उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की सीटों में तेजी से पलायन के कारण कमी
सच्चिदानंद शर्मा
अपना वोट -अपने गांव यह अपने गांव से जुड़ने का अभियान है। पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या रही है। राज्य बनने के बाद इसमें और तेजी आई है। आबादी के आधार पर विधानसभा सीटों का निर्धारण होता है। पलायन के कारण मतदाताओं के घटने के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की सीटों में तेजी से कमी आई है, जिस कारण विकास के अवसरों और बजट के निर्धारण में पर्वतीय क्षेत्र तेजी से पिछड़े है। पलायन के कारण अनेक गांव घोस्ट विलेज (भुतहा गांव) में बदल चुके हैं, जिसका सीधा असर हमारी भाषा, संस्कृति, बोली, रीति रिवाज, संस्कार, त्योहार आदि पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ा है , साथ ही विकास के मानदंडों में पर्वतीय जिले पिछड़े हैं ।
राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने पौड़ी जिले के एक ऐसा गांव जहां 100% पलायन हो चुका है, जहां कोई निवास नहीं करता है ऐसे बौरगांव, जिला पौड़ी को गोद लेकर उन्होंने एक बड़ी शुरुआत की है। उन्होंने शहर की मतदाता सूची से अपना नाम अपने मूल गांव ग्राम नकोट, कण्डवालस्यूँ, पौड़ी को स्थानांतरित करके एक अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने प्रवासियों से अपील की है कि हमें अपनी भाषा, संस्कृति के संरक्षण के लिए स्वयं अपनी जड़ों से जुड़ना होगा और अपने गांव की समस्याओं के निराकरण के लिए स्वयं भी रुचि लेनी होगी।
सुंदर पर्वतीय प्रदेश की कल्पना इसलिए की गई थी यहां की जवानी और पानी इसी प्रदेश के काम आए। सारे विषयों पर सरकारों पर ही आश्रित नहीं रहा जा सकता, स्वयं की निजी पहल को आंदोलन बनाना होगा । इस हेतु अपना वोट -अपने गांव अभियान की शुरुआत की गई है। प्रवासियों और प्रवासी संस्थाओ से संवाद जारी है। इस अभियान के तहत सोशल मीडिया पर भी निरंतर संवाद किया जा रहा है एक सुझाव के तहत सांसद बलूनी ने अपील की है कि हम कम से कम चार दिन अपने सोशल मीडिया की प्रोफाइल फोटो (डीपी) पर इस अभियान के लोगो को लगाकर भागीदार बनें।
(लेखक पूर्व प्रदेश संयोजक (प्रवासी प्रकोष्ठ) भाजपा उत्तराखंड हैं )