चीन के ”काइलिंग ड्रैगन क्लिफ स्काई वॉक” की तर्ज पर विकसित होगी गर्तांग गली !

- हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्फीति से कम ख़ूबसूरत नहीं है यह घाटी
- 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद प्रतिबंधित थी नेलांग घाटी
- अभी प्रशासन की अनुमति से पर्यटक जा सकते हैं नेलांग घाटी
- सेना ने घाटी में पर्यटक सुविधाओं के विकास के लिए दी मंजूरी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
DEHRADUN : रोमांच और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए अब चीन की तरह ही भारत के उत्तराखंड प्रान्त के उत्तरकाशी जिले के 11 हजार फीट की ऊंचाई वाले नेलांग -जादूँग के भारत -तिब्बत व्यापार के प्राचीन मार्ग जिसे गर्तांग गली कहा जाता है के लगभग आधे किलोमीटर को पर्यटन विभाग चीन के कांच के ‘स्काई वॉक’ जिसे ”काइलिंग ड्रैगन क्लिफ स्काई वॉक” कहा जाता है, के रूप में विकसित करेगा।
उल्लेखनीय है कि उत्तरकाशी जिले की नेलांग -जादूँग घाटी समुद्र तल से 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ सालभर बर्फ की चादर बिछी रहती है और यह स्थान हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्फीति की तरह बिना वनस्पति का इलाका है। इसे पहाड़ का रेगिस्तान भी कहा जाता है। इस घाटी में दो नदी बहती हैं। जहाँ दूर -दूर तक फैला तिब्बत का पठार और वहां जाने वाला पैदल मार्ग देखा जा सकता है। पुराने लोगों के अनुसार पेशावर के पठानों ने भारत-तिब्बत के बीच के इस व्यापारिक मार्ग को करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर चट्टान काटकर सीढ़ीनुमा गलियारे के रूप में तैयार किया था। भारत-चीन युद्ध से पहले भारत और तिब्बत से व्यापारी इस रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े, नमक समेत अन्य वस्तुएं लेकर बाड़ाहाट जो अब उत्तरकाशी है ,आते-जाते थे।
वर्ष 1965 के भारत -चीन युद्ध के बाद यह मार्ग बंद कर दिया गया, मगर इस मार्ग से सेना की आवाजाही बनी रही। 1975 में इस मार्ग के जर्जर होने और भैरव घाटी से नेलांग तक सड़क बन जाने के बाद सेना ने गर्तांग गली का इस्तेमाल बंद कर दिया।
उत्तराखंड की नेलांग घाटी में कभी तिब्बत से जुड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित गर्तांगली को उत्तराखंड सरकार अब चीन के ‘काइलिंग ड्रैगन क्लिफ स्काई वॉक’ की तर्ज पर विकसित करेगी। लगभग तीन सौ मीटर के इस दुर्गम गलियारे में चीन के ‘काइलिंग ड्रैगन क्लिफ स्काई वॉक’ की तरह कांच का फर्श लगेगा। जहाँ लोग रोमांच का आनंद ले सकेंगे।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार ‘स्काई वॉक’ बनने के बाद गर्तांगली सैलानियों के आकर्षण का खास केंद्र बन जाएगी। गर्तांगली को सही करने के लिए कुछ धनराशि पहले दी चुकी है, लेकिन अब इसे चीन समेत अन्य देशों में स्थित ‘स्काई वॉक’ की तरह विकसित किया जाएगा। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।
वहीं उन्होंने बताया कि नेलांग घाटी में पर्यटक सुविधाएं विकसित करने के लिए सेना ने राज्य सरकार के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान कर दी है। सेना की स्वीकृति के बाद अब राज्य सरकार वहां पर पर्यटक सुविधाओं के विस्तार की योजना तैयार करने जा रही है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में गैर सैनिकों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी। हालांकि बाद में स्थानीय लोगों को वर्ष में एक बार धार्मिक क्रियाकलापों के लिए वहां जाने की इजाजत दी गई। पिछले साल यह फैसला किया गया कि प्रशासन की अनुमति से पर्यटक नेलांग घाटी जा सकते हैं, लेकिन वे वहां रात को नहीं रुक पाएंगे।लेकिन अब सरकार यहाँ पर्यटक सुविधाएँ जुटाने के लिए तैयार है ताकि इलाके में पर्यटकों की आमद बढ़ाई जा सके।
इस सम्बन्ध में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने पिछले दिनों सेना प्रमुख बिपिन रावत से बात की थी। सेना ने अब वहां पर्यटक सुविधाओं के विकास के लिए मंजूरी दे दी है। इसके बाद अब यहाँ पर्यटक नेलांग-जदुन्ग घाटी की सैर कर पाएंगे।
इस मार्ग को पर्यटन से जोड़ने में उत्तरकाशी के व्हेर ईगल्स डयर के तिलक सोनी की मेहनत और उत्तरकाशी के तत्कालीन जिलाधिकारी दीपेंद्र कुमार चौधरी को श्रेय जाता है जिनके अथक प्रयासों से पर्यटकों और पर्यटन विभाग की नज़रों से दूर रहा यह स्थान पर्यटन मानचित्र पर आया और सरकार को इस स्थान को पर्यटन सुविधाओं से जोड़ने को सोचने पर मजबूर होना पड़ा।