उत्तराखण्ड के बहुमूल्य उत्पाद: स्यूंचणा / बाकुला / शिवचना
डॉ.राजेन्द्र डोभाल
बाकुला एक वार्षिक दलहनी फसल है जिसका वैज्ञानिक नाम vicia faba है तथा फैबेसी परिवार से सम्बन्धित है। बाकुला भारत के अलावा विश्व के लगभग 50 देशों यथा चीन, मलेशिया, कोलम्बिया, मेक्सिको, थाईलैण्ड, इथोपिया, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्वीडन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्य रूप से उगाया जाता है। विश्व भर में चीन सर्वाधिक बाकुला उत्पादक देश है जो कुल उत्पादन में 75 प्रतिशत योगदान देता है। स्वीडन में बाकुला के lingocellulonic बायोमास के कारण इससे जैव एथेनॉल तथा बायोगैस भी उत्पादित किया जाता है। यह फ्राइड तथा सब्जी दोनों रूप में खाया जाता है। भारत में यह पूर्वी राज्यों में काफी प्रचलित है। मणीपुर की स्थानीय भाषा में इसे हवाई-आम्बी के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु में बाकुला कंगोसी तथा इरोम्बा में मुख्य अवयव के रूप में शामिल किया जाता है। उत्तराखण्ड में सिंचाई तथा उपराऊ दोनो अवस्थाओं में इसे सब्जी के लिये उगाया जाता है।
बाकुला में पोष्टिकता के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण औषधीय गुण भी पाये जाते हैं जैसे एंटीहाइपरटेन्सिव तथा एंटीडायबेटिक। सब्जी तथा पशुचारे के रूप में प्रयुक्त होने के अलावा इसमें वातावरणीय नाइट्रोजन फिक्शेषन की अच्छी क्षमता होती है। एक अध्ययन के अनुसार यह 270 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन फिक्स करने की क्षमता रखती है जो कि सहायक फसल के लिये अत्यन्त लाभकारी पायी जाती है। साथ ही गेंहू की फसल में क्राउन रॉट तथा नेमाटोड की समस्या के निवारण के लिये भी लाभदायक पाया जाता है। इसमें प्रोटीन की अच्छी क्षमता होने के कारण सोयाबीन के विकल्प के रूप में पशुचारे के लिये प्रयुक्त होती है।
यू0एस0डी0ए0 2013 के अनुसार बाकुला ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है जिसमें 341 kcl तथा प्रोटीन 26.12 ग्राम, फाईवर 25 ग्राम, फोलेट 423 µg, नियासीन 2.832 मिग्रा0, विटामिन K 9.0 µg के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण खनिज लवण जैसे सोडियम 13 मिग्रा0, पोटेशियम 1062 मिग्रा0, कैल्शियम 103 मिग्रा0, मैग्नीशियम 192 मिग्रा0, फास्फोरस 421 मिग्रा0 तथा जिंक 314 मिग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं।
पोस्टिकता के साथ बाकुला में महत्वपूर्ण रूप से फिनोलिक्स तथा लीवो-डिहाइड्रोक्सी फिनाइलेनाइन (L-DOPA) भी पाये जाते हैं। सन् 1913 में बाकुला से सर्वप्रथम L – DOPA पृथक किया गया। L – DOPA चिकित्सा क्षेत्र में पार्किंसन बीमारी के निवारण के लिये प्रयुक्त किया जाता है जिसकी वजह से बाकुला का भी इस बीमारी के निवारण के लिये उपयोग किया जा सकता है। बाकुला में 0.2 से 0.75 प्रतिशत तक L – DOPA पाया जाता है। इसके सेवन से शरीर में L – DOPA का स्तर बढ़ जाता है जो तंत्रिका तंत्र में मोटर को सुचारू संचालन को बेहतर करता है। इसमें आयसोफ्लेबॉन तथा प्लांटस्टेरॉइल भी पाये जाते हैं जो महिलाओं में स्तन कैंसर रोकने में सहायक होता है। L – DOPA मानव शरीर में विटामिन B6 को मेटाबॉलाइज करने की क्षमता भी पायी जाती है। FAOSTAT की रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में 2.5 मिलियन हे0 में बाकुला का उत्पादन किया जाता है जिसमें चीन सर्वाधिक उत्पादक देश है।
इतने महत्वपूर्ण पोष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के बावजूद भी बाकुला उत्तराखण्ड में केवल एक मौसमी सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है तथा सम्पूर्ण भारत में ही एक under utilized फसल की श्रेणी में आंका जाता है। जबकि इसका वृहद स्तर पर उत्पादन कर व्यवसायिक रूप से चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है।
डा. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखण्ड।