TEHRI-GARHWAL

पलायन की मार झेल रहे सौड़ गांव में दीपक रमोला व साथियों ने रंगों ने भर दी ‘जान’

12 ही परिवार रह रहे हैं केवल अब  70 परिवारों के गांव में 

खंडहर दीवारों को 80 कलाकार संवारने पर जुटे  

चंबा (टिहरी): पलायन से पहाड़ के गांव वीरान होते जा रहे हैं। जिन घरों में कभी जीवन बसता था वे खंडहर हो चुके हैं। चंबा ब्लॉक का सौड़ भी एक ऐसा ही गांव है। उजाड़ गांव कहे जाने वाले इस गांव में दीपक रमोला ने अब जान भर दी है। गांव के  जिस घर में सबसे पहले रेडियो आया कलाकारों ने उस घर की दीवार पर उकेरे चित्रों से यह दिखाने का प्रयास किया है कि यही वह घर है जहाँ सबसे पहले रेडियों की आवाज़ लोगों से सुनी इतना ही नहीं इस गांव के हर खंडहर घर की दीवार पर उसकी पुरानी यादें चित्रों के जरिए संजोई जा रही है। मसकद है पलायन को रोकने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देना।

चंबा ब्लॉक का सौड़ गांव कभी 70 से अधिक परिवारों से गुलजार थे, लेकिन अंतरक्षेत्रीय पलायन के चलते गांव में अब 12 परिवार रह रहे हैं। शेष सभी परिवार जड़ीपानी, धनोल्टी आदि सुविधाजनक स्थानों पर बस गए, लेकिन इसी ब्लॉक के कोट गांव निवासी दीपक रमोला ने सौड़ गांव की पुरानी यादों को जिंदा करने का बीड़ा उठाया है। दीपक ने गांव से पलायन कर चुके हर परिवार से संपर्क किया। उनकी गांव की जीवन शैली, शिक्षा, खान-पान, रीति-रीवाज के बारे जानकारी जुटाई।इसके बाद वेबसाइट के जरिए भीति चित्रकारों से गांव के खंडहर घरों की दीवारों पर चित्रकारी के लिए संपर्क किया।

बकौल दीपक रमोला, करीब 300 भीति चित्रकार ने यहां आने के लिए आवेदन किया। इसमें अब तक 80 कलाकार गांव के खंडहर घरों पर कलाकृति कर चुके हैं। यह काम इसी साल एक जून से शुरू किया था, जो 30 जून तक पूरा होगा। करीब पचास घरों की दीवार पर सुंदर चित्रकारी हो चुकी है। बताया कि हमारा उद्देश्य पलायन को रोकना है। अब इन खंडहर घरों को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आने लगे हैं। इससे गांव में रह रहे परिवारों को भी स्वरोजगार मिल रहा है।

खंडहर घरों की दीवार पर चित्रों के माध्यम से कभी यहां रहे लोगों की जीवन शैली के साथ ही गांव का इतिहास भी दर्शाया जा रहा है। एक घर की दीवार पर आकाशवाणी के जरिये समाचार सुनते के कुछ लोग दिखाए गए। बताया गया कि उस घर में सबसे पहले रेडियो आया था। एक दीवार पर पालकी में दूल्हा और डोली पर दुल्हन दिखाई गई। इस घर में दशकों पहले शादी हुई थी। उसी शादी की यह झलकी दर्शाने की कोशिश की गई। गांव में स्कूल जाते बच्चे भी कलाकारों ने चित्रों के माध्यम से दिखाए। एक चित्र में यह भी दिखाया गया कि लंबे समय से गांव में बारिश नहीं हुई। तब लोग ढोल-दमाऊ के साथ मां सुरकंडा देवी पास जा रहे हैं, ताकि बारिश हो।

devbhoomimedia

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