वर्ल्ड टेलिविजन डे पर विशेष
टीवी आनेवाले वक्त में इतना ताकतवर माध्यम होगा यह बात लोगों को 1996 में आ गई थी समझ
नरेन्द्र चौधरी
टेलिविजन (टीवी) का नाम आते ही सामने बोलती तस्वीरें घूमने लगती हैं, जो कभी ब्लेक ऐंड वाइट हुआ करती थीं और तरक्की के साथ अब कलर में बदल गईं। लोगों ने टेलिविजन के रूप और तकनीक को अपने सामने बदलते देखा है। टीवी आनेवाले वक्त में इतना ताकतवर माध्यम होगा यह बात लोगों को 1996 में समझ आ गई थी। उसी साल से 21 नवंबर को वर्ल्ड टेलिविजन डे मनाया जा रहा है।
1996 की बात है, तब संयुक्त राष्ट्र ने पहली वर्ल्ड टेलिविजन फोरम बुलाई थी। उसमें दुनिया भर की टीवी इंडस्ट्री के प्रमुख लोग शामिल हुए थे। सब ने वैश्विक राजनीति और डिसिजन मेकिंग में टीवी के रोल पर चर्चा की। इवेंट में माना गया कि समाज में टीवी का रोल दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 21 नवंबर को वर्ल्ड टेलिविजन डे घोषित कर दिया था। यह फैसला वैश्विक सहयोग को बढ़ाने में टेलीविजन के योगदान को देखते हुए लिया गया था।
21 वीं सदी की शुरूआत में *बुद्धू बक्से* के नाम से प्रचारित होते आये टेलीविज़न ने इस दशक की शुरूआत में भारतीयों पर अमिट छाप छोड़ी है।
21वी सदी के पहले दशक में एक तरफ जहां जनमानस पर धारावाहिकों ने अमिट छाप छोड़ी तो दूसरी तरफ रिएलिटी शोज़ ने आम आदमी को सपने में जीने को मज़बूर कर दिया। एक तरफ बच्चों को 24 घंटों का कार्टून धमाल मिला तो दूसरी तरफ बुज़ुर्गों के एकाकीपन में आध्यात्मिक चैनल उनके साथी बन बैठे। वर्ष 2000 टीवी इतिहास के लिए एक नया मोड़ लेकर आया इस टीवी पर लोगों के सपनों को एक नया आयाम मिला। भारत में अपने आरंभ से लगभग 30 वर्ष तक टेलीविज़न की प्रगति धीमी रही किंतु वर्ष 1980 और 1990 के दशक में दूरदर्शन ने राष्ट्रीय कार्यक्रम और समाचारों के प्रसारण के ज़रिये हिंदी को जनप्रिय बनाने में काफी योगदान किया।
वर्ष 1990 के दशक में मनोरंजन और समाचार के निज़ी उपग्रह चैनलों के पदार्पण के उपरांत यह प्रक्रिया और तेज हो गई। रेडियो की तरह टेलीविज़न ने भी मनोरंजन कार्यक्रमों में फ़िल्मों का भरपूर उपयोग किया और फ़ीचर फ़िल्मों, वृत्तचित्रों तथा फ़िल्मों गीतों के प्रसारण से हिंदी भाषा को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के सिलसिले को आगे बढ़ाया। टेलीविज़न पर प्रसारित धारावाहिक ने दर्शकों में अपना विशेष स्थान बना लिया। सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक तथा धार्मिक विषयों को लेकर बनाए गए हिंदी धारावाहिक घर-घर में देखे जाने लगे। रामायण, महाभारत हमलोग, भारत एक खोज जैसे धारावाहिक न केवल हिंदी प्रसार के वाहक बने बल्कि राष्ट्रीय एकता के सूत्र बन गए।
देखते-ही-देखते टीवी कार्यक्रमों के जुड़े लोग फ़िल्मी सितारों की तरह चर्चित और विख्यात हो गए। समूचे देश में टेलीविज़न कार्यक्रमों की लोकप्रियता की बदौलत देश के अहिंदी भाषी लोग हिंदी समझने और बोलने लगे।
[contact-form][contact-field label=”Name” type=”name” required=”true” /][contact-field label=”Email” type=”email” required=”true” /][contact-field label=”Website” type=”url” /][contact-field label=”Message” type=”textarea” /][/contact-form]