UTTARAKHAND

पहाड़ों की पहचान पर संकट: विकास के नाम पर उजड़ती धरोहर

 

संपादक: प्रियंका ध्यानी, देहरादून। कभी अपनी संस्कृति, जमीन और प्रकृति पर गर्व करने वाले पहाड़ के लोग आज विकास और रोजगार के नाम पर अपनी ही पहचान का सौदा कर रहे हैं। शहरों से आने वाले धनाड्य लोग, रिसॉर्ट और होटल खड़े करने के लिए पहाड़ी जमीन खरीद रहे हैं। इसके बदले में स्थानीय लोग कुछ पैसों के लालच में अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ रहे हैं — और धीरे-धीरे अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं।

स्थानीयों का कहना है कि जो लोग कभी इन पहाड़ों के मालिक थे, अब उन्हीं के नौकर बनते जा रहे हैं। प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा भी अब साफ दिखने लगा है — आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है और इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा पहाड़ के लोग ही भुगत रहे हैं।

पर्यावरण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अंधाधुंध निर्माण, जंगलों की कटाई और पहाड़ों की खुदाई से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। अगर यही रफ्तार जारी रही, तो आने वाले समय में गांव-गांव खाली हो जाएंगे, जलस्रोत सूख जाएंगे और पहाड़ केवल कंक्रीट के जंगल में बदल जाएंगे।

शहरों में रह चुके लोग अब शांति के नाम पर पहाड़ों में बसने लगे हैं, लेकिन वे यहां भी अपनी शहरी आदतें और ढांचा लेकर आ रहे हैं — जिससे न केवल स्थानीय संस्कृति बल्कि पूरा पर्यावरण खतरे में है।

अब भी वक्त है — अपनी भूमि, अपनी धरोहर और अपनी पहचान को बचाने का।
वरना, कुदरत के गुस्से का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, और जब पहाड़ ही नहीं बचेंगे, तब इस पछतावे का कोई मतलब नहीं होगा।

Related Articles

Back to top button
Translate »