हाथियों के आवाजाही के चिन्हित होंगे उनके नए गलियारे
- आवाजाही के 11 परंपरागत गलियारे (कॉरीडोर)
- तीन प्रभाग हाथी-मानव संघर्ष के लिहाज से हैं संवेदनशील
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। विकास और जंगल के मध्य सामंजस्य न होने का असर उत्तराखंड में हाथियों के विचरण पर पड़ा है। राज्य में यमुना से लेकर शारदा तक करीब छह हजार वर्ग किमी तक का हाथी बाहुल्य क्षेत्र देश में हाथियों के लिए उत्तर पश्चिमी सीमा का अंतिम पड़ाव है। वन विभाग के अभिलेखों पर ही नजर दौड़ाएं तो एक दौर में शिवालिक एलीफेंट रिजर्व के रूप में घोषित इस इलाके से हाथी बिहार तक लंबी प्रवास यात्राएं करते थे। इसके लिए वे परंपरागत गलियारों यानी रास्तों का उपयोग करते थे। वक्त के करवट बदलने और इनके कंक्रीट के उगते जंगलों के साथ ही ये गलियारे भी सिमटने लगे।
वर्तमान में इनकी आवाजाही के 11 परंपरागत गलियारे (कॉरीडोर) हैं, मगर बदली परिस्थितियों में तमाम ऐसे स्थल सामने आए हैं, जहां से वे निरंतर आवागमन कर रहे हैं। इस दरम्यान उनकी मनुष्य से भिडंत भी हो रही है। हरिद्वार में आबादी वाले इलाके के नजदीक ट्रेन से कटकर हुई दो हाथियों की मौत के बाद वन महकमे का ध्यान इस तरफ गया है। उसने अब हाथियों के नए गलियारे चिह्नित करने का निश्चय किया है। इसके बाद पुराने और नए सभी गलियारे निर्बाध रखने को प्रभावी कदम उठाए जाएंगे, ताकि हाथियों की राह में कोई परेशानी न हो। साथ ही हाथी-मानव संघर्ष को भी न्यून करने में मदद मिल सके।
गलियारों में कहीं मानव बस्तियां उग आई हैं तो कहीं वहां से गुजर रहे सड़क व रेल मार्गों ने बाधाएं खड़ी की हैं। ऐसे में हाथियों का बिहार तक विचरण तो दूर की बात हो चली है, उन्हें राज्य में राजाजी से लेकर कार्बेट टाइगर रिजर्व तक आने-जाने में ही खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। हालांकि, हाथियों के बाधित गलियारों को निर्बाध रखने के लिए पिछले 18 साल से बातें तो हो रही हैं, मगर प्रभावी पहल का अभी तक इंतजार है।
स्थिति ये है कि गलियारे बाधित मिलने पर हाथी आबादी वाले इलाकों की तरफ रुख कर रहे हैं। ऐेसे में हाथी और मनुष्य के बीच संघर्ष में तेजी भी आई है। 19 अप्रैल को हरिद्वार में जिस स्थान पर ट्रेन से कटकर दो हाथियों की मौत हुई, इसे भी इसी कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है। इस स्थिति ने वन महकमे को भी सोचने पर विवश कर दिया है।
हाथियों का विचरण स्वछंद बना रहे, इसे लेकर अब महकमे ने संजीदगी से आगे बढऩे की ठानी है। मुख्य वन संरक्षक (गढ़वाल) जीएस पांडे कहते हैं कि हरिद्वार की घटना बेहद चौंकाने वाली है। इसे देखते हुए विभाग ने अब हाथियों के नए गलियारे चिह्नित करने का निर्णय लिया है। नए गलियारों में वे स्थल शामिल होंगे, जहां हाथियों की सक्रियता बनी है और वे निरंतर आवाजाही कर रहे हैं। नए गलियारे चिह्नित करने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके बाद नए व पुराने सभी गलियारे निर्बाध रखने को प्रभावी कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारा जाएगा।
हाथी-मानव संघर्ष के लिहाज से देखें तो तीन वन प्रभाग लैंसडौन, हरिद्वार व देहरादून अधिक संवेदनशील हैं। यह तीनों राजाजी और कार्बेट टाइगर रिजर्व में आने -जाने वाले हाथियों के लिए कॉरीडोर का कार्य करते हैं। आबादी वाले क्षेत्रों के नजदीक हाथियों की सर्वाधिक सक्रियता भी इन्हीं तीन वन प्रभागों में है।
हाथियों के वर्तमान गलियारे
- कासरो-बड़कोट
- चीला-मोतीचूर
- मोतीचूर-गौहरी
- रवासन-सोनानदी (लैंसडौन)
- रवासन-सोनानदी (बिजनौर)
- दक्षिण पतली दून-चिलकिया
- चिलकिया-कोटा
- कोटा-मैलानी
- फतेहपुर-गदगदिया
- गौला रौखड़-गौराई-टाडा
- किलपुरा-खटीमा-सुरई