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अल्मोडा़ : करवट बदलता इतिहास !

कमिश्नरी की घोषणा के बाद जनपद अल्मोड़ा इतिहास के एक नए मुहाने पर खड़ा

अल्मोड़ा शहर का नियोजन और विकास प्रारंभ से ही एक सांस्कृतिक और व्यवसायिक शहर के रूप में किया गया

प्रमोद शाह 
अल्मोड़ा शहर जिसे कुमायूं की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में सदियों से जाना जाता रहा है । जिसके इतिहास और विकास की रोचक कहानी रही है । कत्यूरी राजवंश के कमजोर होने का लाभ कुमायूं के दक्षिण पूर्व में चंद राजवंश की स्थापना चौदहवी सदी में कर ,चंद राजवंश ने लाभ उठाया। 16 वीं शताब्दी तक जब कत्यूरी राजवंश सिर्फ 5 छोटे क्षत्रपो में रह गया था। तब साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा वर्ष 1563 में चंद्र राजा कल्याण चंद ने अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बना दिया !
अल्मोड़ा शहर का नियोजन और विकास प्रारंभ से ही एक सांस्कृतिक और व्यवसायिक शहर के रूप में किया गया।  अल्मोड़ा के राजधानी बनते ही चंद राजाओं ने अपने भवन निर्माण की विशिष्ट शैली को पूरे उत्तराखंड में विस्तार दिया, काष्ठ शिल्प पर केंद्रित भवन निर्माण की यह शैली जिसमें जिसमें लक्ष्मी, गणेश ,नारायण कि विभिन्न मूर्तियों के साथ बहुत बड़े-बड़े नक्काशी के द्वार और खिड़कियां भवन निर्माण का मुख्य आकर्षण होती थी । भवन निर्माण की यह शैली पूरेउत्तराखंड में फैली . साथ ही लौह और ताम्र उद्योगों को राज्य में बढ़ावा दिया गया।
राज्य के टम्टा जो कि तांबे के शिल्पी थे. उन्हें दीवान की उपाधि से नवाजा गया राजपत्र आदेश के लिए उसमें तांबे की मुहर लगाया जाना आवश्यक कर दिया गया,लोहाघाट क्षेत्र में लोहा उद्योग बहुत तरक्की में पहुंचा तांबा और लोहे की खोज विभिन्न घाटियों में की गई। तांबा और लोहे की निकासी पर ब्रिटिश राज में प्रतिबंध लगा दिया गया ।
18 15-16 में जब अंग्रेजों ने सिगौली की संधि के बाद गोरखाओ से कुमायूं का राज प्राप्त किया .. जिसमें टिहरी रियासत को छोड़ गढ़वाल का हिस्सा भी शामिल था । तब पहले कुमाऊं कमिश्नर लॉर्ड विलियम ट्रेल ने अल्मोड़ा को ही अपना प्रशासनिक एंव सैनिक मुख्यालय भी बनाया. क्षेत्र को सड़कों से जोड़ा गया। जिन्होंने लगातार 6 भूमि बंदोबस्त कर नई आबाद भूमि का विस्तार किया..।
1839 में पौडी़ गढवाल अलग जिले/कमिश्नरी का गठन हुआ तब गैरसैण भी गढवाल का भाग हुआ। 1857 के गदर की सुगबुगाहट अल्मोड़ा में भी सुनाई देने लगी.. कालू चंद के बागीदल का संपर्क अल्मोडा़ की सैनिक बैरक्स में पाया गया तो कमिश्नर रैम जे ने कमिश्नरी का मुख्यालय 1856 में नैनीताल ले आए।  एक ऐतिहासिक शहर के रूप में अल्मोड़ा का महत्व तब भी बना रहा और समाज को उसका योगदान लगातार जारी रहा। 
1916 में बद्री दत्त पांडे एवं हर गोविंद पंत आदि ने जब कुमायूं परिषद की स्थापना की और आजादी के आंदोलन को बहुत तेज कर दिया तब राष्ट्रीय आंदोलन में अल्मोड़ा ने अपनी अलग जगह बनाई 1920 के कुली बेगार और 1930 के झंडा आंदोलन जिसमें विक्टर मोहन जोशी लाठीचार्ज के बाद हमेशा के लिए घायल हो गए का विशेष महत्व है ।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में पूरे उत्तराखंड को अल्मोड़ा से नेतृत्व प्राप्त हुआ , आजादी के बाद भी साहित्य संस्कृति और समाज के निर्माण में अल्मोड़ा का महत्व बना रहा 1973 के विश्व विद्यालय आंदोलन 1977 -78 के वन आंदोलन , 1984 केनशा नहीं रोजगार दो आंदोलन , राज्य निर्माण के आंदोलन में अल्मोड़ा की विशेष भूमिका रही। 
राज्य निर्माण के बाद तराई- भाबर का महत्व बड़ा और अल्मोड़ा खुद को कुंठित और उपेक्षित महसूस करने लगा यहां डॉक्टरों और शिक्षकों की तैनाती जैसे छोटे सवालों पर भी बडी़ लडा़ई लडी जाने लगी, परिणाम स्वरुप सबसे अधिक पलायने करने वाले जिलों में अल्मोड़ा शामिल हो गया।
4 मार्च 2021 को राज्य की विधानसभा में गैरसैण को एक नई कमिश्नरी जिसमें अल्मोड़ा ,बागेश्वर चमोली और रुद्रप्रयाग जनपदों को शामिल किया जाना है, की घोषणा की गई है। घोषणा के बाद जनपद अल्मोड़ा इतिहास के एक नए मुहाने पर खड़ा है। यह नई तस्वीर इसके शानदार इतिहास के अनुरूप होगी या नहीं यह एक यक्ष प्रश्न है !

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