मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के ड्रीम प्रोजेक्ट पर कुंडली मारते सूबे के ब्यूरोक्रेट्स!

- अपर मुख्य सचिव बने मुख्यमंत्री के आस्तीन के सांप!
- लालढांग -चिल्लरखाल- कंडी -रामनगर मोटर मार्ग का मामला
- क्या सूबे की ब्यूरोक्रेसी नहीं चाहती गढ़वाल-कुमायूं की दूरी हो कम ?
- एक तरफ PWD से रुकवाया काम दूसरी तरफ मंत्री को भेजा पत्र!
- अपर मुख्य सचिव के कैबिनेट मंत्री को सीधे पत्र लिखने पर उठे सवाल!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट लालढांग-कंडी -रामनगर मोटरमार्ग को मुख्यमंत्री के अपर मुख्यसचिव पलीता लगाने पर ही नहीं जुटे हुए हैं बल्कि यदि यह कहा जाय कि वे आस्तीन के सांप बन चुके हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इतना ही नहीं आज़ाद भारत के इतिहास में शायद ही यह पहला मामला होगा जब किसी प्रदेश के एक अपर मुख्य सचिव ने किसी कैबिनेट मंत्री को सीधे पत्र लिखकर कार्रवाही करने के निर्देश देने को लिखा हो । जबकि ऐसे मामलों में ब्यूरोक्रेसी द्वारा मंत्री के निजी सचिव को संबोधित पत्र भेजा जाता रहा है ताकि वह मंत्री के संज्ञान में मामला ला सके ।
मामला लालढांग -चिल्लरखाल- कंडी -रामनगर मोटर मार्ग का है । यह सड़क पहले वन विभाग के अधीन थी और प्रदेश में भाजपा की सरकार के सत्तारूढ़ होते ही वर्ष 2017 में यह सड़क मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल था तभी तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी सँभालते ही पहले कैबिनेट बैठक में इस सड़क को जो गढ़वाल और कुमायूं मंडलों को जोड़ने और देहरादून से रामनगर की दूरी लगभग 80 किलोमीटर कम करने को अपनी प्राथमिकता में रखते हुए इस सड़क को महत्वपूर्ण मानते हुए सड़क पर जल्दी कार्य करने के निर्देश दिए थे। इसी क्रम में यह सड़क वन विभाग से लोकनिर्माण विभाग को हस्तांतरित भी की जा चुकी थी और लोकनिर्माण विभाग ने सड़क के सुदृढ़ीकरण को लेकर मार्ग में पड़ने वाले तीन पुलों के निर्माण सहित सड़क ने टेंडर भी आमंत्रित कर दिए थे।
लेकिन लोकनिर्माण विभाग द्वारा कार्य शुरू करवाने के बाद वन विभाग ने दिल्ली के कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा सड़क के राजाजी पार्क में होने के चलते पर्यावरणीय आपत्तियां लगायी थी जिसके बाद वन विभाग के प्रभारी वन क्षेत्राधिकारी ने इस सड़क के लोक निर्माण विभाग को हस्तांतरित हो जाने के बाद भी आपत्ति लगाते हुए एक पत्र मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ)जयराज को संदर्भित कर दिया था। जिसपर पीसीसीएफ ने भी वन विभाग की सड़क को हस्तांतरित किये जाने के बाद सड़क पर आपत्ति लगाते हुए प्रमुख सचिव लोकनिर्माण विभाग व अपर मुख्य सचिव को यह पत्र भेज डाला।
वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अपर मुख्यसचिव ने भी सड़क के लोक निर्माण विभाग को हस्तांरित होने के बावजूद बिना पिछले आदेशों को नज़रअंदाज़ करते हुए लोकनिर्माण विभाग के अधिकारियों से इस सड़क पर किये जा रहे निर्माण कार्यों को रोकने के एक तरफ तो मौखिक आदेश देकर सड़क का निर्माण कार्य रुकवा डाला । इतना ही नहीं अपर मुख्य सचिव जो लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव भी हैं, ने वहीं दूसरी तरफ नियम विरुद्ध वन मंत्री को इस सड़क पर वन विभाग के अधिकारियों से वार्ता कर स्पष्ठ निर्देश देने का अनुरोध भी कर डाला।
जबकि प्रोटोकाल के नियमों के अनुसार किसी भी सूबे का मुख्य सचिव तक किसी भी मंत्री को सीधे पत्र नहीं भेज सकता यदि उसे किसी मामले की जानकारी मंत्री के संज्ञान में लानी होती है अधिकारी मंत्री के निजी सचिव को पत्र संदर्भित करते हैं न कि सीधे ही किसी मंत्री को भेज सकते हैं। इस पत्र से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश की अफसरशाही मंत्रियों को कितना तवज्जो देती है या वे कितना प्रोटोकाल का ध्यान रखते हैं । इतना ही नहीं पत्र में काबीना मंत्री के लिए सम्बोधन में उनको ”प्रिय महोदय”से सम्बोधित किया गया है जबकि प्रोटोकॉल के अनुसार मंत्री को इस तरह से पत्र में सम्बोधित किया ही नहींजा सकता है।क्योंकि मंत्री प्रोटोकॉल में ब्यूरोक्रेट्स से ऊपर होते हैं।
मामले में अब हालात यह हैं कि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट जिसे वन मंत्री द्वारा पूर्ण करवाने का बीड़ा पिछले दो सालों से उठाया जा रहा है और जो सड़क गढ़वाल और कुमायूं की दूरी लगभग 80 किलोमीटर कम कर रही है इस सड़क पर सूबे की अफसरशाही ही कुंडली मारकर बैठ गयी है।इससे साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के विकास कार्यों में यहाँ की ब्यूरोक्रेसी किस तरह रोड़े अटकती रही है यह तो एक उदाहरण मात्र है।