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नई जिम्मेदारी में भी कुछ नया करेंगे बलूनी!

पूर्व सैनिकों की समस्याएं जस की तस, अब बलूनी से उम्मीद !

पूर्व सैनिकों की यह रहीं हैं प्रमुख मांग :-

  • उत्तराखंड में भर्ती मेलों के आयोजन रही है पूर्व सैनिकों की मांग 
  • लंबे समय से राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में सीएसडी कैंटीन सुविधा की मांग 
  • स्वास्थ्य सेवा ईसीएचएस को लेकर निरंतर मांग

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

DEHRDUN : उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद बलूनी को रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की परामर्शदात्री समिति का सदस्य मनोनीत किया गया है । उत्तराखंड सैन्य बहुल प्रांत है, यहां भूतपूर्व सैनिकों की संख्या का भारी घनत्व सभी राजनीतिक दलों को वोटबैंक की दृष्टि से ललचाता रहता है। सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिए सैनिक संगठन निरंतर मांग उठाते रहते हैं, किन्तु वोट लेने के बाद उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है।

रक्षा समिति का सदस्य नामित होने के बाद अनिल बलूनी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य के रूप में वह सेना के वीर सेनानियों, उनकी वीरांगनाओं और उनके परिवारों के लिए अपनी क्षमता से पूर्ण योगदान देंगे। बलूनी ने कहा यह समिति रक्षा मामलों पर सरकार को सुझाव देती है, किंतु मेरा प्रदेश उत्तराखंड जहां से भारी संख्या में सेना में हमारा योगदान है, उन सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए अपनी सीमित भूमिका में प्रभावी रूप से उनकी समस्याओं के समाधान के लिए पैरवी करेंगे।

उत्तराखंड के भूतपूर्व सैनिक लंबे समय से राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में सीएसडी कैंटीन सुविधा और भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवा ईसीएचएस को लेकर निरंतर मांग कर रहे हैं। यहां तक की उत्तराखंड में भूतपूर्व सैनिकों की भारी संख्या को देखते हुए भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम तो बनाया गया किंतु वह राज्य में सिफारिश से नौकरी पाने का आसान दरवाजा बन गया, जबकि वह भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों के लिए गठित किया गया था। किंतु आज इस निगम में 10% कर्मचारी भी पूर्व सैनिकों सैनिक आश्रित शायद नहीं है। इस बात को लेकर सैनिकों में भारी रोष रहा है।

सैनिकों की विधवाओं (जिन्हैं सम्मानपूर्वक वीरांगना सम्बोधित किया जाता है) के पुनर्वास, शहीद के माता-पिता की देखभाल जैसे अनेक अनसुलझे विषय हैं, जिन पर काम आवश्यक है। उत्तराखंड राज्य में सैनिक वोटों को साधने के लिए मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी या लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत वोट साधने के औजार तो राजनीतिक दलों ने बना दिये किंतु सैनिकों की समस्याएं जस की तस है।

सेना को सीमा पर पहुंचाने वाली सड़कों पर इको सेंसिटिव जोन या पर्यावरण का पहरा है, कैंट बोर्ड के भी अनेक विषय लम्बित हैं। सेवारत और सेवानिवृत्त सैनिकों के मामलों पर सरकार को सुझाव देने वाली समिति में बलूनी क्या प्रभाव दिखाएंगे इसका जनता को इंतजार है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सबसे विश्वस्त लोगों में गिने जाने वाले बलूनी इस समय केंद्र में बहुत मजबूत स्थिति में है और उन्हीं का प्रभाव था कि जहां रेल मंत्रालय ने गत 2 वर्षों में कोई भी नई रेल नहीं चलाई है, बलूनी की मांग पर काठगोदाम से देहरादून चलने वाली नैनी -दून की घोषणा हुई और इसी सप्ताह शुरू हो जाएगी।

अगर बलूनी अपनी इस नई पारी में पूर्व सैनिकों के विषयों की अपने प्रभाव से पैरवी करते हैं और उन्हें राहत देते हैं तो राज्य की राजनीति में प्रभावी दखल का उनका यह एक और कदम होगा। उत्तराखंड में भर्ती मेलों के आयोजन से लेकर अनेक सैनिक परिवारों और भूतपूर्व सैनिकों की अनेक मांगे हैं जिनका हल निकालने में बलूनी अगर सफल होते हैं तो वह सैनिक परिवारों द्वारा सराहे जाएंगे।

हाल ही में अपने प्रभाव से प्रधानमंत्री द्वारा एनडीआरएफ की एक बटालियन राज्य को स्थायी रूप से दिलाने में सफल रहे। बलूनी ने राज्यसभा में अपने वक्तव्य में कहा था कि अगर एनडीआरएफ बटालियन की उत्तराखंड में स्थापना की जाय। बलूनी ने इस मांग के साथ यह भी जोड़ा था कि इस बचाव दल में राज्य के भूतपूर्व सैनिकों का अगर समायोजन होता है तो राज्य की भौगोलिक स्थिति व स्वभाव को बेहतर जानने वाले स्थानीय पूर्व सैनिक अधिक प्रभावी और कारगर होंगे।

अब इंतजार है तो बस इस बात का कि प्रचार प्रसार से दूर रहने वाले और कम बोलने वाले बलूनी सैनिकों के हित में कौन सा नया धमाका करते हैं।

devbhoomimedia

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