ALMORA

पेड़ों के बाद अब पत्थरों से शुरू हुआ ”चिपको आंदोलन”, खनन के खिलाफ महिलाएं

पत्थरों से लिपट महिलाओं ने दिलाई चिपको आंदोलन की याद

रात भर करेंगे पहरेदारी नहीं सहेंगे नदी का चीरहरण 

मुख्यमंत्री को महिलाओं ने को भेजा ज्ञापन 

खीड़ा के ग्रामीणों ने बिमोली नदी में रिवर ट्रेनिंग के तहत भारी मात्रा में पत्थर आदि उठाने का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री से टेंडर प्रक्रिया को निरस्त करने और मामले की उच्च स्तरीय जांच करने की गुहार लगाई है। ग्रामीणों की ओर से सीएम को भेजे ज्ञापन में महिलाओं को धमकाने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। ग्रामीणों ने टेंडर को निरस्त करते हुए पूरे मामले की जांच की मांग की है। ग्रामीणों ने अनदेखी पर आंदोलन की बात कही है।

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

अल्मोड़ा : जिले के खीड़ा में बिमोली नदी से हो रहे खनन और भारी मात्रा में पत्थर उठाने से आक्रोशित ग्रामीणों ने विरोध में नारेबाजी के साथ प्रदर्शन किया। इस दौरान खीड़ा की महिलाओं ने उत्तराखंड में 1974 में पेड़ कटान के खिलाफ बहुचर्चित चिपको आंदोलन की याद ताजा कर दी। महिलाओं ने पत्थरों से लिपटते हुए कहा कि खीड़ा से पत्थर ले जाने वाले पहले खनन माफिया पहले उनसे तो निपटें इस दौरान महिलाओं ने दरांती लेकर प्रदर्शन भी किया।

महिलाओं ने कहा कि वे जान दे सकती हैं पर पत्थर नहीं ले जाने देंगी। दरांती लेकर पहुंची महिलाओं का कहना था कि आरपार की इस लड़ाई में किसी भी अनहोनी के लिए शासन-प्रशासन जिम्मेदार होगा। ग्रामीणों का कहना था कि दिन में निर्धारित क्षेत्र में तो रात को पूरी नदी में खनन हो रहा है। इसके चलते वे अब रात भर पहरेदारी करेंगे। कहा कि नदी का चीरहरण नहीं सहेंगे। महिलाओं का कहना था कि उनके गांव की नदी से सारे पत्थर उठने के बाद उनके गांव में मकान बनाने और सुरक्षा दीवार बनाने के लिए आखिर कहां से पत्थर आएगा।

खीड़ा के बिमोली नदी में रिवर ट्रेनिंग के तहत भारी मात्रा में पत्थर आदि निकाले जाने से आक्रोशित ग्रामीणों के सब्र का बांध टूट गया है। इसी से गुस्साए ग्रामीणों ने संबंधित स्थल पर नारेबाजी के साथ प्रदर्शन किया। ग्रामीणों का कहना है कि रिवर ट्रेनिंग के नाम पर दिन के समय चिन्हित स्थल से पत्थर निकाले जा रहे हैं, जबकि रात के में पूरी नदी में खनन किया जा रहा है। चिन्हित स्थल की आड़ में अन्य क्षेत्रों से भी पत्थर उठाने का काम चल रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि रिवर ट्रेनिंग के नाम पर नदी के किनारे को बहुत गहरा खोद दिया गया है। ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए बाद में काम बंद कर दिया गया।

प्रदर्शन करने वालों में कमला देवी, खष्टी देवी, भगा, नंदी, माया, दीपा, रेखा, गीता, कुती, विमला, त्रिलोक सिंह, खीमराम, शोबन सिंह, धनसिंह, मोहन सिंह, गोपाल सिंह, नंदन सिंह, हरीश सिंह, उमेद सिंह, गोपालसिंह, बचेसिंह, चंदन सिंह, देवसिंह, मदन सिंह, शेरसिंह, प्रेमराम, इंदर राम आदि तमाम ग्रामीण शामिल थे।

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