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कैंटोनमेंट बिल 2020 देश के 62 कैन्ट में निवासरत 50 लाख सिविल नागरिकों के जीवन पर गिरायेगा गाज

आजादी के 73 वर्षो बाद भी, दोयम दर्जे के नागरिक बने रहेंगे कैंटोनमेंट क्षेत्रवासी

सिविल नागरिकों के मध्य वर्तमान मे भय, पीड़ा व मानसिक वेदना का कारण बन रही हैं अंतरिम लैंड पालिसी

सी एम पपनैं
नई दिल्ली। भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित कैंटोनमेंट बिल 2020 पर इस मानसून सत्र मे मुहर लगने तथा बाइलॉज व नियम बन जाने के बाद, देश के 62 कैन्ट एरिया मे निवासरत करीब पचास लाख लोग, आजादी के 73 वर्षो बाद भी, दोयम दर्जे के नागरिक बने रहेंगे। प्रस्तावित उक्त बिल अति कठोर, दंडात्मक तथा अव्यवहारिक कायदे-कानूनो से ओत प्रोत होने के कारण, कैन्ट मे निवासरत सिविल नागरिकों के अस्तित्व व उनके जीवन के लिए अहितकर माना जा रहा है।
प्रस्तावित विधेयक तथा रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई अंतरिम लैंड पालिसी के प्रावधानों से सिविल क्षेत्र के नागरिकों के मध्य यह धारणा स्पष्ट नजर आ रही है, कैन्ट के नागरिक क्षेत्रो मे पहले अंग्रेजो का राज्य था, अब कैन्ट सैन्य अधिकारियों व उनके बाबुओं का साम्राज्य पूर्णरूप से लादने का भरसक प्रयास किया जा रहा है। उक्त कारगुजारिया कैन्ट मे निवासरत सिविल नागरिकों के मध्य वर्तमान मे भय, पीड़ा व मानसिक वेदना का कारण बन रही हैं।
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक देश के 62 कैन्ट के सिविल नागरिक न तो हजारों, लाखों का लीज रेंट चुका पायेंगे। न ही, नौकरशाहों व कैन्ट बाबुओं द्वारा बनाए गए मनमाने भवन कर का भुगतान कर पायेंगे। ऐसी स्थिति में लाखों लोगों को अपने ही देश में आवासविहीन तथा शरणार्थी की जिंदगी गुजारने के लिए विवश होना पड़ेगा।
कैन्ट एक्ट 2006 और प्रस्तावित विधेयक 2020 को सेना का बहाना बनाकर नौकरशाहों द्वारा अपने अधिकारों को अत्यधिक मजबूत करने व सिविल नागरिकों पर मनमानी थोपने के तहत देखा जा रहा है। सिविल नागरिकों के संगठन
आल इंडिया सिटीजनस वेलफेयर एसोशिएशन (ACCiWA) की मांग थी, लीज धारकों को उनकी भूमि जिसे अंग्रेजो ने लीज भूमि का नाम दिया, उसका स्वामित्व प्रस्तावित बिल 2020 मे सिविल नागरिको के हक में कानून बनाकर दिया जाय। विस्तृत घनी आबादी वाले इलाके म्युनिसिपल कैटेगरी में बदले जाए। जिनकी लीजे समाप्त हो गई हैं या समाप्ति की कगार पर है, उन्हे अपने मकानों तथा परिसर को खाली करने के नोटिस जो छावनी परिषद के सीईओ द्वारा निर्गत होने प्रारम्भ हो गए हैं, उन्हे केन्द्र सरकार को सिविल नागरिको के लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत तुरंत रुकवाने की कोशिश करनी चाहिए। संगठन प्रतिनिधियों के मुताबिक प्रस्तावित कैन्ट बिल 2020 मे नोकरशाहो द्वारा मनमाने कर जनता पर लगाने की योजना, स्थापित सरकार की नाकामी मानी जा रही है।
नागरिकों के संगठन प्रतिनिधियों का कहना है, सरकार को समझना चाहिए, रहने का अधिकार जीवन से जुड़ा हुआ है। यदि इसे धन के परिप्रेक्ष मे अप्रत्याशित व मनमाने करों व लीज रेंट लगाकर छीना जाता है, तो यह संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। अपने ही देश में कैन्ट के सिविल नागरिकों के जीने का अधिकार समाप्त हो जायेगा। जो किसी भी देश के प्रजातांत्रिक मूल्यों के विपरीत है, जो आज तक संसार के किसी भी प्रजातांत्रिक देश में नही हुआ है।
भवन करों मे बृद्धि के लिए कैन्ट के बाबुओं को मिले असिमित अधिकार, जो प्रस्तावित विधेयक में हैं, बाबुओं द्वारा मनमानी व अव्यवहारिक तौर पर करो का बोझ लादे जाने पर निर्धन व मध्यमवर्ग उक्त अप्रत्याशित करों की अदायगी हेतु असमर्थ होगा। कैन्ट के सिविल नागरिको के प्रतिनिधियों की मांग रही है, लगाए जाने वाले कर, असिसमैन्ट कमेटी के हिसाब से बनने चाहिए, जिसके अंतर्गत जनहित मे सिविल सोसाइटी के बीच से चुने गए लोगों का भी प्रतिनिधित्व, अनिवार्य रूप में होना चाहिए।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, आजादी के बाद इन सात दशको में कैंटबोर्ड की प्रशासनिक नाकामियों व व्यवस्था की हील-हवाली से, कैन्ट से जुड़े सिविल क्षेत्रो मे जनसंख्या का घनत्व बढ़ने से नगरीकरण को बल मिला है। सेना को नगरीय क्षेत्र के इर्द-गिर्द की जमीन की आवश्यकता ही नहीं है। उनके पास अव्वल दर्जे की जमीन बहुतायत मे पडी हुई है। बदलते दौर मे विकास की चाह में कैन्ट के सिविल क्षेत्रो के नागरिक कैन्ट के कड़े प्रावधानों के तहत अपनी पुस्तैनी भूमि में किसी भी प्रकार का व्यवसाय या विकास की सम्भावना, आजादी के सात दशक बाद भी नही तलाश सकते। वे अपने ही देश में, अपनी ही पुस्तैनी भूमि मे, दोयम दर्जे के नागरिक बने हुए हैं। उनके संवैधानिक व प्रजातांत्रिक अधिकारों का दशको से हनन होता चला जा रहा है। सैकड़ो सिविल निवासी कैन्ट के खिलाफ कोर्ट कचहरियों मे अपने मूल अधिकार पाने के लिए वर्षो से संघर्षरत हैं। आंखे पथरीली कर, न्याय के इंतजार में बैठै हैं।
मोदी सरकार की गुडगवरनैन्स के वायदे के मुताबिक ‘आल इंडिया सिटीजनस वेलफेयर एसोशिएशन'(ACCiWA) के पदाधिकारियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र प्रेषित कर छावनी इलाकों मे निवासरत सिविल वाशिंदों के साथ कैन्ट प्रशासन द्वारा किए जा रहे अनैतिक दुरव्यवहार की सूचना तथा न्याय की गुहार लगाई गई। अंग्रेजो द्वारा बनाए गए गुलाम कालीन काले कानूनों को बदलने की मांग की गई थी।
उक्त संदर्भ मे 4 मई 2018 को तत्कालीन रक्षामंत्री निर्मला सीता रमण के साथ देश के सभी कैन्टबोर्ड़ो से जुड़े उच्च अधिकारियों व सभी निर्वाचित 62 कैंट उपाध्यक्षो की बैठक दिल्ली मे आयोजित की गई थी। 4 व 5 अगस्त 2018 को दिल्ली के इण्डिया इंटरनैशनल सेंटर मे अवकाश प्राप्त लैफ्टीनैंट जनरल डॉ मोहन भंडारी के संरक्षण व विजय पंडित की अध्यक्षता मे देश के 62 कैंट के सिविल इलाको के नागरिको के संगठन आल इंडिया सिटीजनस वेलफेयर एसोशिएशन'(ACCiWA) के करीब 150 प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित बैठक व लिए गए निर्णयों के परिणाम स्वरूप प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, नितिन गडकरी व अरुण जेटली की पहल पर 25 जुलाई 2018 को तत्कालीन रक्षामंत्री भारत सरकार निर्मला सीतारमण द्वारा देश के 62 कैंट के सिविल इलाकों मे निवासरत लोगो पर 12 सितम्बर सन 1836 के गवर्नर जनरल आड्स (जीजीओ) जैसे पुराने ब्रिटिश गुलाम कालीन कानून मे बदलाव हेतु सात लोगो की एक इमपैनेल कमेटी का गठन पूर्व सेवानिवर्त आईएएस अधिकारी सुमित बोस की अध्यक्षता मे गठित की गई थी। राकेश मित्तल सदस्य सचिव के अतिरिक्त अन्य सदस्यों मे टीआर विश्वनाथन, लैफ्टीनैंट जनरल अमित शर्मा, जयंत सिंहा, देविक रघुवंशी व डॉ मधुमिता रॉय को कमेटी सदस्य के तहत नामित किया गया था।
17 सितम्बर को दिल्ली मे आयोजित गठित इमपैनेल कमेटी की पहली बैठक मे तय किया गया था, 20 अक्टूबर 2018 तक कैंट के सिविल नागरिक व संगठन अपनी शिकायत व सुझाव उक्त कमेटी के सदस्य सचिव राकेश मित्तल, एडिशनल डीजी एक्सपर्ट कमेटी नई दिल्ली के पास जमा करवा सकते हैं।
मोदी सरकार के पहले 5 वर्षो के कार्यकाल मे लिए गए इस ठोस कदम से देश के 62 कैंट सिविल इलाके के 50 लाख लोगो को उन्मुक्त जीवन व सम्पत्ति का अधिकार स्वतंत्र भारत के 72 वर्षो की आजादी के बाद मिलने की संभावना के तहत देखा जाने लगा था।
रक्षामंत्रालय की एक्सपर्ट कमेटी ने 62 कैंटबोर्ड के सिविल नागरिको की विगत 121 वर्षों से निरंतर चली आ रही समस्याऐ सुन, अपनी गुप्त रिपोर्ट मंत्रालय को समय से सौप दी थी। 17वी लोकसभा चुनाव होने से, गठित कमेटी की जमा रिपोर्ट पर रक्षामंत्रालय द्वारा निर्णय नही लिया जा सका था।
गठित मोदी सरकार (दो) मे नए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की नियुक्ति के बाद 22 जुलाई 2019 को ‘द आल कैंटोनमेंट सिटीजन वेलफेयर एसोशिएसन’ का एक प्रतिनिधि मंडल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह से मिला था। उन्हे पूर्व रक्षामंत्री सीतारमण के कार्यकाल मे लिए गए निर्णय, जिसमे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सुमित बोस की अध्यक्षता मे गठित 6 सदस्यों की इंपैनलमैन्ट कमेटी द्वारा रक्षामंत्रालय को सिविल नागरिको की समस्याओं के निराकरण हेतु सारगर्भित रिपोर्ट सौपी गई थी, पर जानकारी चाही थी। रक्षामंत्री राजनाथ ने मोजाम्बीक यात्रा 31 जुलाई 2019 के बाद एसोशिएसन सदस्यों को मिलने का आश्वासन यह कह कर दिया था, ‘किसी भी छावनी इलाको मे निवासरत सिविल नागरिको के साथ, अन्याय नही होगा।’
29 जुलाई 2019 को एसोशिएशन का प्रतिनिधि मंडल पूर्व लैफ्टीनैंट जनरल डॉ मोहन भंडारी के नेतृत्व मे रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाईक से भी मिला था। 29 व 30 जुलाई 2019 को ही नई दिल्ली स्थित इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर मे ‘आल इंडिया सिटीजनस वेलफेयर एसोशिएशन'(ACCiWA) के बैनर तले आयोजित बैठक मे लोकसभा सांसद भगवंत खोवा (बंगलौर) व सत्यदेव पंचोरी (कानपुर) द्वारा अपने संबोधन मे अंग्रेजो के बनाए काले कानूनों मे बदलाव के साथ-साथ कैंटबोर्ड एक्ट 2006 मे भी सुधार की बात पर बल दिया था। कैंट के सिविल इलाकों मे निवास रत लाखो नागरिको के साथ किए जा रहे दोयम दर्जे के व्यवहार व नारकीय जीवन जी रहे नागरिकों की बात संसद मे उठाने की बात कही गई थी। उक्त सांसदों ने अपने संबोधन मे देश के सभी लोगो को एक समान नागरिक अधिकारों की बात पर भी जोर दिया था। कैंट मे निवासरत सिविल नागरिको को उनके संविधानप्रद मूलभूत अधिकार स्वतः मिलने की बात कही थी। उक्त सांसदों ने आश्चर्य व्यक्त किया था, इन स्वतः मिल जाने वाले अधिकारों पर भी लड़ाई लड़ी जा रही है। मंथन किया जा रहा है। आजादी के 72 वर्षो बाद भी नागरिको के मूल अधिकारों का हनन हो रहा है। उक्त समस्याओं पर संगठन द्वारा 4 व 5 अगस्त 2018 के आयोजन में डॉ मुरली मनोहर जोशी, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, संसद सदस्य शेरसिंह गुवाया तथा दिनेश त्रिवेदी द्वारा अपने वक्तव्यो मे यही उक्त विचार व्यक्त किए थे।
रक्षामंत्री द्वारा गठित इंपैनैलमैन्ट कमेटी द्वारा जो रिपार्ट रक्षामंत्रालय को 17वी लोकसभा चुनाव से पहले सौपी गई थी, उसकी जानकारी के बावत सोसाइटी का प्रतिनिधि मंडल सोसाइटी संरक्षक व अध्यक्ष क्रमशः से.नि.लैफ्टीनैंट जनरल डॉ मोहन भण्डारी व विजय पंडित के सानिध्य मे रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा राज्यमंत्री श्रीपाद नाईक तथा कानून मंत्री रविशंकर से मिले थे। रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाईक ने पदाधिकारियों को आश्वासन दिया था, ‘कैन्ट के सिविल नागरिको को जल्दी न्याय दिलवायेंगे।’
कैन्ट के पचास लाख सिविल नागरिकों के मध्य व्याप्त भय, पीड़ा व मानसिक वेदना की मुक्ति हेतु स्थापित संस्था व जन प्रतिनिधियों द्वारा की गई जद्दोजहद व संघर्षशील कवायद के बाद तथा मोदी सरकार के शीर्ष मंत्रियो के विश्वाश भरे आश्वाशनो के बाद, प्रस्तावित कैंटोनमेंट बिल 2020 मे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश की संसद द्वारा लिया जाने वाला अंतिम फैसला, जनहित मे होगा या अहित मे? निर्णय, आगामी आयोजित मानसून सत्र मे प्रबुद्ध जनमानस के सम्मुख बड़ी प्रतिक्रिया वाला होगा, मानकर चला जा सकता है। क्यों कि उक्त मुद्दा कैन्ट के सिविल नागरिकों के हित व संवैधानिक अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है।

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