गांधी जी जैसा समाज चाहते हैं उन्होंने स्वयं को वैसा बनाया उनके नेतृत्व में लोगों में अपूर्व त्याग,परमार्थ की भावना पैदा हुई। जिस कारण आजादी में असंख्य भारतवासियों ने अपने हितों का त्यागकर जन-कल्याण के लिए अपना सर्वस्व उत्कर्ष किया था …..
कमल किशोर डुकलान
जैसा कि हम जानते हैं कि भ्रष्टाचार और अपराध की प्रवृतियों ने समाज में अपने जड़ें व्यापक रुप से जम चुकी हैं। बिनोवाभावे के शब्दों में”भ्रष्टाचार आज के समाज का शिष्टाचार” बनकर रह गया है। जब सभी लोग ऐसा करने लगे तो वह केवल शिष्टाचार रह जाता है। वह भ्रष्टाचार तबतक है जबतक उसे कुछ लोग करते हैं। लेकिन जब इसे सभी अपने आचरण में अपनाने लगे तो वह एक शिष्टाचार बनकर रह जाता है।
बात भी बिल्कुल सही है,आज भ्रष्टाचार ने जन-जीवन को प्रभावित कर रखा है। नौकरी,व्यापार,राजनीति,व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन आदि में भ्रष्टाचार अन्दर तक घर कर चुका है। व्यक्ति के आचरण,सच्चाई,ईमानदारी,कर्तव्य परायणता,न्याय आदि में व्यवहार अनुकूल न होकर बेईमानी,झूठ,स्वार्थ और अन्याय संगत होता चला जा रहा है। क्योंकि जबतक व्यक्तिगत जीवन से भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा तब तक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में प्रगति और उन्नति की सभी योजनायें अपूर्ण ही रहेंगी।
अनेकों लोगों का मत है कि भ्रष्टाचार सरकारी संयंत्र पर दूर करने के लिए बड़े कानूनों बनाने की आवश्यकता है। जो कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आवश्यक भी है। इस प्रकार भ्रष्टाचार को सरकारी नियंत्रण से काफी हदतक दबाया भी जा सकता है। दुनिया के आज जितने भी प्रधान शासक वाले देश हैं उनमें ऐसा भी होता है। और उन देशों में काफी हदतक इसमें सफलता भी मिली है। किन्तु भ्रष्टाचार रुपी बुराइयों को शासन स्तर पर तबतक पूर्णतया मिटाया नहीं जा सकता है जबतक सरकारी कार्य प्रणाली इससे प्रभावित रहेगी तब तक कानून इसमें कारगर साबित नहीं होगा। क्योंकि सरकारी स्तर पर उससे बचने के पहले ही रास्ते निकाल लिए जाते हैं। देखने में आता है,कि अनेकों बार इसमें दोषी व्यक्ति भी दोषमुक्त हो जाते हैं। और आज यही हो रहा है।
इस तरह का सरकारी प्रयत्न भ्रष्टाचार रोकने का पूर्ण समाधान नहीं है। कुछ अंशों में भ्रष्टाचार जैसी समस्या को दूर करने में सहायक जरुर हो सकता है। लेकिन भ्रष्टाचार की समस्या मूलतः सामाजिक समस्या है जो कि समाज के चरित्र और स्वभाव से सम्बन्ध रखती है। जबतक मनुष्य का सामाजिक स्तर पर चरित्र उत्कृष्ट नहीं होगा तब तक उसका स्वभाव उत्तम नहीं बनेगा।आज लोगों को चरित्र निर्माण की दिशा में प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है। तभी सामाजिक स्तर पर भ्रष्टाचार मिटेगा।
इसके लिए सबसे पहले समाजसेवी, राजनेता,प्रबुद्ध जन, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी,शिक्षक आदि को अपना आदेश चरित्र और सद्व्यवहार का उत्कृष्ट उदाहरण जन साधारण के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। किसी भी वस्तुस्थिति को समाज में प्रस्तुत करने के लिए उसे सबसे पहले अपने आचरण में अपनाना होगा तभी समाज के अन्य लोग उसका आचरण करेंगे।
सामाजिक,राजनैतिक,नौकरशाह आदि लोग प्रत्यक्ष अपने आचरण और उदाहरण द्वारा चरित्र निर्माण के मार्ग पर चलकर भ्रष्टाचार जैसी बुराई को त्यागकर सही मार्ग नहीं दिखायेंगे तब तक भ्रष्टाचार, अपराध की प्रवृत्तियां हमारे समाज से दूर नहीं हटेगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उदाहरण हम सबके सामने है। उन्होंने न तो कानून बनाने की कभी वकालत की,न दोषी को सजा देने का प्रावधान रखा और न कभी समाज को दोषी ठहराया उन्होंने जैसा समाज को बनाना चाहा उसके अनुसार उन्होंने स्वयं को बनाया। यही कारण था कि आजादी में गांधी जी के नेतृत्व में लोगों के अंदर अपूर्व त्याग, परमार्थ की भावना पैदा हुई। जिस कारण उनके नेतृत्व में असंख्य भारतवासियों ने अपने हितों का त्यागकर जन-कल्याण के लिए अपना सर्वस्व उत्कर्ष किया था। जबतक हम अपने इस आदर्श का अवलंबन नहीं करेंगे तब तक साधारण जन सामान्य भी इन आदर्शों को अंगीकार नहीं करेगा।
हमें अपने अनैतिक रुप से अर्जित अर्थोंपार्जन के तौर-तरीकों को त्यागना पड़ेगा आज की सबसे बड़ी समस्या राजनेता, नौकरशाह,व्यापारी सभी में है। कि वे परमपिता परमात्मा द्वारा मिले धन से संतुष्ट नहीं हैं वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक सम्पत्ति के अर्जन में लगे हैं। जो भ्रष्टाचार और अपराध दूर करने में सबसे बड़ी बाधा है। आज सामाजिक स्तर पर, सरकारी प्रतिष्ठानों एवं अन्य कार्यालयों में ऐसे वातावरण बनाने की आवश्यकता है जिससे लोगों को अपनी भ्रष्टाचार,अपराध जैसी बुराई छोड़ने की प्रेरणा मिलें और लोगों को सामूहिक एवं व्यक्तिगत रुप से मिलावट,घूस न लेने और न देने एवं अपने कर्त्तव्य की प्रतिज्ञाएं कराईं जाए जिससे समाज में भ्रष्टाचार विरोधी वातावरण का निर्माण हो।
अगर देखा जाए तो भ्रष्टाचार करने वाले हम स्वयं ही हैं जबतक हम सामूहिक रुप से इस बुराई का त्याग नहीं करेंगे हमें अपने उत्कृष्ट आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा तभी भ्रष्टाचार और अपराध का भूत समाज से नष्ट हो पायेगा। अक्सर हम परस्पर शिकायत करते हैं कि”भ्रष्टाचार बढ़ गया है” “अमुक व्यक्ति दोषी है” लेकिन अपने कर्त्तव्य पर धांधली करने वाले अधिकारी, कर्मचारी के विरुद्ध कितने लोगों लिखित में अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं। अपने काम में लेट लतीफी और लापरवाही करने वालों के खिलाफ कितने लोग बोलते हैं-? कोई नहीं…. उल्टा हम घूस देकर अपना काम निकाल लेना हम ज्यादा पसंद करते हैं। इस तरह के अन्याय,अत्याचार,रिश्र्वत, भ्रष्टाचार,अपराध आदि के विरुद्ध सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है साथ ही समाज में आज ऐसे व्यक्तियों को निस्वार्थ भाव से आगे आने की आवश्यकता है जिनमें जनसेवा की भावना हो और जो निडर होकर इन बुराइयों का तत्परता से सामना कर सकें।
आज देश में भ्रष्टाचार और अपराध की एक बड़ी समस्या के रुप में अपनी नागरुपी बन फैला रही है। इसे दूर करना आज आवश्यक हो गया है। इसे मिटाये बिना हमारी विकास रुपी आत्मनिर्भरता अधूरी है।