डॉ० नंद किशोर हटवाल- एक विलक्षण प्रतिभाशाली सरकारी शिक्षक
देहरादून @ शगुफ्ता परवीन : आज लगभग 30 वर्षों की लंबी सेवा के उपरांत अधिवर्षता आयु पूर्ण करने पर डॉ० नंदकिशोर हटवाल के सेवानिवृत्ति के अवसर पर डॉ० अंकित जोशी, अध्यक्ष राजकीय शिक्षक संघ, एससीईआरटी शाखा ने दिया बधाई संदेश –
सरकारी विद्यालयों में अमूमन ये सुनने में आता है कि शिक्षक प्रतिभाशाली होते हैं, इस बात की पुष्टि सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की चयन प्रक्रिया भी करती है ।
आज बेहद जटिल प्रतियोगी परीक्षाओं या उच्च मेरिट के आधार पर चयन होकर ही कोई अभ्यर्थी शिक्षक बन पाता है । यह बहुत हद तक सत्य है कि जिस समय एक नव नियुक्त शिक्षक सरकारी व्यवस्था में प्रवेश करता है तो वह न केवल प्रतिभाशाली बल्कि सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत व व्यवस्था में सकारात्मक योगदान करने के जज़्बे से भरा होता है, लेकिन जैसे-जैसे अव्यस्था की व्यवस्था में उसका सेवाकाल व्यतीत होता है, वह नीरस, बेबस और असहाय सा महसूस करने लगता है ।
व्यवस्था का यह नैतिक और विधिक दायित्व है कि वह शिक्षकों की सृजनशीलता को न केवल बरकरार रखे बल्कि उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा देने के पर्याप्त अवसर शिक्षकों को प्रदान करे । ख़ैर, बहरहाल यह सब सैद्धांतिक लगता है मौजूदा शिक्षा व्यवस्था शिक्षक के शिक्षण व सृजनशीलता को कुचलने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है, इसलिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल है ।
साहित्य में मेरी रुचि कितनी रही कहना मुश्किल है क्योंकि अपने व्यस्त जीवनशैली में जो भी थोड़ा बहुत समय लेख आदि पढ़ने को मिल पाता है, मैं कोशिश करता हूँ कि अध्ययन करूँ लेकिन डॉ० नंद किशोर हटवाल जैसे साहित्यकार में इस हद तक रुचि है कि मैं हमेशा ही उनके साथ समय व्यतीत करने के अवसर ढूँढता हूँ । अब उम्र के साथ साथ समझ आ रहा है कि पढ़ने की लत होनी चाहिए, जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण यदि विकसित करना हो या जीवन को सहज, सरल और बोधगम्य के साथ-साथ आनंददायी बनाना हो तो अध्ययनशीलता अनिवार्य रूप से होनी ही चाहिए ।
डॉ० नंद किशोर हटवाल, मेरे लिहाज़ से उन चंद शिक्षकों में से एक हैं जिनमें अन्य बौद्धिक गुणों के साथ साथ अध्ययनशीलता कूट-कूट कर भरी है । उनके साथ समय व्यतीत करना हमेशा ही सीखने का एक बेहतर अवसर होता है । उनसे बात करते हुए मुझे आज तक यही महसूस हुआ कि उनसे किसी भी विषय पर चर्चा अबाधित रूप से चलती ही रहनी चाहिए । उनका चिंतन और उनकी तर्कशैली बेहद सटीक और आकर्षक लगती है । आम बोलचाल में भी उनके द्वारा किए गये शब्दों का चयन उनके बेहतरीन संप्रेषण कौशल से रूबरू कराती है।
मेरी सर से पहली मुलाकात एससीईआरटी में हुई लेकिन उनके भारी भरकम नाम को मैंने सुना था, इसलिए उनसे पहली मुलाक़ात से ही मैं गदगद महसूस कर रहा था । जिस दिन मेरी उनसे चर्चा हुई उस समय उनके बौद्धिक व्यक्तित्व से मैं न केवल परिचित हुआ, बल्कि इतना प्रभावित हुआ कि उनका मुरीद ही हो गया और उनसे किसी न किसी विषय पर चर्चा के अवसर बनाने लगा । उनके चिंतन में इतनी स्पष्टता है कि चर्चा का विषय भले ही कुछ भी क्यों न हो, साहित्य, समाज, शिक्षा, विज्ञान और लोक साहित्य में तो वे जीते ही हैं, वे मुझे लाजवाब लगे । वे हर विषय में मुझे हमेशा ही उतने ही आकर्षक और प्रभावी लगे ।
जीवन में किसी व्यक्तित्व से मुलाकात संभवतया प्रारब्ध होता है, और सर का सानिध्य मेरे लिए सौभाग्य की बात है । उनके जैसे विद्वान और विराट व्यक्तित्व को भी शिक्षा व्यवस्था में न्यायोचित सम्मान नहीं मिल सका इसका मुझे व्यक्तिगत रूप से खेद है । कई वर्षों तक एलटी शिक्षक के रूप में उन्होंने अपनी सेवा विभाग को दी, समय पर पदोन्नति न हो पाने के करण पूरे सेवाकाल में बमुश्किल वे एक पदोन्नति पा सके।
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आज भी एससीईआरटी में यदि क्षेत्रीय बोली-भाषा या साहित्य संबंधी कोई भी अकादमिक कार्य आता है तो उसके क्रियान्वयन का गणेश डॉ० नंद किशोर हटवाल के नाम से ही होता है लेकिन एक विभागीय उच्चाधिकारी के हठ के कारण एलटी से प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नति के उपरांत उन्हें एससीईआरटी न देने की जिद बताती है कि शिक्षा व्यवस्था प्रतिभा का कितना सम्मान करती है ।
ऐसे कई बेहद प्रतिभाशाली शिक्षक आज विभाग में हैं जिन्हें प्रतिभा के हिसाब से केवल दायित्व देने भर की देरी है, उन्हें न कोई प्रशिक्षण चाहिए और न ही धनराशि के रूप में प्रोत्साहन, बस अपने उच्चाधिकारियों का आदेश और विश्वास चाहिए इतने में ही वे शिक्षा जगत में अविस्मरणीय योगदान देने की कुव्वत रखते हैं, लेकिन आज भाई-भतीजवाद और भ्रष्टाचार ने समूचे तंत्र को इस हद तक खोखला कर दिया कि अब जवाबदेह और जिम्मेदार हितधारकों को किसी भी बात की पीड़ा नहीं होती है ।
एक बेहद प्रतिभाशाली शिक्षक व उच्च कोटि के साहित्यकार के उल्लेखनीय सेवाकाल के कुछ हिस्से को अपनी सेवा यात्रा में पाकर उसका हिस्सा बनाना मुझे न केवल आनन्द की अनुभूति देता है बल्कि गौरवान्वित भी करता है।