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पुराने और अकुशल बिजली संयंत्र 66 बिलियन डॉलर की देनदारी कम करने में हैं पहला रोड़ा: IEEFA

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) का अपनी ताज़ा रिपोर्ट हुआ खुलासा
सबसे पहले अपने पुराने अकुशल और महंगे थर्मल पावर प्लांट्स को कम करने पर ध्यान दें सरकारें
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : भारत के बिजली वितरण क्षेत्र में फ़िलहाल 66 बिलियन डॉलर की देनदारी है जिसे कम करने में सबसे बड़ा रोड़ा पुराने और अकुशल बिजली संयन्त्र हैं।
इन पुराने हो चुके संयंत्रों से मिले नुकसान से मिली इस देनदारी के चलते इस क्षेत्र में वित्तीय और परिचालन अक्षमताओं का बढ़ना जारी है। यह कहना है इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) का अपनी ताज़ा रिपोर्ट में। IEEFA की विभूति गर्ग और कशिश शाह द्वारा लिखित इस रिपोर्ट में, अन्य रणनीतियों के साथ-साथ, इस बात की सिफारिश की गई है कि बिजली वितरण कम्पनियां बिजली खरीद की अपनी औसत लागत को कम करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर सबसे पहले अपने पुराने अकुशल और महंगे थर्मल पावर प्लांट्स को कम करने पर ध्यान दें।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विभुति ने कहा, “कई थर्मल पावर स्टेशन इतने पुराने हैं कि वो आधी क्षमता पर ही काम कर रहे हैं लेकिन अनुबन्ध नियमों की बाध्यता के चलते राज्यों को उनके भारी शुल्क का भुगतान जारी रखना पड़ता है।” वह आगे कहती है, “हम समझते हैं कि पावर प्लांटों को रिटायर करना आसान नहीं है लेकिन एक स्वच्छ, सस्ती ऊर्जा अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने और अपने ऋण को कम करने के लिए यह एक ज़रूरी कदम है।
अपने जीवन काल के आख़िरी छोर पर पहुंचे इन अकुशल थर्मल पावर प्लांट्स से किनारा करने से राज्य न सिर्फ़ अपने घाटे कम कर पाएंगे, बल्कि बिजली उत्पादन की नयी और पर्यावरण के लिए बेहतर तकनीक में निवेश करने कि स्थिति में पहुँच पाएंगे। यही वजह रही है है कि पिछले एक दशक में सरकार से कई बेलआउट पैकेज प्राप्त करने के बाद भी डिस्कॉम अपने परिचालन प्रदर्शन में सुधार नहीं कर पाया है।
हालांकि, डिस्कॉम की वित्तीय स्थिरता और व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है, लेकिन यह रिपोर्ट महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश की केस स्टडीज़ का विश्लेषण कर इन राज्यों के लिए कुछ सिफारिशों के साथ भारत सरकार के लिए भी सुझाव देती है जो की इस प्रकार हैं:
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पुराने और अकुशल संयंत्रों को बंद करने से न सिर्फ़ प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन कम होगा,फिक्स्ड चार्ज के भुगतान की भी बचत होगी।
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प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी),सौर सिंचाई पंप,सौर रूफटॉप सिस्टम जैसी योजनाओं को अनुमति देते हुए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए क्रॉस-सब्सिडी को कम करना।
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डिजिटलीकरण के माध्यम से तमाम नुकसान और चोरी को रोकना। डिजिटल और प्रीपेड मीटरों को स्थापित करने से डिस्कॉम अपने लोड को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर पाएंगी।
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सालाना टैरिफ को संशोधित करने से डिस्कॉम को महंगाई के साथ तालमेल रखने में मदद मिलेगी।
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निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा बढ़ाने से उत्पादक,वितरक और बिजली आपूर्ति कंपनियों पर अपनी दक्षता बढ़ाने,लागत कम करने, और आपूर्ति को अधिक विश्वसनीय बनाने का प्रोत्साहन मिलेगा।
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राष्ट्रीय पूल बाजार में जाना राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन को सुधारेगा।
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इस तरह से नए टैरिफ ढांचे को लागू करना जिससे सौर और पवन ऊर्जा टैरिफ में शुरूआती 5 सालों में 10-20 प्रतिशत की कमी लायी जा सके और महंगी और अकुशल थर्मल क्षमता से किनारा किया जा सके।