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बॉलीवुड सुशांत सिंह राजपूत के प्रकरण के बाद एक बड़ा एपिसेंटर बना हुआ है बॉलीवुड

विश्व में बॉलीवुड एकमात्र सिनेसंसार जहां ढोई जाती है दादा से पोते तक कला और प्रतिभा 

 अंडरवर्ल्ड से बॉलीवुड का इतना गहरा नाता दुनिया में शायद ही किसी फिल्म इंडस्ट्री का होगा 

यहां कई खेमे हैं लेकिन हर खेमे में एक बात साझा है कि वह अंडरवर्ल्ड की आड़ में ही दिखाते हैं अपनी हनक 

हरीश सती 

सुशांत सुसाइड मामले में आठ लोगों के खिलाफ बिहार के मुजफ्फरपुर कोर्ट में मामला हुआ दर्ज

सलमान-करण-एकता का नाम भी शामिल

इस केस में करण जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर समेत सुशांत के सुसाइड से जुड़े चार  अन्य लोगों के नाम शामिल हैं। ये केस बिहार के मुजफ्फरपुर कोर्ट में दर्ज किया गया है।
सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड केस में नया मोड़ आया है। जैसा कि सुशांत के सुसाइड के लिए कई लोग कुछ सेलेब्स को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसकी वजह से एडवोकेट सुधीर कुमार ओझा ने बॉलीवुड के 4 बड़े सेलेब्रिटीज के खिलाफ केस दर्ज कराया है।
इस केस में करण जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर समेत सुशांत के सुसाइड से जुड़े 4 अन्य लोगों के नाम शामिल हैं। ये केस बिहार के मुजफ्फरपुर कोर्ट में दर्ज किया गया है। ट्वीट के मुताबिक, ये केस आईपीसी की धारा 306, 109, 504 और 506 के तहत दर्ज कराया गया है।
ANI से बातचीत में वकील सुधीर कुमार ओझा ने कहा- मेरी शिकायत में आरोप है कि सुशांत सिंह राजपूत को करीबन 7 फिल्मों से हटा दिया गया था। उनकी कुछ और फिल्में रिलीज नहीं हुई थीं। सुशांत के आसपास ऐसे हालात पैदा किए गए कि वे सुसाइड जैसा कदम उठाने को मजबूर हुए।
सुशांत के सुसाइड के बाद से ही फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को ट्रोल किया जा रहा है। जिसमें करण जौहर का नाम सबसे ऊपर है। एक्ट्रेस कंगना रनौत ने तो सुशांत के सुसाइड को प्लांड मर्डर बताया है। वीडियो पोस्ट कर कंगना ने फिर से नेपोटिज्म का मुद्दा उठाते हुए सेलेब्स को फटकार लगाई। हालांकि अभी तक सुशांत के खुदकुशी करने की वजह का खुलासा नहीं हुआ है।
बॉलीवुड सुशांत सिंह राजपूत के प्रकरण के बाद एक बड़ा एपिसेंटर बना हुआ है। वैसे तो फिल्मों की समीक्षाएं करने वाले फिल्मों के जानकार होते हैं। लेकिन विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्रीज में से एक बॉलीवुड को समझना इतना आसान नहीं जितना अन्य फ़िल्म इंडस्ट्रीज को समझना है। यह सिर्फ एक फ़िल्म इंडस्ट्री ही नहीं है।
विश्व में बॉलीवुड एकमात्र सिनेसंसार है जहां दादा से पोते तक कला और प्रतिभा ढोई जाती है। अंडरवर्ल्ड से इतना गहरा नाता शायद ही किसी फिल्म इंडस्ट्री का हो। जहां सेलेब्रिटीज़ की आत्महत्या की इतनी ज्यादा स्क्रिप्ट सामने आती हो। जहां कुछ कुनबे बॉलीवुड को अपनी बपौती समझ कर व्यवहार करते हैं। यहां कई खेमे हैं लेकिन हर खेमे में एक बात साझा है कि वह अंडरवर्ल्ड की आड़ में ही अपनी हनक दिखाते हैं। बड़े बड़े स्टार यहाँ आत्महत्या कर गए छोटो की तो गिनती ही नहीं है।
अब सुशांत सिंह राजपूत को ही लो। मई में उसकी मित्र मनप्रीत ग्रेवाल और प्रेक्षा मेहता और जून में उसकी मैनेजर दिशा सालियान के आत्महत्या का प्रकरण और अंत में उसकी शव के समय उसकी भाभी की मौत। लोगों को सुशांत सिंह राजपूत की ही आत्महत्या पर ही ध्यान गया।
क्या कभी किसी ने सलमान खान के गाड़ी के ड्राइवर पाटिल की हुई दुर्दशा की कहानी सुनी है जो सलमान द्वारा मज़दूरों को कुचले जाने की घटना के समय सलमान के साथ था और घटना का सबसे महत्वपूर्ण गवाह था। शुरुआती दौर में सेकुलर फिल्मों का नया दौर मनमोहन देसाई ने अमिताभ बच्चन के स्टारडम के साथ चलाया । उन्ही की फ़िल्म अमर अकबर एंथोनी से साई बाबा को जबरदस्त मार्केटिंग मिली थी। उन्होंने इसी क्रम में कई फिल्में बनाते हुए कुली फ़िल्म बनायी जो उनके सेकुलर टॉपिक का जबरदस्त क्लाइमेक्स था। अमिताभ बच्चन के स्टारडम से उनके द्वारा अभिनीत किया गया अल्लाह रखा का पात्र लोगों के जुबाँ पर आ गया था।अमिताभ की इस छवि को समाजवादियों ने खूब भुनाया था। लेकिन इन्ही मनमोहन देसाई की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी। जिसे सीढ़ियों से गिरकर मरना या आत्महत्या कहा गया।
सुशांत सिंह राजपूत को भी सेकुलरिज़्म के काफी निकट लाने के प्रयास उनके संपर्क के सर्किल के अनुसार चलते रहे होंगे तभी उनका पद्मावत के समय सरनेम हटाने का प्रकरण या कुछ अन्य सेकुलर व्यक्तव्य चर्चा में आये। पीके में उन्होंने जो भूमिका निभाई उसने बाबा केदारनाथ के नाम का दुरुपयोग करके बनी फिल्म केदारनाथ में पूरा सेकुलर विस्तार पाया। बॉलीवुड में बिना सेकुलर रहे सांस लेना बहुत मुश्किल है। जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। पहले से ही बालीवुड के कलाकारों का दुबई जाकर अंडरवर्ल्ड के आयोजनों में ठुमके लगाना बहुत गर्व की बात उनके लिए हुए करती थी। मंदाकिनी का दाऊद कनेक्शन और मोनिका वेदी का अबू सलेम कनेक्शन याद दिलाने की जरूरत नहीं परवीन बॉबी की दर्दनाक कहानी और ज़ीनत अमान की अभी तक बुरी हालत बहुतों को स्मरण होगी।

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संजय दत्त जी को तो पहले ड्रग्स और लड़कियों से प्रेम हुआ और फिर AK 47 से। ऐसे महान व्यक्तित्व को महिमामण्डित कर फिर इन बॉलीवुड के फनकारों ने करोड़ी भी छाप दिए और अपने ड्रग्स के कारोबारी मित्रों के लिए अच्छा वातावरण ड्रग्स के थ्रिल को प्रस्तुत करके कर दिया। दिव्या भारती तो साजिद नाडियावाला से विवाह के बाद हादसे का शिकार हो गयी। वही नाडियावाला जिनके साथ सुशांत राजपूत ने छिछोरे फ़िल्म बनाई। इसी तरह गुलशन कुमार को अंडरवर्ल्ड के एजेंडे की सेकुलर अदावत न आने कीमत अपनी हत्या से चुकानी पड़ी।

यहां अभी भी कला की स्वतंत्रता के नाम पर पाकिस्तानी कलाकारों और आतंकियों के किये मातम मनाने वालों का बोलबाला है

इस प्रकरण में संगीतज्ञ नदीम को साज के अलावा असलों का भी शौकीन जाना गया। धीरे धीरे मुम्बईया सिनेमा के पर्दे की थ्रिल स्क्रिप्ट्स बॉलीवुड की गलितों में चरितार्थ होने लगी। बाहर कुछ नहीं आ पाता था। बस जो बाहर आता था वो था कब्बालीनुमा सूफ़ियाने गानों की एकरसता का शोर। मुंबई के सीरियल धमाकों के बाद गगॉडफादर मोस्ट वांटेड होकर सपनो के देश दुबई चले गए। सेकुलर प्रोडक्ट यहीं रह गए। विश्व सिनेमा इतिहास, विज्ञान और यथार्थ घटनाक्रमों पर फिल्में बनाकर नए कीर्तिमान बनाता रहा।
लेकिन बॉलीवुड का युवाओं को सारी सीमाओं से परे मुहब्बत करने का संदेश देने का “श्वेत व्यक्ति का बोझ” ही समाप्त नहीं हुआ। इस बीच बॉलीवुड ने एक ही अविष्कार किया अश्लील आइटम सॉन्ग और एनिमेशन से सलमान के थुलथुले पेट को सिक्स पैक में दिखाना। कहानी जावेद अख्तर के दो भाइयों के बिछुड़ने और फिर मिलने की कहानियों से थोड़ा सरकी तो नेगेटिव कैरेक्टर के नायक तक पहुंचाने की कोशिश की गई।
लेकिन मुख्य फोकस मुहब्बत पर ही रखा गया ताकि देश के युवा अन्य तकनीक, विज्ञान और पराक्रम के क्षेत्रों में अपनी ऊर्जा लगाकर परचम लहराने के बजाय मुहब्बत में अपनी नसें काटते रहें और मुहब्बत के जाल में फंसाने वाले शिकारियों के लिए आसान निवाला बनते रहें। दर्शकों को अपने फार्मूलों का अजीनोमोटो मिलाकर प्रस्तुत करें कि उन्हें कला का स्वाद के नामपर इनकी फूहड़ता के अलावा कुछ और समझ में न आये। जो लोग याकूब मेमन के जनाजे में जाएं, हस्ताक्षर अभियान चलाए, राजनैतिक अभिप्रायों से अवार्ड लौटाएं और विवादित प्रकरणों पर एजेंडे के तहत इंडिया गेट पर मोमबत्तियां जलाएं उनसे आशा की क्या की जा सकती थी।
पहले कभी मनोज कुमार कुछ लीक से हटकर फिल्में बना देते थे। और बाद में सन्नी देओल ने ही बॉर्डर और ग़दर बनाने की हिम्मत की और मणिरत्नम ने बॉम्बे बनाने की। कुछ टॉपिक पर फिल्में बनाने ही जोखिम भरा काम था। आप सच भी नहीं दिखा सकते थे।वैसे मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि पहले से ही बॉलीवुड शराबी पात्रों को जरूरत से कहीं ज्यादा महिमामण्डन करता रहा है।
अमिताभ बच्चन के स्टारडम के साथ भी शराब का स्टारडम चला जो शराबी फ़िल्म तक पहुंच गया। “संजू” और “कबीरसिंह” मूवी का तो नायक ही नशेड़ी था लेकिन अफसोस कि मिशन मंगल, रेड और सुपर 30 जैसी फिल्मों को भी शराब और ड्रग्स के दृश्यों से नहीं बचाया गया। लेकिन कुछ सालों से सलमान, शाहरुख और आमिर की फिल्मों की रिलीज़ डेट का अजय देवगन, अक्षय कुमार और हृतिक रोशन की फिल्मों से टकराव से बॉलीवुड में कुछ नयी हलचल हुई है।
रुस्तम, रेड, दृश्यम, सर्जिकल स्ट्राइक, केसरी, सुपर 30, मिशन मंगल,तानाजी मालसुरे, स्त्री, मणिकर्णिका, टॉयलेट, गोल्ड और सबसे ऊपर बाहुबली- 1 और बाहुबली -2 जैसी कुछ सार्थक फिल्में भी आयी है। इस बीच बहुत सी घटिया टॉपिक पर आयी फिल्मों की दुर्गति ने बताया कि देश के दर्शकों का मूड बदलने लगा है। वस्तुतः आज के युग फिल्में न केवल मनोरंजन का साधन हैं सांस्कृतिक साधन भी है यह देश के करोड़ो लोगों की सोच को प्रभावित करती है। यह फिल्म इंडस्ट्री भी एक सर्जिकल स्ट्राइक की गुंजायश रखती है। क्योकि यहां अभी भी कला की स्वतंत्रता के नाम पर पाकिस्तानी कलाकारों और आतंकियों के किये मातम मनाने वालों का बोलबाला है।

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