उत्तराखंड राज्य में पहली बार शुरू हुई प्लाज्मा थेरेपी
ICMR से निर्धारित गाइडलाइन्स का पालन करते हुए देश- विदेश में हो चुकी है यह थेरेपी प्रारम्भ
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने प्लाज्मा देने वालों का किया आवाहन आप लोग सिर्फ प्लाज्मा डोनर ही नहीं, बल्कि हैं “लाइफ डोनर”
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
ऋषिकेश : AIIMS ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी हुई शुरू -एम्स संस्थान बना उत्तराखंड का पहला प्लाज्मा डोनेट सेंटर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी विधिवत शुरू हो गई है। इस थेरेपी के शुरू होने से कोविड19 को पराजित कर चुके मरीज अन्य कोविड संक्रमितों की जीवन रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं। एम्स संस्थान में बीते सोमवार को कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा का सफलतापूर्वक आधान किया गया।
उत्तराखंड राज्य में यह थेरेपी पहली बार शुरू हुई है, साथ ही उत्तराखंड राज्य में एम्स ऋषिकेश इस प्रक्रिया को शुरू करने में अग्रणीय रहा है। गौरतलब है की एम्स ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा डोनेशन प्रारंभ हो चुका है। इसी क्रम में बीते माह 24 जुलाई को कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा डोनर्स के प्रथम समुह को इस प्रकिया के बारे में जानकारी दी गई थी। बताया गया कि क्रमशः पिछले माह 27 जुलाई, 29 जुलाई व इसी माह 1 अगस्त को तीन कोविड -19 संक्रमण से ठीक हुए मरीजों (कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं) से तीन यूनिट कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एकत्रित किया गया था। उत्तराखंड राज्य में यह थेरेपी पहली बार शुरू हुई है, साथ ही उत्तराखंड राज्य में एम्स ऋषिकेश इस प्रक्रिया को शुरू करने में अग्रणीय रहा है I इन प्लाज्मा यूनिट्स का आगे भी कोविड -19 बीमारी से ग्रसित रोगियों में आधान किया जाएगा।
कोविड -19 महामारी वर्तमान में एक बड़ी समस्या बनी हुई है। सम्पूर्ण विश्व इस समय इस बीमारी से रोकथाम, निदान तथा उपचार को खोजने में जुटा है। एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों के मुताबिक इस बीमारी के उपचार में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। इसके अनुक्रम में आईसीएमआर द्वारा निर्धारित गाइडलाइन्स का पालन करते हुए देश- विदेश में यह थेरेपी प्रारम्भ हो चुकी है। बताया गया है कि कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा उन रक्तदाताओं से एकत्रित किया जाता है, जो कि कोविड19 संक्रमण से ठीक हो चुके हों और जिनमें उपचार के बाद भविष्य में वायरस की उपस्थिति नगण्य हो। यह केवल विशिष्टरूप से उन स्वस्थ हो चुके लोगों से एकत्रित किया जाता है, जो रक्तदान के लिए योग्य हों। जानकारों की मानें तो ऐसे लोग वायरस के खिलाफ प्रतिरोधी होते हैं तथा इनमें वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज होती है। पहले भी यह उपचार ईबोला सार्स तथा एमईआरएस जैसी वायरस जनित संक्रमण के इलाज में उपयोगी हो चुका है। एक मरीज से किया गया यह एकत्रीकरण दो मरीजों को लाभ दे सकता है। एम्स ऋषिकेश इसके लिए प्रक्रिया विधिवत आरंभ कर दी गई है।
इस अवसर पर एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी भी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी का उत्पादन करने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती हैं और वांछनीय स्तरों तक वायरस के गायब होने तक अपनी संख्या में सतत वृद्धि जारी रखती हैं। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति में निर्मित एंटीबॉडी, एक रोगी में सक्रिय वायरस को बेअसर कर देगा, साथ ही उसकी रिकवरी में तेजी लाने में मदद करेगा। एम्स निदेशक प्रो. रवि कांत जी ने कोविड-19 संक्रमण से उबरने वाले लोगों से आह्वान किया कि जिन एंटीबॉडीज ने आपको कोविड -19 से जीतने में मदद की, अब दान किए गए प्लाज्मा से मिलने वाले एंटीबॉडी से गंभीर बीमारी वाले रोगियों की मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि आप लोग सिर्फ प्लाज्मा डोनर ही नहीं हैं, बल्कि “लाइफ डोनर” हैं।
डा. प्रसन्न कुमार पांडा ने बताया कि एक कोविड -19 से ग्रसित मरीज को दिए जा रहे अन्य तरह के उपचार से लाभ प्राप्त नहीं हो रहा था। लिहाजा ऐसे मरीज में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी प्रारंभ की गई। इस अवसर पर ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डा. गीता नेगी ने कहा कि कोई भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति जो नेगेटिव आ चुका हो, वह नेगेटिव आने के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जिसके लिए एक एंटीबॉडी टेस्ट किया जाएगा तथा रक्त में एंटीबॉडी का लेवल देखा जाएगा। यह एंटीबॉडी प्लाज़्माफेरेसिस नामक एक प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा के साथ एकत्र किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति का पूरा रक्त प्लाज्मा तथा अन्य घटक एफेरेसिस मशीन द्वारा अलग किया जाता है। प्लाज़्मा (एंटीबॉडी युक्त) को कॉनवेल्सेंट प्लाज़्मा के रूप में एकत्रित किया जाता है और अन्य लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स जैसे अन्य घटक प्रक्रिया के दौरान रक्तदाता में वापस आ जाते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा दान करना दाता प्लाज्मा डोनर के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है, उन्होंने बताया कि इससे उसके स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव अथवा बुरा असर नहीं पड़ता है।
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. दलजीत कौर, डा. सुशांत कुमार मीनिया व डा. आशीष जैन ने कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं से अपील की है कि वे इस प्रकिया के बारे में जनसामान्य में ज्यादा से ज्यादा जागरुकता फैलाएं ताकि भविष्य में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा यूनिट्स की कमी नहीं पड़े। उन्होंने बताया कि एम्स ऋषिकेश के रक्तकोष ब्लड बैंक में किसी भी समय आकर इस प्रकिया तथा इससे संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है।