COVID -19UTTARAKHANDVIEWS & REVIEWS
उत्तराखंड में घुसते ही कोरोना ‘VVIP’ हो गया !
आम के लिए हाई रिस्क तो ख़ास के लिए लो रिस्क हुआ कोरोना वायरस
कोरोना ने उत्तराखंड में वीवीआईपी की ताकत देखी तो उसने उनसे एमओयू ही कर लिया
साफ साफ कह दिया,VVIP और उनके साथिय़ों को ओर देखेगा भी नहीं
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
जब से कोरोना उत्तराखंड में घुसा, वो वीवीआईपी हो गया। उत्तराखंड में घुसने से पहले वो समझ रहा था कि सबको डराऊंगा और फिर जिसको चाहूंगा एकांतवास पर भेज दूंगा। इतनी दहशत फैलाऊंगा कि हर कोई घर में बंद हो जाएगा। पर यह उसकी भूल थी, ऐसा उसको यहां पहुंचने के कुछ दिन में ही समझ आ गया।
उसको क्या पता था कि उत्तराखंड में वीवीआईपी उससे भी ज्यादा बलशाली है। किसी को भी नंगी आँख नहीं दिख पाने वाला कोरोना जैसा तुच्छ वायरस यहां आम व्यक्ति को तो डरा सकता है पर वीआईपी का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
वीवीआईपी को ही ताकतवर मानकर उसने मन ही मन विचार कर लिया कि क्यों न वीवीआईपी बन लिया जाए। वीवीआईपी तो तभी बनेगा, जब वीआईपी से कोई एमओयू कर लेगा। एमओयू तभी साइन होगा, जब वो वीआईपी को मनमानी करने देगा। उसने कहा, यह भी मंजूर है। करो मनमानी, न तो मैं किसी वीआईपी की ओर देखूंगा और न ही उनके किसी साथी की ओर। जिस पर वीआईपी की स्नेहभरी दृष्टि होगी, मैं उससे अपनी दृष्टि फेर लूंगा।
कोरोना गलती से उत्तराखंड के एक वीवीआईपी परिवार का मेहमान बन गया। उसे अपनी इस गलती का इतना पश्चाताप हो रहा है कि बेचारा देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान के विशेषज्ञों को बार-बार यह समझा रहा है कि इनके घर अतिथि बनकर पहुंचने वाले से कोरोना बिरादरी का कोई लेना देना नहीं है। वो तो इतना कमजोर है कि उसके बारे में सोचने की जरूरत ही नहीं है।
लैब वालों ने तो उस पर हमारा मार्का देख लिया और फिर मीडिया ने हम असली कोरोना को बदनाम कर दिया। वो समझा रहा है कि वीवीआईपी के घर में मेहमान बना कोरोना बिल्कुल फर्जी है। इसका हमारे से कोई मतलब नहीं है।
एमओयू के मुताबिक कोरोना उत्तराखंड में वीवीआईपी और वीआईपी को परेशान नहीं कर सकता। इसलिए बार-बार गुहार लगा रहा था कि वीवीआईपी के परिवार को होम क्वारान्टाइन कर लो। उसकी बात मान भी ली गई, पर बाद में वीवीआईपी परिवार को यह कहकर फिर से हॉस्पिटल बुला लिया गया कि उनके आलीशान घर में होम क्वारान्टाइन की सुविधा ही नहीं है।
कोरोना अब बार-बार माथा पीटते हुए कह रहा है कि वो कौन सी घड़ी थी, जब मैं इन वीवीआईपी के लिए बार-बार झूठ बोल रहा था।
उधर, एमओयू करने के बाद वीवीआईपी ने कोरोना को कीड़े मकोड़े की तरह समझ लिया। अब तो वो कोरोना से बिल्कुल भी नहीं डरते। उन्होंने अपने और आम लोगों के लिए क्वारान्टाइन के अलग-अलग नियम बना लिए। चूंकि एमओयू कागजों पर नहीं है तो ये नियम भी कागजों में दिखाई नहीं देते। यह तो उनकी कोरोना से परस्पर मौखिक समझ (म्युचुअल ओरल अंडरस्टैंडिंग) है।
वहीं आम व्यक्ति के लिए क्वारान्टाइन के नियमों में कोई बदलाव नहीं है, क्योंकि उनका कोरोना से कोई एमओयू नहीं है। इसलिए उनको कोरोना से बचना चाहिए क्योंकि कोरोना का वायरस उसके लिए हाई रिस्क है।
हवाई जहाज से उतरो या फिर ट्रेन से या फिर बस से आ रहे हो या फिर किसी टैक्सी से, वीवीआईपी और वीआईपी अपनी मर्जी से तय कर रहे हैं कि किसको होम क्वारान्टाइन पर जाना है और किस को इंस्टीयूशनल। किसको सात दिन में ही एकांतवास से बाहर आना है और किसको तीन दिन में या फिर किसको 14 या फिर 21 दिन में। कोरोना ने वीआईपी के हर फैसले से आंखें मूंद ली। वीआईपी के सामने घुटने टेक चुके कोरोना ने राज्य के एक वीवीआईपी को हुए संक्रमण में अपना हाथ होने से साफ इनकार कर दिया।
कोरोना की पहचान बड़ी गजब की है, वो देखते ही पहचान जा रहा है कि कौन वीआईपी है और कौन आम आदमी।
उत्तराखंड में बाहर से आने वाले आम व्यक्ति हो, तो सीधे 14 दिन के इंस्टीट्यूशनल क्वारान्टाइन पर जाओ। सैंपल दो और फिर इंतजार करो रिपोर्ट का। रिपोर्ट सात दिन में आ गई तो ठीक है, नहीं तो इंतजार लंबा होगा। सैंपलों का बैक लॉग लगभग सात हजार है। कब नंबर आएगा, इसका भी पता नहीं।
खैर, अब कोरोना ने अपना घोषणापत्र ही बदल दिया है। उसका कहना है कि उत्तराखंड के वीवीआईपी और वीआईपी उसके दायरे में नहीं आते, ऐसा इसलिए क्योंकि यहां वीआईपी हमेशा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते आए हैं। आम जनता का क्या है, वो य़हां वीवीआईपी और वीआईपी के सामने पहले से ही कमजोर है। जो कमजोर होगा, उसी पर तो वश चलता है। इसलिए उसको यहां ताकतवर से एमओयू करके लाभ ही मिला है। पर यहां के कुछ इंस्टीट्यूशनल क्वारान्टाइन सेंटरों की हालत देखकर कोरोना भी सोच रहा है कि यहां से जितना जल्दी हो, भाग जाओ।