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निकाय चुनाव की बतरस …….
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- एक फूल वाला उम्मीदवार …….
- एक बिना फूल के भी फूल का उम्मीदवार है ना चमत्कार !
इन्द्रेश मैखुरी
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जिसने चुनाव से पहले दावा किया कि वो निर्दल है। चुनाव जीतते ही दल और निर्दल,दोनों भये निर्ल्लज्ज. और इस तरह निर्दल और दल ने मिल कर जो रचा वो है दलदल.दलदल बहुत जरुरी है,दलदल नहीं तो फूल नहीं,कीचड़ नहीं तो फूल नहीं। इसलिए देश,समाज या क्षेत्र जिसका भी कीचड़ करना हो,कीचड़ करना जरुरी है,दलदल बनाना जरुरी है।
इस दलदल कथा के बीच एक चिमटा महात्म्य भी है। यूं तो चिमटा घरों में रोटी अलटने-पलटने के काम आता है.पढने-लिखने वाले प्रेमचंद की ईदगाह कहानी में हामिद द्वारा दादी के लिए लाये गए चिमटे को याद करते हैं.पर चिमटा है तो साधारण घरेलु चीज ही.तो ऐसे चुनाव में, जिसमें मुर्गों के कटने की गिनती नहीं हुई,बोतलों से बहने वाली शराब को मापा नहीं जा सका,उसमें अदने से चिमटे की क्या बिसात ! सोचिये तो जरा,कितने मुर्गे कटे,कितनी बोतलों से कितनी शराब हलकों में उतरी ?अगर उन सब को एक जगह इकठ्ठा करेंगे तो दिखाई देगा कि जो कुर्सी पर बैठा है,वो तो कुर्सी से कहीं ऊँचे, हलाक़ किये गए मुर्गों के पहाड़ और शराब की धार पर चढ़ कर,वहां तक पहुंचा है। लगता है कि चुनाव जीतने वाले समाज के लिए कुर्बान किये गए मुर्गों की कुर्बानी को ही अपना सर्वोच्च बलिदान समझते हैं !
पर आप सोच रहे होंगे कि मुर्गों की कुर्बानी की इस गाथा के बीच में यह चिमटा कहाँ से आ गया ?तो जनाब, हमारे यहाँ पहाड़ में चूल्हे में झोंके जाने वाले चिमटे के अलावा एक और चिमटा होता है। यह चिमटा होता है,देवता के थान में रखा हुआ चिमटा.अब आप सोचेंगे कि देवता के थान में रखे हुए चिमटे का नगरपालिका के चुनाव से क्या लेना देना ? तो सुनिए, जैसे देश की राजनीति में धर्म की घुसपैठ हुई,वैसे ही पहाड़ की राजनीति में भी यह देवता के थान में रखा हुआ लोहे का साधारण चिमटा,असाधारण स्थान पा गया है। दारु,मुर्गा,नोट से भी जब वोट के पक्के होने में संशय रहे तो तब रामबाण नुस्खा है,यह चिमटा।आदमी इस खेमे में दिख रहा है,खा इसका रहा है पर गा उस का रहा है,चिमटा हाथ में थमाओ और फिर देखो,जिसका खायेगा,उसी का गायेगा ! बड़ा महारथी है,दल को दलदल करने में शरीक है। मंच पर खूब गले की खराश मिटा आया.पर खराश मिटाना अलग बात है,वफ़ा करना अलग बात है.चौराहे पर गर्जन-तर्जन करने पर भी जब वफ़ा पर शक-शुबहा रहा तो फिर चिमटा हाथ में थमाया गया कि तुझे कसम है इस चिमटे की कि तूने जिनके विरुद्ध गर्जन-तर्जन किया तो उनके लिए रात में वोटों का सृजन नहीं करेगा.चिमटा बड़ी कारसाज चीज है। अगले ने जब हाथ में चिमटा थाम लिया तो वह भी चला गली-गली कि यह पकड़ मुर्गा,यह रख दारु, यह चिमटा थाम और इस तरह बाहर जाती वोट का काम तमाम ! पर भ्राता,यह तो बताओ कि सारे छल-छद्म,बेईमानी,बदमाशी करने से नहीं रोकता तुमको यह चिमटा,सिर्फ वोट कब्जाना सिखाता है ! यह चालूपंथी जो तुम करते हो,यह देवता सिखाता है,तुमको या तुम खुद ही इतने घाघ और काईयाँ हो कि देवता के नाम पर लोगों को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा करते हो !
चुनाव में एक और गजब बात देखी।अचनाक पता चला कि अमुक-अमुक के जीतते ही चोटी पर भारी खतरा मंडराने वाला है और अमुक-अमुक के जीतने पर मूछें संकट में फंस जायेंगी ! चोटी और मूछों पर आसन्न इस संकट की कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं होती,किसी पर्चे में इसका जिक्र नहीं होता,किसी सभा में इस पर भाषण नहीं होता.लेकिन चुनावी खुसरफुसर में सर्वाधिक चिंता का विषय यदि कोई होता है तो चोटी और मूछों पर गहराता संकट ही होता है।उम्मीद्वार की योग्यता,नगर की जरूरत,सुख सुविधाओं का मामला जाए भाड़ में,चोटी सलामत रहेगी तो दुनिया रहेगी,मूछें बची रहेंगी तो सब कुछ रहेगा ! चुनावों में चोटी और मूछों के मंडराते खतरे को दूर करने के लिए वोट देने वालो,एक बात बताओ यार- तुम्हारे यहाँ चुनाव में जो खड़ा था,वो मनुष्य नहीं, कोई उस्तरा था क्या ?चुटिया के कटने और मूछों के सफाचट होने का खतरा तो भय्या सिर्फ उस्तरे के इन पर फिरने से हो सकता है !
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