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जीएसटी को लेकर केन्द्र सरकार पर अपने वादे से पलटने का कांग्रेस का आरोप

केन्द्र सरकार ने जीएसटी लागू करते समय कहा था कि जिन राज्यों को जी.एस.टी. लागू होने के बाद नुकसान होगा तो उसकी भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जायेगी : प्रीतम सिंह

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने केन्द्र सरकार पर अपने वादे से पलटने का आरोप लगाते हुए राज्यों के भरोसे पर कुठाराघात किया है। प्रीतम सिह ने कहा कि केन्द्र सरकार ने जीएसटी लागू करते समय कहा गया था कि जिन राज्यों को जी.एस.टी. लागू होने के बाद नुकसान होगा तो उसकी भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा की जायेगी। परन्तु अब केन्द्र की मोदी सरकार अपने इस वादे से पलट गई है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों के उस भरोसे को तोड़ते हुए जीएसटी से होने वाले नुकसान की भरपाई करने से साफ इनकार कर दिया है। जीएसटी लागू होने के बाद हर वित्तीय वर्ष में उत्तराखण्ड को 2241 करोड़ का घाटा हो रहा है अब केन्द्र सरकार अपने वादे से पलट गई है जिससे राज्य को वित्तीय संकट से गुजरना पड़ रहा है। प्रीतम सिंह ने राज्य सरकार की सुस्ती पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ जहां राज्य आपदा से जूझ रहा है, दूसरी तरफ किसानों की बदहाली से जूझ रहा है, तीसरी तरफ बेरोजगारी के दंश को झेल रहा है। कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देने के लिए भी बाजार से कर्ज लेना पड़ रहा है, ऐसे में जीएसटी से होने वाले 2241 करोड़ रूपये के घाटे के लिए केन्द्र सरकार के सामने मजबूत पैरवी क्यों नहीं की जा रही है?
प्रीतम सिंह ने आरोप लगाया कि एक तरफ जहां राज्य सरकार ने अभी तक किसानों के ऋण माफी का वादा नहीं निभाया है वहीं दूसरी ओर अति वृष्टि और ओलावृष्टि से हुए नुकसान का भी मुआबजा किसानों को नही दिया है। श्री प्रीतम सिंह ने केन्द्र सरकार को भी आढे हाथों लेते हुए कहा कि जो केन्द्र सरकार जीएसटी से होने वाले नुकसान के लिए आज राज्य सरकारों को ऋण लेने की नसीहत दे रही है अच्छा होता यदि केन्द्र सरकार स्वयं ऋण लेकर राज्य सरकारों को होने वाले नुकसान की भरपाई करने का अपना वादा निभाती। उन्होने कहा कि भारत सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को बकाया जीएसटी के मुआवजे के भुगतान करने में अपनी असमर्थता जताई है। दरअसल, कोविड-19 महामारी के चलते वित्तीय वर्ष 2020-21 में जीएसटी वसूली में 2.35 लाख करोड़ रूपये की कमी होने का अनुमान है। इस कड़ी में केन्द्र सरकार पर राज्यों की करीब 3 लाख करोड़ रूपये की देनदारी है। सवाल ये उठता है कि वित्त मंत्री के क्षतिपूर्ति देने ने हाथ खड़े करने से राज्यों में गंभीर वित्तीय संकट तो खड़ा नहीं हो जाएगा?
गौरतलब है कि जीएसटी परिषद की 41वी बैठक गुरुवार को हुई थी। जिसमें कर वसूली, राजस्व घटने से पैदा हुए वित्तीय संकट से उबरने के उपायों पर मैराथन चर्चा हुई।  वित्त मंत्री ने कोरोना महामारी के हालात में राज्यों को उनके जीएसटी से होने वाले नुकसान की भरपाई की बकाया रकम अदा करने में असमर्थता जताई। उन्होंने राज्यों को  बाजार से पूंजी जुटाने या फिर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई) से उधार लेने के 2 विकल्प सुझाये। सीतारमण के इस सुझाव का केवल गैर एनडीए शासित राज्यों ने विरोध किया है परन्तु उत्तराखण्ड जैसे राज्यों ने इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठाई। राज्यों के वित्तमंत्रियों द्वारा उठाये गये सवाल पर निर्मला सीतारमण ने अटॉर्नी जनरल की कतिपय कानूनी राय का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र राज्यों को मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं है। प्रीतम सिंह ने कहा कि केंद्र के मुआवजा देने से मना करने पर संघीय ढांचे में टकराव बढ़ने के आसार हैं। जीएसटी का मुआवजा नहीं मिलने से कोरोना महामारी की मार झेल रहे राज्यों में वित्तीय संकट पैदा हो सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर गिने-चुने राज्य छोड़ दें तो ज्यादातर में वित्तीय प्रबंधन बहुत अच्छा नहीं है। अगर केंद्र से जीएसटी क्षतिपूर्ति की बकाया रकम का भुगतान नहीं मिला तो हालात और खराब हो जाएंगे।

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