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पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना …..इतना मुश्किल तो नहीं

उत्तराखंड की पुलिस आत्मसात करने लगी है डीजीपी द्वारा लिखी यह इबारत 

राजेंद्र जोशी 

पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना …..इतना मुश्किल तो नहीं !  ….Being a human being in a police uniform… .. not so difficult यह कहना है उत्तराखंड के DGP अशोक कुमार का जो उन्होंने अपनी सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में से एक ”खाकी में इंसान” के अंतिम पृष्ठ पर लिखा है।  पढ़ने और सुनने में यह वाक्य भले ही सामान्य लग सकता है, लेकिन इसका गूढ़ अर्थ पुलिस कर्मियों ने यदि आत्मसात कर लिया तो पुलिस के प्रति आम जनमानस का जो नज़रिया रहता है वह बदला जा सकता है और वह बदला भी जाना चाहिए क्योंकि आज न तो वह गुलामी की दासता से जकड़ा जान मानस ही है और न ब्रिटिशकाल की तरह की वह पुलिस जिसे हर हाल में में जनता को अपने पैरों तले कुचलने की ही जरूरत है।  आज एक संवेदनशील पुलिस की जरुरत महसूस की जा रही है और काफी हद तक देश की पुलिसिंग इस दिशा की ओर बढ़ भी रही है।

बात यहां तब शुरू हुई और डीजीपी अशोक  कुमार की पुस्तक का जिक्र इसलिए करना पड़ा कि उत्तराखंड पुलिस के नेहरू कॉलोनी थाने की पुलिस ने डीजीपी की पुस्तक पता नहीं पढ़ी भी होगी कि नहीं लेकिन उसके अंतिम पृष्ठ पर अशोक कुमार द्वारा पुलिस के लिए लिखी इबारत तो कहीं न कहीं आत्मसात की प्रतीत होती है।

बात बीते दिन यानि 5 मार्च की है जब नेहरू कॉलोनी थाने पर सूचना मिली की एक बालक जिसकी उम्र लगभग 9 वर्ष से वह साइकिल पर अकेले जा रहा है वह पूछने पर बता रहा है कि वह बिजनौर जा रहा है जिस पर तत्काल थाने से पुलिस टीम रिस्पना पुल पर भेज कर उक्त बालक को थाने लाया गया वह बाल कल्याण अधिकारी द्वारा उक्त बालक से पूछताछ की गई तो उसने अपना नाम अरहम बताया वह पिता जी का नाम मतलूब बताया परंतु घर के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं दे पाया जिस पर थाना नेहरू कॉलोनी से विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में उक्त बालक के फोटो प्रसारित किए गए बालक के परिजनों की तलाश हेतू चीता मोबाइल को भी सूचना दी गई बालक द्वारा पूछताछ में बताया गया कि आज उसका जन्मदिन है वह उसके माता-पिता ने उसे डांटा जिस पर वह साइकिल लेकर अकेले ही बिजनौर जा रहा है जहां उसके नानाजी रहते हैं बालक ने बताया उसके परिजन उसका जन्मदिन नहीं मना रहे थे जिस पर थाना नेहरू कॉलोनी पुलिस द्वारा उक्त बालक का जन्मदिन थाना नेहरू कॉलोनी में केक काटकर मनाया वह बालक को उपहार भी दिए गए। इसी बीच बालक के परिजनो का भी पता लगाकर थाने पर बुलाया गया व बालक को सकुशल उनके सुपुर्द किया गया।

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि पुलिस ने कोई अजूबा काम तो नहीं किया यह तो उसकी रोज़मर्रा की ड्यूटी में शामिल है कौन खोया, किसको पाया और कौन गुशुदा है किसने किसके साथ मार पिटाई की पुलिस ने भी दो -चार जड़े , सभी को लेकर पुलिस थाने ले आई , किसी को अंदर कर दिया किसी को सिफारिश पर छोड़ दिया आदि…आदि लेकिन यहाँ एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील पुलिस का नेहरू कॉलोनी पुलिस ने जो काम कर दिखाया उसका तो जरूर जिक्र किया जाना चाहिए , इस वाकये से प्रदेश के अन्य पुलिस कर्मियों के दिलों में उनके डीजीपी के वे शब्द जरूर रहने चाहिए कि …. …..पुलिस की वर्दी में होते हुए भी इंसान बने रहना …..इतना मुश्किल तो नहीं !

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