HISTORY & CULTURE

वीरान पड़े गांवों में इन दिनों बनी है रौनक

-जिले में पांडव लीला की मची है धूम 

-बाहरी प्रवासी और धियाणियों ने किया है गांवों का रूख

-जहां लीला का नहीं होती है आयोजन वहां होती खुरपक्का की बीमारी 

-लीलाओं के आयोजन में सरकारी स्तर से नहीं मिल रही कोई मदद

रुद्रप्रयाग । जिले में इन दिनों पांडव लीला की धूम मची हुई है। पांडव लीला के आयोजन से बाहरी शहरों में रह रहे प्रवासी गांव की ओर रूख किये हुए हैं और धियाणियां भी अपने मायके में पहुंच रही है। ऐसे में गांव का माहौल भक्तिमय बना हुआ है। यह लीला करीबन दो से तीन सप्ताह तक चलती है, जिसमें कईं दृश्य पेश किये जाते हैं।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण चक्रव्यूह, हाथी कौथिग और गैंडा वध को देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। जगह-जगह हो रही लीलाओं के आयोजन से पूर्व जहां कल तक गांवों में वीरानी देखी जाती थी, वहीं आज जमावड़ा लगा हुआ है।
दरअसल, जिले में पांडव लीला मनाने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि पांडवों ने स्वर्गारोहणी जाने से पूर्व यहां के लोगों को अपने अस्त्र-शस्त्र दिये थे कि जिससे कि वे चिरकाल तक इनकी पूजा-अर्चना करते रहें। आज भी लोग पांडवों की परम्पराओं को निभाते आ रहे हैं। पांडव लीला में रात के समय नृत्य किया जाता है और दिन में लीलाओं का आयोजन होता है। इन लीलाओं को देखने के लिए बाहरी प्रवासी भी गांव की रूख किये हुए हैं और धियाणियां भी मायके में आकर लीलाओं का आनंद ले रही है। ऐसे में वीरान पड़े हुए गांवों में इन दिनों माहौल खुशी का बना हुआ है। वर्षों से केदारघाटी की जनता पांडव लीला का आयोजन करती आ रही है और ग्रामीणों की माने तो इन लीलाओं के आयोजन से क्षेत्र में खुशहाली भी बनी रहती है। जिस जगह पर इन लीलाओं का आयोजन नहीं होता है, वहां मवेशियों में खुरपक्का जैसी बीमारी होनी शुरू होती है और ग्रामीणों को इस बीमारी से निजात पाने के लिए लीला का आयोजन करना ही पड़ता है।

लीलाओं में चक्रव्यूह का आयोजन के दौरान दूर-दराज क्षेत्रों से हजारों की संख्या में कार्यक्रम स्थल में लोग पहुंचते हैं और अभिमन्यु के वीर साहस को देखकर तालियां भी बजाते हैं, मगर सातवें द्वार पर जब वीर अभिमन्यु को कौरवों द्वारा मारा जाता है तो यह दृश्य श्रद्धालुओं की आंखों को नम कर देता है और फिर अश्रु की धारा लोगों की आंखों से बहने लगती है। लीलाओं के आयोजन में सरकार और शासन व प्रशासन की ओर से कोई भी सहायता नहीं की जाती है। स्वयं के खर्चे पर ग्रामीण यह आयोजन करते हैं।

केदारघाटी के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप सिंह रावत, पूर्व प्रधान शांति चमोला, मनोज बैंजवाल ने बताया कि ग्रामीण जनता वर्षों से लीलाओं का आयोजन अपने खर्चे पर करती आ रही है। कोई स्वार्थ भावना इन कार्यक्रमों में नहीं देखी जाती है, मगर दुख का विषय यह है कि आज गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं और पलायन के कारण कहीं ये परम्परा भी विलुप्त न हो जाय, इसका डर सता रहा है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली पांडव लीला, रामलीला और बगड्वाल जैसे कार्यक्रमों में सरकारी मदद मिलनी जरूरी है। ऐसे में ये परम्पराएं आगे भी बढ़ती रहेंगी और आने वाली पीढ़ी इन लीलाओं का आयोजन भी करेगी। कहा कि सरकार को चाहिए कि इन लीलाओं के आयोजन पर सरकारी स्तर से मदद करे, जिससे ग्रामीण अंचलों में यह परम्परा बनी रहे और लोगों का ध्यान भी गांव में लगा रहे।

पांडवों ने अस्त्र-शस्त्रों के साथ अलकनंदा नदी में स्नान किया

रुद्रप्रयाग । जिले के धनपुर पट्टी के विभिन्न इलाकों में पांडव लीला का आयोजन किया जा रहा है। ग्राम पंचायत गडोरा में चल रहे पाण्डव नृत्य के 13वें दिन पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ अलकनंदा नदी में स्नान किया। इस दौरान विधि-विधान से ब्राह्मणों द्वारा पूजा-अर्चना कर नकुल ने पिण्डदान किया।
ग्राम पंचायत गडोर के पूर्व प्रधान राजेश कुंवर ने कहा कि लीला के आयोजन में 27 दिसम्बर को मोरू की डाली का आयोजन किया जायेगा, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के पश्वा पेड़ पर चढ़कर भक्तों को प्रसाद के रूप में फल वितरित करेंगे। इस अवसर पर जीत सिंह बिष्ट, गोपाल कुंवर, ललीत सिंह, बैशाख सिंह बिष्ट, विमला रावत, वासुदेव सिंह राजवीर सिंह सहित कईं मौजूद थे।

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