भविष्य में इन समुद्री जीवों से होगा जैव ईंधन तैयार
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली। शोधकर्ताओं का दल समुद्री सूक्ष्मजीव की वृद्धि दर और उसमें शर्करा ( ग्लाइकोजेन ) की मात्रा में सुधार की विधि पर काम कर रहा है। भविष्य में इन समुद्री जीवों से जैव ईंधन तैयार किया जा सकेगा।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ता समुद्री सूक्ष्म जीव सिनेकोकोकस पर काम कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जैव ईंधन उत्पादन सहित अधिकतर जैव-प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाएं कम लागत और शर्करा एवं नाइट्रोजन स्रोत से निर्वाध आपूर्ति की उपलब्धता पर निर्भर हैं। शर्करा आमतौर पर पौधों से आती है। पौधे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को शर्करा, प्रोटीन और लिपिड जैसे जैविक घटकों में परिवर्तित करने के लिए प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
हालांकि, कुछ बैक्टीरिया, जैसे साइनोबैक्टीरिया (जिसे नीले-हरे शैवाल के रूप में भी जाना जाता है), भी प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को ठीक करके शर्करा का उत्पादन कर सकते हैं। साइनोबैक्टीरिया से शर्करा की उपज संभावित रूप से भूमि आधारित फसलों की तुलना में बहुत अधिक हो सकती है। इसके अलावा, पौध आधारित शर्करा के विपरीत साइनोबैक्टीरियल बायोमास प्रोटीन के रूप में नाइट्रोजन स्रोत प्रदान करता है।
साइनोबैक्टीरिया ताजे और समुद्री पानी दोनों में पाए जाते हैं। समुद्री साइनोबैक्टीरिया का उपयोग करना बेहतर हो सकता है, क्योंकि ताजे पानी में तेजी से कमी हो रही है। हालांकि, समुद्री साइनोबैक्टीरिया आधारित शर्करा उत्पादन की आर्थिक व्यवहारिकता में सुधार के लिए उनकी विकास दर और शर्करा सामग्री में उल्लेखनीय सुधार करने की आवश्यकता है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी की एक टीम इस पर कार्य कर रही है। इस केंद्र के जैव-ईंधन समूह के लिए सिस्टम बायोलॉजी के ग्रुप लीडर और डीबीटी-आईसीजीईबी सेंटर फॉर एडवांस्ड बायो एनर्जी रिसर्च के अन्वेषक डॉ. शिरीष श्रीवास्तव और आईसीजीईबी के एक पीएचडी छात्र जय कुमार गुप्ता ने इस टीम का नेतृत्व किया।
उन्होंने एक समुद्री साइनोबैक्टीरियम सिनेकोकोकस को सफलतापूर्वक तैयार किया। इसमें उच्च विकास दर और शर्करा (ग्लाइकोजेन) की मात्रा दिखी। इसे जब हवा में उगाया गया तो उसका विकास दोगुना हो गया और कोशिकाओं के ग्लाइकोजेन मात्रा में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इस अध्ययन टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ. श्रीवास्तव ने का कहना है कि सिनेकोकोकस विशेष नाम पीसीसी 7002 समुद्री साइनोबैक्टीरियम का एक मॉडल है और वहां अन्य सिनेकोकोकस प्रजातियां अथवा संबंधित जीव थे, जिस पर इस काम को सही तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है। जैवप्रौद्योगिकी विभाग ने इस शोध को प्रायोजित किया है। वैज्ञानिकों ने अपने काम पर एक रिपोर्ट ‘बायोटेक्नोलॉजी फॉर बायोफ़्यूल्स’ पत्रिका में प्रकाशित की है। (स्रोतः पीआईबी)