसारण हुआ। 1950 के दशक की शुरुआत में रेडियो से प्रसारित यह गीत बहुत लोकप्रिय हो गया।
इस गीत के बोल थे, ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यों-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…।’ कुछ साल पहले जीत सिंह नेगी के कुछ पुराने गीत नरेंद्र सिंह नेगी जी ने अपनी आवाज में रिकाॅर्ड करके पेश किए।

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